Panchtantra Ki kahaniya हमारे समाज की एक अद्धभुत तस्वीर पेश करती है। एक ऐसी तस्वीर जो धूल से भर चुकी है। प्राचीन काल में Panchtantra Ki kahaniya बड़े ध्यान से पढ़ी जाती थी एवं दिमाग में उतारी भी जाती थी।
परन्तु बचपन की उम्र की दहलीज को पार करते ही हर शख्स इन कहानियों को भूल जाता है। वे इन कहानियों को मात्र कल्पना के आधार पर रचित कह देते हैं। परन्तु असल में Panchtantra Ki kahaniya हमारे जीवन से ही उठाई गई है।
Panchtantra Ki kahaniya मात्र मनोरंजन का साधन नहीं बल्कि जीवन जीने का ढंग सिखाती है। इसमें मिलती हर एक सीख जीवन को अलग दृष्टिकोण से सजा देती है। जिससे दुनिया खूबसूरत दिखने लगती है। सभी जगह शांति और समृद्धि का प्रकाश दिखाई देता है।
इन्ही Panchtantra Ki kahaniya में मंत्रमुग्ध होने के लिए तैयार रहें। Hindi Kahani की वेबसाइट आपके लिए कुछ चुनिंदा Panchtantra Ki kahani collection पेश करता है। इन कहानियों में मजा है, सीख है और शिक्षा का भंडार है।
#1 Panchtantra ki Kahaniya:- लालच का खेल
एक गांव के बगल में एक मशहूर वन था। उस वन की तारीफ हर आस पास के वन में होती थी। ऐसा इसीलिए क्योंकि यह वन पूर्ण रूप से हरित क्रांति की पेशकश कर रहा था। वह पूरी तरह से पेड़, पौधे हरियाली से भरा हुआ था।
स्वर्ग का दर्शन मानो इधर से ही होता हो। इस जंगल के हर जानवर मिल कर रहते थे। एक साथ खाते, एक साथ खेलते। सभी एक दूसरे के सुखी एवं दुखी वक्त में एक दूसरे के संग मजबूती से डट कर खड़े रहते।
इस जंगल मे इतनी खासियत के बाद सभी का केंद्र और चर्चा का विष्य दो बिल्लियां भी थी। यह दोनों बिल्लियां बचपन की संगनी थी। एक साथ खेलती, घूमती। एक रोती थी तो दूसरी परेशान रहती थी।
एक खुश तो दूसरी भी खुशी भरी दुनिया में अपना दाखिला करवा लेती थी। इनकी दोस्ती की मिसालें आस पास के जंगल मे बेहद शिद्दत से दी जाती थी। कुछ लोग यह भी कहते थे कि दोस्ती हो तो चीनी मिनी जैसी हो वरना न हो।
वह दोनों हर वक्त एक ही साथ रहते थे। परन्तु जीवन की एक सच्चाई है कि हर शख्स को कभी न कभी दुनिया को अकेला भी खोजना होता है। ऐसा ही एल दिन मिनी के जीवन में दाखिल किया। एक दिन मिनी को किसी काम से जंगल के बाहर जाना पड़ा जहाँ वे चीनी को नहीं लेकर जा सकी।
चीनी अब मुरझाए हुई मुद्रा में घर की ओर रास्ते पर निकल पड़ी। रास्ते में उसे रोटी का बड़ा सा टुकड़ा मिला। उसे लगा यह किसी का गिरा हुआ टुकड़ा है। वह वहाँ ही खड़े देखती रही कि कौन वे टुकड़ा उठाएगा। परन्तु काफी देर तक जब कोई नहीं आया तो उसने वह टुकड़ा उठा लिया।
जैसे ही वह टुकड़ा अपने घर पर लेकर पहुंची तब चीनी के मस्तिष्क में एक लालच ने जन्म लिया पहले चीनी मिनी दोनों बिल्लियां हर भोजन एक साथ बांटते थे परन्तु आज मिनी नहीं थी तो इस अवसर का फायदा उठाने के लिए चीनी ने वह रोटी पर कब्जा मारने की शुरुआत करी ही थी कि अचानक मिनी वापस आ गई। इससे चीनी हैरान रह गया। उसने मिनी के तरफ रोटी बधाई परन्तु वह टुकड़ा चीनी के हिस्से से छोटी थी।
