आज हम आपके लिए कबीर दास जी के दोहे Kabir Das Ke Dohe In Hindi भाग से लाए हैं। कबीर दास के दोहे काफी जानकारीपूर्ण और प्रेरणादायक होते हैं। आशा करते हैं आपको इन्हें पढ़ के काफी कुछ सीखने को मिलेगा।
Kabir Das Ke Dohe In Hindi
करता रहा सो क्यों रहा,अब करी क्यों पछताय।
बोया पेड़ बबुल का, अमुआ कहा से पाये।।
अर्थ- जब बुरे कर्मो में मसगूल था, किसी के समझाने पर भी न समझा तो फिर अब पछतावा किस बात का, क्या कभी सूना है कि पेड़ बबुल का लगा हो और उसपर आम हो। बुरे कर्मो का नतीजा हमेशा बुरा ही होता है। जैसा कर्म वैसा फल।
जब गुण को गाहक मिले, तब गुण लाख बिकाई।
जब गुण को गाहक नहीं, तब कौड़ी बदले जाई।।
अर्थ- इस दोहे का सीधा संबंध किसी भी चीज़ का मूल्यांकन उसके सही जगह पर होने से है, जब गुणी आदमी को सही जानने वाला मिले तो उसकी कीमत लाखो में है। पर उस गुण को अगर सही जानकर न मिले तो वो कौड़ी के भाव में हो जाता है।
इस तन का दीवा करों, बाती मेल्यूं जीव।
लोही सींचौं तेल ज्यूं, कब मुख देखों पीव॥
अर्थ- भक्ति की कठिनता को उजागर करते हुवे कबीर जी कहते है, की अगर ईश्वर जो पाना है तो शरीर को दिया और ,प्राणों को बत्ती और रक्त को तेल की तरह से सींचना होगा। इस तरह दिए को जलाकर ही ईश्वर के दर्शन होंगे। ईश्वर को पाने की खातिर तन मन और धन से तपश्या करनी पड़ती है। कोई विरला ही ऐसा कर पाता है।
कबीर कहा गरबियौ, ऊंचे देखि अवास।
काल्हि परयौ भू लेटना ऊपरि जामे घास॥
अर्थ- कबीर दास जी कहते है कि ये ऊंचे ऊंचे भवनों पर गुमान किस बात का करते हो कल नही तो परसो ये जमीन में दफन हो जाएंगी और घास-फुस उसपे जम जाएगी। नस्वर चीज़ों पर गुमान व्यर्थ है।
सुख में सुमिरन न किया, दुख में करते याद।
कहे कबीर ता दास की, कौन सुने फरियाद।।
अर्थ- कबीर दास जी कहते है, की सुख में तो याद नही किया और दुख में स्मरण आया। यानी विपत्ती के समय याद आई। फिर भला इस घड़ी में तुम्हारी कोई क्यो सुनें।
कबीर कूता राम का, मुटिया मेरा नाऊ |
गले राम की जेवड़ी, जित खींचे तित जाऊं ||
अर्थ- राम के प्रति अपनी वफादारी साबित करते हुवे कहते है कि वो सिर्फ राम के लिए काम करते है, जैसे कुत्ता अपने मालिक के लिए काम करता है। उनके पास राम-नाम का मोती है, उन्होंने गले में राम नाम जी जंजीर बांध ली है, जहां राम जाएंगे वहाँ उसे ले जाएंगे।
बैद मुआ रोगी मुआ, मुआ सकल संसार |
एक कबीरा ना मुआ, जेहि के राम आधार ||
अर्थ- चिकित्सक भी मृत्यु के काल में समा गया और मरीज भी, बस नही मरा तो कबीर क्योंकि कबीर ने खुद को प्रभु को समर्पित कर दिया, अर्पित कर दिया।
ऊँचे पानी ना टिके, नीचे ही ठहराय |
नीचा हो सो भारी पी, ऊँचा प्यासा जाय ||
अर्थ- पानी नीचे बहता है और हवा ऊपर, पानी कभी लटकता नही। ठीक उसी प्रकार जो लोग जमीनी हकीकत जानते है वो ही जीवन का आनंद लेते है, जो हवा में तैरते है वो लटक जाते है।
जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होय |
यह आपा तो डाल दे, दया करे सब कोए ||
अर्थ- मस्तिष्क अगर शान्त है तो कोई सत्रु नही अथार्त अगर आपके पास प्रेम है तो सब आपके साथी होंगे। अहंकार को छोड़िये देखिए सब आपके लिए दयालु होंगे।
जांमण मरण बिचारि करि कूड़े काम निबारि।
जिनि पंथूं तुझ चालणा सोई पंथ संवारि॥
अर्थ- जन्म और मरण का विचार करके बुरे कर्मो का परित्याग कर, जिसपे तुझे चलना है उसी का ध्यान कर ,उसी को सँवार।
माटी कहे कुमार से, तू क्या रोंदे मोहे।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदुंगी तोहेll
अर्थ- मिट्टी का घड़ा बनाने के लिए कुम्हार मिट्टी को रौंद रहा है सब मसल रहा है, मिट्टी कहती है कुमार से की एक दिन ऐसा आएगा जब तू इसी मिट्टी में समा जाएगा और मैं तुझे रौदूँगी।
जहाँ दया तहा धर्म है, जहाँ लोभ वहां पापl
जहाँ क्रोध तहा काल है, जहाँ क्षमा वहां आपll
अर्थ- कबीर दास जी कहते है ,जहां दया है वही धर्म है और जहां लालच है वही पाप है जहां क्रोध है वह विनाश और जहां क्षमा है वहां ईश्वर का है।
प्रलम न बारी उपजे, प्रेम न हाट बिकाए।
राजा प्रजा जो ही रुचे, सिस दे ही ले जाए।l
अर्थ- कबीर दास जी कहते है, प्यार न तो कही उगता है और न बाज़ार में बिकता है, प्यार चाहने वालो को अपने अहम, क्रोध मोह, और काम का परित्याग करना पड़ता है।
जिन घर साधू न पुजिये, घर की सेवा नाही।
ते घर मरघट जानिए, भुत बसे तिन माही।l
अर्थ- कबीर दास जी कहते है जिस घर मे सत्य की आराधना नही होती, उसकी उपासना नही होती हो वह पाप बसता है। ऐसा घर तो मरघट के समान है जहा दिन में ही भूत- प्रेत बस्ते है।
सुख सागर का शील है, कोई न पावे थाह |
शब्द बिना साधू नहीं, द्रव्य बिना नहीं शाह ||
अर्थ- कबीर जी कहते है विनम्रता सूख का सागर है, कोई इसकी गहराई का अंदाजा नही लगा सकता, एक अमीर व्यक्ति बिना पैसों के अमीर नही बनता ठीक उसी प्रकार एक व्यक्ति बिना विनम्र हुवे अच्छा नही हो सकता।
कबीर दास ज्यादा शिक्षित नही थे, परंतु उनकी बातों में एक सच था। वो जिंदगी को उलझाने के वजाए इसे सरलता से सुलझाने में यकीन रखते थे। वो कहते है जितना सरल रहोगे उलझनों से दूर रहोगे।
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ये थे Kabir Das Ke Dohe In Hindi. आशा करता हूँ आप लोगों को इन्हे पढ़के काफी कुछ सीखने को मिल होगा। अगर आपको और भी कबीर के दोहे पढ़ना है तो हमे कमेन्ट करके जरूर बताएं।