विश्व में भारत एक नौजवान देश का दर्जा प्राप्त करता है। यही नौजवानों की ऊर्जा कम न हो तो उनके लिए प्रेरणादायक कहानियों (Moral Stories in Hindi) का सहारा लेना उत्तम फैसला होता है। एक प्रगतिशील सृष्टि की रचना युवा वर्ग ही रखता है।
एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में अधिकांश जनसंख्या नन्हें नौजवानों की है। भूतकाल से भारत साहित्यिक रूप में बेहद उत्तीर्ण रहा है। उन महान मस्तिष्क द्वारा लिखी गई कई कहानियों का समंदर बूंद बूंद कर भर चुका है और अब आज के बच्चों में प्रेरणा का स्त्रोत बन रहा है।
नमस्कार! दोस्तों हम Hindi DNA में आपका हृदय से स्वागत करते हैं। आज इस पोस्ट के माध्यम से हम आपके नेत्रों को आपके मन को एक कहानी न्योछावर करने जा रहे हैं। Moral Stories in Hindi की इस श्रेणी में लिखी गई कहानी बेहद प्रचलित हुई हैं परन्तु इन्हें आपके नन्हें शैतानों को समझाने हेतु आसान भाषा में पेश करने की कोशिश करी गई है।
1. पेश है Moral Stories in Hindi: चिंतित व्यक्ति विकसित नहीं होता
समय की सुइयों को पीछे घुमाएं और भारत के उस रूप में ले जाएं जब साधुओं की धरती इस देश को कहा जाता था। उस जमाने में एक महान संत हुए थे। जिनके प्रत्येक और निकट के राज्यों में एक या एक से अधिक शिष्यों की मौजूदगी दर्ज थी।
इन्ही शिष्यों में एक थे सदानंद। सदानंद उस साधु के ज्ञान से काफी प्रभावित था एवं साधु भी सदानंद को अपना चहेता छात्र मानते थे। सदानंद ने एक युवा की उम्र तो धारण कर ली थी परन्तु उसका हृदय फिलहाल अभी एक छोटे बच्चे के मुताबिक ही था अर्थात सदानंद भोले व्यक्ति के समानार्थी थे।
साधु ने सदानंद से कई बार याचना करते हुए कहा कि “सदानंद तुम भी मेरी कुटिया में पधारो, वहाँ मौजूद हर भक्त को सही राह दिखाने का प्रयत्न करो।” परन्तु सदानंद हर वक्त टाल देता, कारण यह था कि सदानंद अपने परिवार से काफी स्नेह करता था। वह मानता था कि उसके जाने के पश्चात उसके बालकों का एवं उसकी अर्धांगनी का ख्याल कौन रखेगा?” इस पर साधु समझाते हुए कहते हैं कि “तुम नकारात्मक विचारों से भरे हुए हो, यह मात्र तुम्हारा वहम है, तुम्हारा परिवार सकुशल रहेगा।”
अगले दिवस जब सदानंद कुटिल पहुंचा और सत्संग में शामिल हुआ तो फिर साधु ने सदानंद को फिर से प्रस्ताव दिया कि वह हमेशा के लिए यहाँ आ जाए एवं ईश्वर को प्राप्त करने हेतु उनकी भक्ति में स्वंय को लीन कर दे।
सदानंद अब साधु की इच्छा पूर्ण करने के लिए मान गए। अब उन्हें इस बात की चिंता सता रही थी कि वे अपने परिवार को कैसे बताएंगे कि अब वह सन्यासी जीवन व्यतीत करने की इच्छा रखते हैं। इस पर साधु ने उनको एक युक्ति सुझाई। जिसके तहत साधु ने सदानंद को सांस रोकने की कला में निपुण किया।
सदानंद हर दिन प्रातः उठकर अपने समस्त परिवार के सदस्यों के साथ नदी में स्नान करने जाता था। ऐसे ही एक दिन जब वह अपने परिवार के साथ स्नान करने गया तो सदानंद ने अपनी सांस रोकने वाली कला से जल में सांस रोक लिया।
जिससे उनके परिवार वालो को लगा कि सदानंद नदी में विलीन हो गए। सदानंद के परिवार वालों ने उसे कई घंटों तक खोजने का प्रयास किया तब जाकर वह इस निर्णय पर यकीन करें।
जब पूरा परिवार थककर घर की ओर अपना उदास सा मुख लेकर पहुंच रहे होते हैं, तब रास्ते में साधु के कई शिष्यों से परिवार की भेंट होती है। जब उन सभी को यह मालूम होता है कि सदानंद इस पृथ्वी को छोड़ चुका है तो सभी ने मिलकर यह निर्णय किया कि सदानंद के परिवार वालों का खर्चा वह उठाएंगे।
दूसरी ओर सदानंद नदी से बाहर आकर अब साधु के आश्रम पहुंच जाता है। अब उसका जीवन ईश्वर के भक्ति को समर्पित कर देता है।
एक दिन सदानंद की पत्नी उस साधु के आश्रम पहुंच कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए पहुंचती है, जिसका ज्ञात जैसे ही सदानंद को होता है वह कुटिल में ही कहीं छिप जाता है ताकि वह अपनी पत्नी की बातें भी सुन सके एवं अपनी पत्नी के नजर भी न आए।
साधु:- “पुत्री हमें यह जानकर बेहद दुख हुआ, अपने प्रिय शिष्य की मृत्यु की खबर सुनी तो नैनों से जल बहने लगे। तुम्हारी हालात अब कैसी है ?”