चीनी और मिनी में रोटी के छोटे बड़े आकार के कारण बेहद बहस हुई। जंगल के हर प्राणी जो इनकी तारीफ करते थे अब चिंतित लग रहे थे। बंदर ने सभी जानवरों को उनकी मनमुटाव को खत्म करने की बात कही।
सभी वन के जानवर बंदर को चीनी मिनी के पास ले गए। बंदर ने पहले तो दोनों को लड़ाई करते हुए रोका और फिर तराजू मंगवाया। तराजू के एक जगह पर चीनी की रोटी का टुकड़ा रखा तो दूसरे तरफ मिनी की रोटी का टुकड़ा।
बंदर इन दोनों टुकड़ो में से कुछ कुछ टुकड़ी तोड़ कर खा जाता और कहता कि वह दोनों टुकड़ो का वजन बराबरी कर रहा है। ऐसे करते करते अब तराजू में दोनों जगह रोटी का वजन तो नहीं बराबर हुआ किंतु आकार काफी छोटा रह गया। चीनी और मिनी ने कहा अब तुम यह रोटी की टुकड़े हमें दे दो हम ऐसी ही ग्रहण कर लेंगे।
“अरे! तुम तो बहुत चालू हो सारी मेहनत मैंने करी और जब मुझे सम्मान करने की बारी आई तो कह रहे हो कि तुम कर लोगे।” :- बंदर यह कहते ही बंदर ने तराजू में मौजूद रोटी के टुकड़े को भी खा जाता है। यह करते हुए बाकी जानवर और चीनी मिनी मात्र दर्शन बन कर रह जाते हैं।
सीख:- लालची व्यक्ति या जानवर के पास बुद्धि का स्थान छीन जाता है। लालच कभी भी किसी के लिए शुद्ध साबित नहीं हुआ अर्थात लालच से आप कभी कुछ हासिल नहीं कर सकते बल्कि जो है वह भी गंवा दिया जाता है।
#2 पंचतंत्र की कहानी:- बुरा उपहास
प्राचीन समय में एक राज्य बेहद प्रसिद्ध हुआ था। उस राज्य की जनता उस राज्य को सर्व सम्मति से ‘वर्धमान’ नाम से पुकारा करते थे। इस राज्य की पहचान यहाँ का एक व्यापारी भी था, जिसकी कुशलता के सामने नतमस्तक हो जाते।
राज्य का राजा भी इस व्यापारी की कुशलता का दीवाना था। सिर्फ राजा ही नहीं अपितु पूरा राज्य उसकी कुशलता के किस्से सुनाता था। राजा ने व्यापारी को राज्य का प्रशासक बना दिया। कुछ समय पश्चात उस व्यापारी की पुत्री का लगन नकी हुआ।
प्रसन्न होकर व्यापारी ने विशाल भोग का बंदोबस्त किया। जिसमें राजा समेत पूरे राज्य को आमंत्रण भेजा गया। इस उत्सव में एक सेवक भी मौजूद था जो गलती से उस कुर्सी पर तशरीफ़ रख दिया जो राजा एवं उनके परिवार के व्यक्तियों के लिए रखी गई थी।
व्यापारी इस दृश्य को देखकर काफी क्रोधित हो उठे, उन्होंने उस सेवक का उपहास उड़ाने में देर न करी। सेवक का उपहास उड़ाने की सीमा को लांघते हुए उस व्यापारी ने उसे उत्सव से बाहर निकाल दिया। वह सेवक इस बात से काफी आहत होता है। वह मन ही मन व्यापारी को सबक सिखाने का तय करता है।
अगले दिवस जब वह सेवक राजा के कक्ष की साफ सफाई कर रहा होता है तो उस वक्त राजा अपने कक्ष में ही आराम कर रहें होते हैं परन्तु उनकी नींद अभी कच्ची होती है। इसका उस सेवक को आभास हो जाता है।
वह राजा का इस्तेमाल करते हुए उनके पास अफवाह फैलाता है। “उस व्यापारी का साहस कैसे हुआ, महारानी के सातब दुर्व्यवहार करने का!”
