Top 9 कबीर के दोहे मतलब के साथ हिन्दी में!

कबीर के दोहे मतलब के साथ हिन्दी में

ईश लेख मे हम 9 कबीर के दोहे आपके साथ साझा कर रहे है जिन्हे आप पढ़ के काफी कुछ सीखने वालें हैं। साथ आपको 300+ Kabir ke Dohe का एक और लेख मिलने वाला है।

9 कबीर के दोहे मतलब के साथ

1- हरी सांगत शीतल भय… , मिति मोह की ताप |

निशिवासर सुख निधि… , लाहा अन्न प्रगत आप्प ||

भावार्थ-  जो परमात्मा को महसूस करते है वो शांत हो जाते है ,  उन्होंने अपने अंदर के क्रोध को खत्म कर दिया है इसलिए वो अपनी जिंदगी के आनंद को समझ पा रहे है ।

2- कबीर सोई पीर है जो जाने पर पीर ।

 जो पर पीर न जानई  सो काफिर बेपीर ॥

अर्थ-कबीर दास कहते है ,सच्चा संत वही है जो दूसरे के दुख को जानता हो , जो दूसरे के दुःख को नही पढ़ पाता और महसूस कर पाता वप निष्ठुर है काफ़िर है ।

3- झूठे को झूठा मिले, दूंणा बंधे सनेह

   झूठे को साँचा मिले तब ही टूटे नेह ॥

अर्थ-झूठे आदमी को दूसरा झूठा आदमी मिलता है तभी प्रेम बढ़ता है झूठे को अगर सच्चा मिल जाये तो स्नेह टूट जाता है ।

4- तू कहता कागद की लेखी मैं कहता आँखिन की देखी ।

मैं कहता सुरझावन हारि, तू राख्यौ उरझाई रे ॥

अर्थ- तुम कागज पर लिखे शब्दों को सच मानते हो में कहता हूं आंखों देखी को सच मानो ।  मैं आंखों देखी सच को कागज पर लिखता हूं।

5- कबीर सो धन संचे, जो आगे को होय। 

सीस चढ़ाए पोटली, ले जात न देख्यो कोय।

अर्थ-कबीर दास जी कहते है कि ऐसे धन का संचय करना चाहिए जो भविष्य में काम आए । उन्होंने किसी ऐसे सख़्श को नही देखा जो धन की पोटली माथे पर धोता है । यहां धन का संबंध सार्थक ज्ञान से है ।

6- झिरमिर- झिरमिर बरसिया, पाहन ऊपर मेंह। 

माटी गलि सैजल भई, पांहन बोही तेह॥

अर्थ- बादलों ने पत्थरों पर बरसात की ,इससे मिट्टी तो भीग कर सजल हो गई पर पत्थर यू ही बने रहे । उनके वेश में कोई परिवर्तन नही आया ।

7- जाता है सो जाण दे, तेरी दसा न जाइ। 

खेवटिया की नांव ज्यूं, घने मिलेंगे आइ॥

अर्थ- कबीर जी कहते है , जो जाता है उसे जाने दो पर अपनी दशा और स्थीति को न भूलो । अगर नाव ख़वेने वाले के पास नाव रहेगी अथार्थ आपके यथोचित रहेंगे तो बहुत से लोग आपसे आकर मिलेंगे ।

8- जब मैं था तब हरि नहीं अब हरि है मैं नाहीं ।

प्रेम गली अति सांकरी जामें दो न समाहीं ॥

अर्थ- कबीर दास जी कहते है जब तक मन में अहंकार था हरी यानी प्रभु के दर्शन नही हुवे अब जब अंहकार नही है ईश्वर ने साक्षात दर्शन दिए है अपना बोध कराया है । ईश्वर और अहंकार एक साथ नही मिल सकते है । प्रेम की गली सिमटी है जहाँ या तो ‘अहम’ रहेगा या ‘परम’ । परम् की प्राप्ति के लिए अहम का त्याग नित्यन्त आवश्यक है ।

9- कस्तूरी कुंडल बसे,मृग ढूँढत बन माही।

ज्योज्यो घटघट राम है,दुनिया देखें नाही ।।

अर्थ- ईश्वर की उपस्थिति बताते हुवे कबीर जी कहते है , कस्तूरी हिरण की नाभि में होता है परंतु हिरण ज्ञान के अभाव में उसकी खुशबू की वजह से सारे जंगल मे कस्तूरी ढूंढता है । ठीक उसी प्रकार ईश्वर इंसान  के हृदय में पहले से उपस्थित है परंतु इंसान उसे ,मंदिर मस्जिद और गुरुद्वारे में ढूंढता फिरता है ।  लेकिन ज्ञान के अभाव में कभी खुद में नही झांकता ।

आशा करता हूँ आपको कबीर के दोहे पढ़ के कुछ सीखने को मिला होगा। अगर आपको कोई प्रतिक्रिया देनी है, कृपया कमेन्ट करके जरूर दें! हम आपको जवाब जरूर देंगे!

इन कबीर के दोहे को भी पढ़ें।

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