सदानंद की पत्नी:- ” प्रणाम गुरु जी, इनकी पूर्ति कोई मनुष्य नहीं कर सकता है गयरुवर, परन्तु मेरा जीवन अब अच्छी स्थिति पर आ गया है। यह स्थिति पूर्व से भी बेहतर है।”
यह वाक्य जैसे ही साधु के कानों में घुसे वह मुस्कुरा पड़े, जैसे उन्हें इस बारे में पहले से ही मालूम हो।
सदानंद की पत्नी अब साधु के आगे अपने शीश झुकाते हुए आशीर्वाद प्राप्त करती है और वहाँ से प्रस्थान करती है। अपने पत्नी को जाते देखने के बाद सदानंद खुद को साधु के सामने लाता है।
साधु:- “अब तो तुम्हें यकीन हो गया न कि वह तुम्हारे बिना खुश हैं”
सदानंद: “नहीं मुझे अभी भी यकीन नहीं, उन्हें मेरी जरूरत अभी भी है।”
साधु:- “अगर तुम्हें उनकी खुशी का सबूत चाहिए तो तुम स्वयं जाकर पड़ताल करलो ताकि तुम्हें शांति मिले।
साधु से आज्ञा लेकर सदानंद अपने घर, अपने बच्चो एवं अपनी पत्नी पे नजर रखने लगा। सदानंद हर दिन उन पर नजर रखने लगा। उसने देखा कि उसका परिवार हर दिन की तरह सुबह जल्दी उठकर नहाने नदी पहुंच जाते।
खुशी खुशी नहाकर नदी से वापस आ जाते। बच्चे गुरुकुल में शिक्षा ग्रहण करने जाते। पत्नी भी अब आत्मनिर्भर हो चुकी थी वह अपने घर में से कुछ पैसों से कभी फल तो कभी सब्जियां खरीदती और उसे अपने कस्बे में बेच आती।
सदानंद की औरत अब कस्बे में एक उच्चस्तरीय व्यापारी महिला के रूप में खुद को साबित कर रही थी। वह बेहद खुश थी।
सदानंद यह दृश्य देख बेहद क्रोधित हुआ। उसे यह मानने में हिचक हो रही थी कि एक महिला अपने बुद्धि से घर चला सकती है। सदानंद को अपनी बीवी की खुशी हजम नहीं हो रही थी। सदानंद उसी क्षण अपने गुरु के पास गया और उससे अपनी मुश्किलों का हल निकालने के लिए कहा।
साधु ने सदानंद के विचारों का विरोध किया। सहजता से साधु ने सदानंद को स्वयं फैसला लेने को कहा। सदानंद ने पूरे कस्बे में यह अफवाह फैला दी कि जो भी सदानंद की बीवी के हाथ से फल या सब्जी लेगा उसकी मृत्यु हो जाएगी।
यह ऐलान होते ही उसकी इच्छा पूर्ण हो गई सभी कस्बा वासियों ने उससे फल सब्जी लेना बंद कर दिया। 2-3 दिन किसी शख्स ने भी उससे फल सब्जी नहीं ली। सदानंद फिर से नजर रखने के लिए अपने घर पहुंचा तो हैरान था। वहाँ अभी भी सब प्रसन्न थे। बच्चे खेलने कूदने में व्यस्त रहते और बीवी भी कुछ न बिकने के बावजूद वह खुश थी।
सदानंद ने फैसला किया कि अब वह घर लौट जाएगा। उसने अपने बच्चों के देर रात सोने का इंतजार किया। जैसे ही वह सोते हैं सदानंद घर के दरवाजे को खट खट करता है। सदानंद की बीवी यह ध्वनि सुनकर घबरा जाती है। वह धीमी आवाज में पूछती है “कौन है?”