यह सुनकर राजा अपने बिस्तर पर उठ जाते हैं और सेवक उनके चरणों में पड़ कर कहता है कि “महाराज!, मैं तो यूँ ही बड़बड़ाते रहता हूँ मेरी बातों पर ध्यान न दिया जाए”।
लेकिन सेवक के वह बोल राजा के भीतर व्यापारी को लेकर शक की सुई खड़ी कर देती है।
इसके तुरंत बाद राजा राज्य में यह घोषणा कर देते हैं कि व्यापारी को भीतर न आने दिया जाए तथा व्यापारी को दिए गए अधिकारों में भी भारी कटौती कर दी जाती है।
व्यापारी अपनी परिस्थितियों को समझते हुए उस सेवक से क्षमा मांगता है।
सीख:- कभी भी किसी व्यक्ति, जीव का उपहास नहीं उड़ाना चाहिए, क्योंकि दुनिया में सब समय की बात होती है आज आपका वक्त सही है तो कल उस व्यक्ति का होगा।
#3 Panchtantra Ki kahaniya: धनी मूर्ख साधु की दास्तां
समय की सुई को पीछे घुमाएंगे तो एक गांव में पहुंचेंगे जहाँ एक साधु पूरे राज्य में अपनी हुकूमत चलाता था। हुकुम इसीलिए चला पाता था क्योंकि पूरे राज्य में मात्र वह ही साधु था, जिसे सर्व इच्छा से जनता उसकी झोली भर देती थी।
अब उसे इसका लालच हो गया था। अगर कोई पूरे राज्य में दूसरा कोई अन्य साधु कदम भी रखता तो यह साधु उन्हें वापस भेज देता।
एक दिन जब साधु पेड़ के नीचे तख्त पर बैठकर अपना धन गिन रहे थे तब उस धन को मात्र साधु की नैनों ने ही नहीं बल्कि एक ठग की भी नजर थी। वह ठग उस धन को पाने की इच्छा ठान बैठा। उसने एक युक्ति के तहत साधु के सामने खुद को पेश किया।
ठग :- ” हे गुरु!, मैंने पूरे राज्य में आपकी काफी तारीफ सुनी है, मैं आपका शिष्य बनना चाहता हूँ, कृपया आप मुझे अपनी चरण में लें।”
साधु:- नहीं, मैं किसी को भी शिक्षा नहीं दे सकता, मैं व्यस्त रहता हूँ।”
ठग:- कृपया मुझे अपना शिष्य बना लीजिए गुरु, मैं आपकी दिन रात सेवा करा करूंगा।
उस ठग की बार बार प्रार्थना करने के कारण साधु मान गया और ठग को अपना शिष्य बना लिया।
ठग उसी साधु के साथ समय व्यतीत करने लगा, उसकी सेवा भी करता तथा साथ ही मंदिर की भी देखभाल करता। किंतु इसके बावजूद वह ठग साधु के हृदय में अपने लिए विश्वास की लौ जलाने में नाकाम था।
एक दिन पड़ोस के गांव से साधु को निमंत्रण मिला जहां साधु ने जाने की हामी भरी। अपने साथ वह अपने शिष्य(ठग) को भी लेकर गए। रास्ते में एक नदी भी पड़ रही थी। साधु के मस्तिष्क में एक ख्याल आया कि क्यो न स्नान कर लिया जाए पहुंचने से पहले।
साधु ने अपना धन एक पौटली मे डाल कर शिष्य को सौंप दिया और स्वंय नदी में डुबकी लगाने चले गए। इसी अवसर का फायदा उठाकर वह ठग धन लेकर रफूचक्कर हो गया।
शिक्षा:- लालच आपका मस्तिष्क में सोचने समझने की शक्ति को बीमार कर देती है। किसी भी व्यक्ति को लालच नहीं करना चाहिए।
#4 Kids Stories in Hindi: नीला सियार
एक वन की बात है जहां एक सियार रहता था। उस वक्त वन में तेज वायु अपनी चाल चल रही थी। जिससे बचने हेतु वह सियार अपने समीप दिखाई दे रहे वृक्ष के नीचे खड़ा हो गया।