इस पर सदानंद उतने ही धीमी आवाज में जवाब देता है। “मैं तुम्हारा पति सदानंद, दरवाजा खोलो।”
पत्नी:- “यह समय मजाक का नहीं मेरे पति को मरे हुए 2 महीने से ऊपर हो गए हैं।”
सदानंद:- “मैं मरा नही था।”
पत्नी:- “नहीं मैं नहीं मानती तुम्हारी बात को, चले जाओ यहाँ से अन्यथा मेरे बच्चे तुमसे डर जाएंगे।”
सदानंद:- “लेकिन मैं भूत नही हूँ, तो मेरे से क्यों डरेंगे।”
पत्नी:- मेरे पति को मरे हुए 2 महीने हो चुके हैं, दो महीने से वह घर की ओर मुड़ा ही नहीं, लेकिन अब आकर कोई कहे कि वह मेरे पति हैं तो वे मात्र उनकी आत्मा ही कह सकती है।”
सदानंद:- “अरे!, भाग्यवान तुम दरवाजा खोलो मैं ही हूँ, मैं तुम्हें फिर से खुश करने आया हूँ, अपने बच्चों के जीवन में फिर खुशियों के रंग भरने आया हूँ।”
पत्नी:- “नहीं मैं स्वंय बेहद अपने बच्चों एवं खुद को प्रसन्न करने में सक्षम हूँ, और अब तक कर भी रही हूँ, कृपया तुम जो भी हो यहाँ से चले जाओ।
सदानंद यह सुनकर वहाँ से दुखी होकर वहाँ से चले जाता है।
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दोस्तों यह Moral Stories in Hindi श्रेणी में लिखी गई कहानी हमें यह बतलाती है कि जीवन किसी के होने या न होने से निर्धारित नहीं होती। हो सकता है वह आप के जीवन मे बेहद महत्व रखता हो, परन्तु महत्व और जरूरी होने में बेहद फर्क है। जैसे इस Moral Stories in Hindi में सदानंद को लगता था कि उसके बिना उसका परिवार खुश नहीं रह पाएगा। परन्तु हुआ इससे विपरीत सदानंद की पत्नी ने अपने हाथ में जिम्मा लिया एवं अपने बच्चों को वह सभी खुशियां प्रदान करी।
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2. Moral Stories in Hindi – सबसे बड़ा आत्म-सम्मान
जून का महीना था, वर्मा जी घर से कुछ ही दूरी पर निकले होंगे की उन्हें याद आया की वह अपना छाता घर ही भूल आयें हैं। घर से निकलने के पश्चात वर्मा जी घर वापस जाने को अशुभ मानते थे।
अपने बनाए जाल में लिपटे बेचारे वर्मा जी! कड़ी धूप में चाह कर भी घर नहीं जा सकते थे। वर्मा जी की एक नियमित दिनचर्या थी, वो सुबह उठते, नित कर्म से निपटने के पश्चात अपना छाता लेते और सुबह की सैर के लिए चल पड़ते।
जिस रास्ते से वह प्रायः गुजरा करते थे उस रास्ते में बहुत सारे खोमचे वाले, ठेले वाले, फल विक्रेता और सड़क के किनारे दुकान लगा कर गुजर बसर करने वाले रहा करते थे। अनायास ही वर्मा जी की निगाह रोज़ उन लोगों पर पड़ जाती थी।
वर्मा जी एक संपन्न परिवार से थे, परन्तु मजाल की कोई उनकी जेब से एक रुपया निकलवाकर दिखाए। महा कंजूस और अपनी दौलत की धौंस लिए फिरने वाले वर्मा जी को शहर का हर दुकानदार जानता था।
जब भी वर्मा जी खरीदारी करने जाते सभी दुकानदार ईश्वर से दुआ करते की ऐसा कंजूस आदमी उनकी दुकान पर न आये। एक बार की बात है वर्मा जी बाज़ार से खरीदारी करके लौट रहे थे। उनके घर से थोड़ी ही दूर सड़क के किनारे एक वृद्ध आदमी कुछ पुरानी किताबें और कलमों को लेकर बैठा था।
वैसे तो वर्मा जी रोज़ उसको आते जाते देखते थे परन्तु उन्होंने कभी उसके पास जाकर नहीं देखा था कि आखिर वह बैठ कर वहाँ करता क्या है? आज अचानक उनका मन हुआ की उस आदमी से बात की जाए और उसे अपने बारे में बताया जाए।
अकसर वह लोगों को घूम-घूम कर अपने रहीशी के किस्से सुनाकर उन्हें प्रभावित करने की कोशिश करते किया थे। आज उन्होंने उस वृद्ध को अपने बारे में बताने की सोची। उन्होंने पास जाकर देखा तो पाया की एक टोकरी में कुछ नए क़लम, अख़बार के टुकड़े और कुछ पुरानी किताबें हैं।
उन्हें उस वृद्ध व्यक्ति पर दया आ गई। उन्होंने अपनी जेब से कुछ सिक्के निकाले और वृद्ध व्यक्ति के टोकरी में डाला और वापस जाने लगे। आये तो थे प्रशंसा की खातिर परन्तु कोई लाभ न होता हुआ देखकर उन्होंने वापस लौट जाना ही बेहतर समझा।
जब वह जाने लगे तो वृद्ध व्यक्ति ने उन्हें आवाज़ लगाईं, “रुकिए सेठ जी, इन सिक्कों के बदले कुछ सामान तो लेते जाइए”। वर्मा जी ने वृद्ध से कहा की “ये सिक्के मैंने अपनी ख़ुशी से दिए है, जो वाकई उन्होंने उस वृद्ध आदमी को भीख स्वरूप दिए थे”।
वृद्ध ने बड़ी विनम्रता से वर्मा जी से कहा “सेठ जी माफ़ कीजियेगा परन्तु अगर आपने इन पैसों के बदले अगर कुछ नहीं लिया तो मैं ये पैसे स्वीकार नहीं करूँगा। वर्मा जी को उस वृद्ध की बात सुनकर बड़ी हैरानी हुई।
उन्होंने उत्सुकता भरी नज़रों से उस वृद्ध की तरफ़ देखा और पूछा ‘क्यों क्या दिक्कत है, तुम ज़रूरत में हो, तुम्हारी हालत एकदम दरिद्रों वाली है फिर तुम क्यों नहीं ले सकते” ? भिखारी ने कहा ” इन सिक्कों के बदले अगर आप कुछ सामान लेंगे तो मुझे लगेगा मैंने कुछ काम करके पैसा कमाया है, और अगर आपने कुछ नहीं लिया तो ये पैसे मुझे भीख की तरह लगेंगे और मैं सुकून से इन पैसों का खाना भी नहीं खा पाऊँगा तो कृपया आप कुछ ले जाइए।
एक वृद्ध के मुख से ऐसी बाते सुनकर वर्मा जी एकदम शांत चित हो गए। जीवन में पहली बार उन्हें ऐसा कोई मिला था, जो दरिद्र होकर भी आत्म-सम्मान की रक्षा कर रहा था। वह न जाने कितने ऐसे लोगों से मिले थे जिन्होंने चंद पैसो में अपना ईमान बेच दिया होगा, आखिरकार वह ख़ुद भी तो ऐसे ही थे।
उनकी आँखें भर आई, उन्होंने जेब से 100-100 के दो नोट निकाले और उस टोकरी में रखते हुए, सारी कलमें ले ली। उन्होंने वृद्ध से कहा “अब तो ठीक है, अब तो तुम्हें नहीं लगेगा की तुमने भीख लिया है’ , वृद्ध ने सहमति में सिर हिलाया”।