तेज हवा का झोंका आया जिसके कारण उस वृक्ष की टहनी सियार पर जा गिरी। डर के मारे सियार अपने स्थान पर जा पहुंचा वह चोट से काफी आहत था तथा दर्द से तड़प रहा था।
उसके सर में दर्द काफी दिवस तक रहा जिसके कारण उसका शिकार पर जाना मुमकिन न हो सका। कई दिनों तक शिकार पर न जाने के कारण उसे भोजन की प्राप्ति नहीं हो सकी।
अब वह काफी कमजोर हो चुका था। एक दिन वह अपने शिकार का इंतजार कर रहा था तभी उसकी नजर एक हिरण पर गई। उसका शिकार करने के लिए सियार उसके पीछे दौड़ा परन्तु कमजोर होने के कारण जल्द ही थक कर चूर हो गया।
तब तक मौका मिलते ही वह हिरण भाग गया था। इसके बाद सियार पूरे दिन भटकता रहता कभी इधर तो कभी उधर परन्तु उसे कोई शिकार नहीं और न ही कोई मृत शरीर ताकि उन्हें खाकर वह अपनी भूख शांत कर सके।
अब वह थककर वापस हताश होकर अपने गांव की ओर निकल गया। जैसे ही वह गांव की ओर पहुंचा उसके पास उसे कुत्तों का झुंड आते हुए दिखा। वह घबरा गया और डर के मारे अपने प्राण की आहुति देने से पहले बचने की कोशिश करने लगा।
कुत्तों से बचने के लिए उसे एक खाली मैदान में एक ड्रम दिखा जिसमें वह छुप गया। उस ड्रम में नीला रंग रखा हुआ था। कुत्तों का झुंड अब निकल चुका था सियार ने पहले ड्रम में से झांका जब रास्ता साफ मिला वह बाहर निकला।
उसने वापस रास्ते में जाते हुए खुद को नदी में देखा। उसमें उसने अपनी छवि नीले रंग की दिखी। उसे यह नीला रंग देखकर एक दिमाग में युक्ति सोची।
रात गुजरने के बाद अगले दिन उसने पूरे जंगल मे यह खबर फैलादी की वह भगवान का संदेश लाया है। सभी जानवर उसकी बात मान कर इकट्ठा हो गए।
सियार ने अपने नीले रंग होने का फायदा उठाया और कहा :- ” क्या तुमने कभी नीला जानवर देखा है?”
सभी जानवरों ने एक स्वर में आवाज दिया :-“नहीं…….!”
सियार :- ” देखो लेकिन मैं नीले रंग का हूँ, मुझे स्वंय ईश्वर ने भेजा है और कहा है कि अब से इस जंगल का मार्गदर्शन मैं ही करू, उन्होंने मुझे यह फर्ज बेहद सोच समझ कर दिया है।”
जानवरों ने सियार की बात मान ली और उसे जंगल का राजा घोषित कर दिया।
सियार ने अपने पहले आदेश में जंगल में मौजूद सभी सियार को जंगल से बाहर भेजने का आदेश दे दिया, ऐसा उसने इसीलिए किया था ताकि कोई सियार उसे पहचान न जाए। अगर उसे पोल खुल गई तो वह मुश्किल में पड़ जाएगा।
सियार ने अपनी हुकुम चलाने शुरू कर दी किसी जानवर से पैरों को दबवाता कभी किसी जानवर से मालिश करवाता।
एक दिन जंगल मे सियार घूम रहा था तभी आसमान में तेज बारिश की आशंका होने लगी, जोर से बिजली कड़कने लगी। जैसे ही सियार को बारिश होने का आभास हुआ वह अपनी कुटिया में जल्द पहुंचने की कोशिश करने लगा।
परन्तु उसके पहुंचने से पहले बारिश चालू हो गई जिसके कारण उसके शरीर का नीला रंग उतर गया। उसकी पोल खुलने के बाद सभी जानवरों ने मिलकर उसे मार डाला।