वर्मा जी मन में एक नए पाठ को लिए घर की तरफ़ प्रस्थान चल दिए। वह उन कलमों को खरीद कर खुश थे जो बमुश्किल से 50 रुपये के होंगे, जिनके लिए उन्होंने 200 रुपये अदा किए थे। आखिरकार वह समझ ही गए थे, की हर इंसान की अपनी इज्ज़त होती है, हर किसी को अधिकार है कि वह अपनी इज़्ज़त, मान मर्यादा की रक्षा करें।
3. Moral Stories in Hindi – मन की जीत
किसी राज्य में एक प्रसिद्ध चित्रकार रहता था। उसकी चित्रकारी की चर्चा दूर-दूर तक थी। उसकी बनाई चित्रकारी महंगे दामों पर बिका करती थी। राजा ने उसे अपने दरबार में शाही चित्रकार का दर्जा दिया हुआ था। एक बार की बात है, राजा का दरबार लगा था।
फरियादी अपनी-अपनी फ़रियाद राजा से कर रहे थे। दरबार मंत्रियों और विशिष्ट जनों से सुशोभित था। एक फ़रियादी ने राजा के सामने एक बड़ी विचित्र फ़रियाद रखी।
उसने राजा से कहा की वह एक मनोवैज्ञानिक चिंता में है और वह चिंता उसे हर पल परेशान कर रही है , ना सोने देती है और न चैन से खाने देती है, अगर इसका समाधान नहीं निकाला गया तो वह अपने प्राण त्याग देगा।
फ़रियादी की ऐसी बात सुनकर राजा को बड़ी हैरानी हुई की आखिर ऐसी कौन-सी समस्या है जिसकी वजह से आदमी अपने प्राण त्यागना चाहता है।
राजा ने उस आदमी से उसका कारण पूछा। फ़रियादी ने बताया की वह बहुत पहले एक अच्छा मूर्तिकार हुआ करता था, बड़ी अच्छी-अच्छी मूर्तियाँ बनाया करता था। एक दिन उसने बहुत ही सुन्दर मूर्ति बनाई और उसे बेचने के लिए सड़क के किनारे खड़ा कर दिया।
कुछ दिनों के पश्चात उस मूर्ति के आगे एक ख़त मिला। ख़त की बात सुनते ही दरबार में बैठे सभी दरबारियों की उत्सुकता बढ़ गई। राजा ने पूछा “क्या था ख़त में” ? मूर्तिकार ने बताया की उसमें लिखा था ‘ये है दुनिया की सबसे बदसूरत मूर्ति’।
बस उस दिन के बाद से वह कोई भी मूर्ति अच्छे से नहीं बना पाया। उससे कोई भी मूर्ति अच्छी नहीं बन पा रही हैं। उसके मन में ये बात घर कर गई हैं की वो अच्छा मूर्तिकार नहीं है।
ऐसा पहली बार हुआ था कि कोई ऐसा फरियादी राजा के दरबार में आया हो। राजा को समझ नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए? मामला कला से जुड़ा था, इसलिए उन्होंने अपने शाही चित्रकार को कोई समाधान निकालने के लिए कहा। शाही चित्रकार ने राजा से 2 दिन का वक़्त माँगा और चला गया।
चित्रकार ने एक बहुत सुन्दर चित्रकारी बनाई और शहर के चौराहे पर टंगवा दिया। उसपर उसने लिखा की जिस किसी को भी इस चित्रकारी में कमी नज़र आये वो काले कलम से एक निशान लगा दें।
शाम ढलने पर जब शाही चित्रकार उस मूर्तिकार को लेकर चौराहे पर पहुंचा तो देखा की पुरी चित्रकारी काले कलम के निशान से भरी पड़ी है। मूर्तिकार को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था की आखिर चित्रकार करना क्या चाहता है?
अगली सुबह चित्रकार ने दूसरी चित्रकारी बनाई जो आधी अधूरी थी और उसे उसी चौराहे पर टंगवा दिया। इस बार उस पर लिखा था की चित्रकारी अधूरी है इसे पुरा करें और इसे और सुंदर बनाएं।
उसी शाम को को चित्रकार मूर्तिकार को लेकर वहाँ पहुँचा तो देखा की चित्रकारी सुबह की तरह आधी अधूरी ही टंगी है। उसमें न तो किसी कलम के निशान थे और न किसी ने उसे पुरा करने की कोशिश की थी। मूर्तिकार को अब समझते देर न लगी।
वह समझ गया की ये दुनिया कमियाँ निकालने, बुराई करने और लोगों को गिराने में अपनी सारी ऊर्जा ख़र्च करती है, बनाने में नहीं। ये मनुष्य पर निर्भर करता है कि वो उन नकारात्मक चीज़ों से कैसे बचता है। हर किसी का अपना नजरिया है, किसी और के नजरिये से अपनी जिन्दगी की दिशा और दशा कभी तय न करें।
4. Moral Stories in Hindi – क़दमों के निशान
एक समुद्र में एक कछुवा रहता था। कछुवा उस समुद्र में अकेला रहता, खूब मज़े से खाता पीता और घूमता। समुद्र से कछुवे की अच्छी दोस्ती हो गई थी। उसकी लहरों पर अठखेलियाँ करना, उसकी लहरों के साथ झूमना कछुवे को खूब भाता था।
कछुवे की ज़िन्दगी बड़े मज़े में कट रही थी। एक दिन प्रातःकाल कछुवे ने रेत पर खेलने की योजना बनाई। समुद्र से निकलकर वह रेत पर खेलने पहुंचा। कछुवा रेत पर आहिस्ता-आहिस्ता चलता, उसके रेत पर चलने की वजह से उसके पैरो के निशान बनते जाते।
जैसे-जैसे वह आगे बढ़ता पीछे-पीछे उसके निशान बनते जा रहे थे। उसे ऐसा करने में बड़ा मज़ा आ रहा था, उसने सोचा क्यों न गोल-गोल घूम कर बड़े आकार का वृत्त बनाया जाए।
कछुवे ने बड़ी मेहनत से एक बड़ा वृत्त बनाया। उसे ऐसा करने में काफ़ी वक़्त लगा। कछुवा बड़ा खुश था कि उसने अपने पैरो के निशान से एक बड़ा सुंदर वृत्त बनाया है। फिर क्या था इसी बीच समुद्र की एक लहर आई और कछुवे द्वारा बनाए वृत्त को बहा ले गई।
कछुवा उदास हो गया। उसकी सारी मेहनत पर पानी फिर गया। उसने फिर से वही किया, परिश्रम करके फिर से एक वृत्त बनाया। समुद्र की लहरों ने इस बार भी वही किया। कछुवा बार-बार वृत्त बनाता, समुद्र की लहरें उसके द्वारे बनाये वृत्त को हर बार बहा ले जाती।
कछुवे को क्रोध आ गया, वह समुद्र के पास पहुँचा और शिकायत भरे लहजे में समुद्र से कहा “मित्र तुम तो मुझे मित्र कहते हो , क्या तुमसे मेरी ख़ुशी नहीं देखी जाती”? इतनी मेहनत से मैंने कई बार वृत्त बनाया तुमने उसे मिनटों में बहा दिया। ये कैसी मित्रता है?
समुद्र मुसकुराया और बोला ” हे मित्र घाट के उस पार कुछ मछुवारे नदी पार करके इस तरफ़ ही आ रहे है, ऐसे में अगर वह तुम्हारे क़दमों के निशान देखते तो तुम्हारी जान को ख़तरा हो सकता था।
अगर उन्हें तुम्हारे बारे में मालूम चलता तो वह तुम्हें पकड़ कर ले जाते और पका कर खा जाते। ज़िंदा रहोगे तभी तो अगली बार वृत्त बना पाओगे। मैंने तो अपनी मित्रता का फ़र्ज़ अदा किया है। कछुवा समुद्र की बात सुनकर लज्जित हो गया।
निष्कर्ष-कई बार चीज़ें हमारे हिसाब से नहीं होती। हम बहुत परिश्रम करते है, खुद को तपाते है परन्तु वह चीज़ हमें नहीं मिलती, इसका मतलब ये नहीं की हम उस वस्तु के काबिल नहीं है या ईश्वर हमारे साथ बुरा कर रहे है।
इसका मतलब ये भी हो सकता है कि वह हमें इससे बेहतर देना चाहते हो। हर सिक्के के दो पहलू होते है, किसी एक पहलू को देखकर कुछ भी तय नहीं करना चाहिए। ईश्वर वो नहीं देता जो आप चाहते है, ईश्वर वो देता है जो आपके लिए बेहतर है। इसलिए नियति के फैसले पर उँगली उठाने से पहले आप थोड़ा संयम ज़रूर रखें।
5. Moral Stories in Hindi – परोपकार
कौशल नामक राज्य में एक शराबी रहता था। अपने शराब पीने के शौक के लिए वह पूरे शहर में प्रसिद्ध था। कई लोगों ने शराबी के साथ-साथ उसे जुवारी और रंगीन मिज़ाज व्यक्ति का तमगा भी दिया हुआ था। शराबी जहाँ से भी गुजरता सभी उससे दूर भागते।
कोई उसे दुत्कारता तो कोई उसे लात मारता। पूरे दिन नशे में चूर शराबी शहर की सड़कों पर मारा-मारा फिरता। शाम ढलते ही उसकी पत्नी उसे किसी तरह से ढूंढ कर घर ले जाती।
सभी हैरान थे की इतनी बुरी नियत का होते हुए भी उसकी पत्नी उसे छोड़ती क्यों नहीं? ये सब जानते हुए भी की वह वेश्याओं के पास जाता है उसकी पत्नी उसे सड़क पर मरने के लिए क्यों नहीं छोड़ देती?