सीख:- झूठ व्यक्ति को एक बार ही बचा सकता है। परन्तु सत्य हमेशा झूठ पर हावी रहा है।
#5 Hindi Kids Story: गधा धोबी का
किसी एक ग्रामीण इलाके में एक धोबी अपने गधे के साथ वास करता था। वह प्रातः अपने गधे के साथ लोगों के घरों से गंदे वस्त्र लाता और उन्हें धोकर वापस उनके मालिकों को सौंप आता। यही उसका दिनभर का कार्य था और इसी से उसका जीवन व्यतीत होता।
गधा कई वर्षों से धोबी के साथ कार्य पूर्ण कर रहा था और समय के साथ-साथ अब वह अपने बुढ़ापे की ओर बढ़ रहा था। बढ़ती आयु ने उसे कमजोर बना दिया था, जिस वजह से वह ज्यादा वस्त्रों का भार नहीं उठा पाता था।
एक दोपहर, धोबी अपने गधे के साथ कपड़े धोने धोबी घाट जा रहा था। रवि की किरणें तेज थी और गर्मी की वजह से दोनों की हालत खराब हो रही थी। गर्मी के साथ-साथ वस्त्रों के अधिक भार के कारण गधे को चलने में परेशानी हो रही थी।
वो दोनों घाट की तरफ जा ही रहे थे कि अचानक गधे का पैर लड़खड़ाया और वह एक गहरे गड्ढे में गिर गया। अपने गधे को गड्ढे में गिरा देख धोबी भौचक्का रह गया और उसे बाहर निकालने के लिए प्रयत्न करने लगा।
बूढ़ा और कमजोर होने के बावजूद, गधे ने गड्ढे से बाहर निकलने में अपनी सारी ताकत लगा दी, लेकिन गधा और धोबी दोनों नाकामयाब रहे। धोबी को इतनी मेहनत करते देख कुछ गांव वाले उसकी मदद के लिए पहुंच गए, लेकिन कोई भी उसे गड्ढे से बाहर नहीं निकाल पाया।
तब गांव वालों ने धोबी से कहा कि गधा अब बूढ़ा हो गया है, इसलिए समझदारी इसी में है कि गड्ढे में मिट्टी डालकर उसे यहीं दफना दिया जाए। थोड़ा मना करने के बाद, धोबी भी इस बात के लिए राजी हो गया।
गांव वालों ने फावड़े की मदद से गड्ढे में मिट्टी डालना शुरू कर दिया। जैसे ही गधे को समझ आया कि उसके साथ क्या हो रहा है, तो वह बहुत दुखी हुआ और उसकी आंखों से आंसू निकलने लगे। गधा कुछ देर चिल्लाया, लेकिन कुछ देर बाद वह चुप हो गया।
अचानक धोबी ने देखा कि गधा एक विचित्र हरकत कर रहा है। जैसे ही गांव वाले उस पर मिट्टी डालते, वह अपने शरीर से मिट्टी को नीचे गड्ढे में गिरा देता और उस मिट्टी के ऊपर चढ़ जाता।
ऐसा लगातार करते रहने से गड्ढे में मिट्टी भरती रही और गधा उस पर चढ़ते हुए ऊपर आ गया। अपने गधे की इस चतुराई को देखकर धोबी की आंखों में खुशी के आंसू आ गए और उसने गधे को गले से लगा लिया।
सीख:- मुश्किल वक्त में गधे जैसा जानवर भी अपनी चतुराई का प्रदर्शन कर सकता है।
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हमारा जीवन भी तो कहानी से कम नहीं हैं। Panchtantra Ki kahaniya के पात्र हम इंसान ही है परन्तु इसे कहानी में जानवर से बदल दिया जाता है।
उम्मीद है आपको यह सब Panchtantra Ki kahaniya पसंद आई होगी। हमारे साथ बने रहें।
धन्यवाद।