एक दिन कौशल नगर के राजा को नगर के सबसे परोपकारी और सच्चे इंसान की खोज करने का खयाल आया। रूप बदलकर वह नगर की सड़कों पर घुमने लगा। घुमते-घुमते उसने देखा की एक आदमी सड़क के किनारे पड़ा है, लोग उसके आस-पास से गुजर रहे है पर कोई उसकी तरफ़ ध्यान नहीं दे रहा।
उसे बड़ी हैरानी हुई की उसके नगर में ऐसे भी लोग रहते है जिनके अन्दर दया नाम की चीज़ नहीं है। वह उस आदमी के पास गया और उसकी जांच पड़ताल करने लगा। उसने पाया की वह आदमी जो सड़क के किनारे पड़ा था, उसमें प्राण नहीं थे।
शायद ज्यादा शराब पीने की वजह से वो मर चुका था। राजा हक्का-बक्का रह गया। पास खड़ा एक दूसरा व्यक्ति सब कुछ देख रहा। दुसरा व्यक्ति जो राजा को न पहचान पाया, उसने राजा से कहा “आप इसे रहने दे, इसका रोज़ का यही काम है, शाम को इसकी बीवी इसे ले जाएगी”। राजा हैरान था कि उस आदमी ने शराबी को देखने की ज़हमत तक न उठाई और सलाह देने लगा।
राजा उस शराबी की लाश को कंधे पर लादकर पूछते-पूछते उसके घर पहुँचा। उसने शराबी की पत्नी को बताया उसका पति मर चुका है। पत्नी फुट-फुट कर रोने लगी। राजा ने कहा “तुम रो रही हो, दुनिया वाले कह रहे है अच्छा हुआ मर गया, एक बोझ धरती से ख़त्म हो गया”।
शराबी की पत्नी के आँखों में रोष उमड़ आया। उसने राजा का हाथ पकड़ा और एक उसे एक दूसरे कमरे में लेकर गयी जहाँ शराब की अनगिनत बोतलें रखी थी, पास से गुजरती एक नाली से सिर्फ शराब की बदबू आ रही थी, पुरी नाली शराब से भरी पड़ी थी।
राजा ये देखकर हैरान था। महिला ने राजा को बताया की वह रोज़ शाम मधुशाला से शराब की कई बोतलें लाता था, कुछ घूंट पीकर पुरी बोतल की शराब नाली में बहा देता। उसका मानना था कि अगर ये बोतल किसी और के घर में गई तो न जाने कितनों का घर उजाड़ देगी। कितने बच्चों का भविष्य ख़राब कर देगी। कितने बच्चे यतीम हो जायेंगे।
फिर वह रजा को वेश्या के पास ले गई। वेश्या ने बताया की वह बहुत भले आदमी थे। वह मेरे पास रोज़ आते और हाथों में नोट की थैली रख, एक रात और सुकून से जीने के लिए कहते।
न जाने कितनी रातें उन्होंने मुझे उपहार स्वरूप दी होंगी। वेश्या ने शराबी को देवता कहकर बुलाया। राजा को शराबी द्वारा किए गए परमार्थ को समझते देर न लगी। राजा ने पुरी इज़्ज़त के साथ शराबी का अंतिम संस्कार किया और शहर के बीचों-बीच उसकी मूर्ति लगाईं।
निष्कर्ष-परमार्थ वो नहीं जिसके लिए दिखावा किया जाए, परमार्थ तो वो है जो बिना किसी स्वार्थ के किया जाए। सेवा अर्थहीन होती हैं, परन्तु निरर्थक नहीं होती।
6. Moral Stories in Hindi – ज्ञान की कीमत
यह उस समय की बात है जब बादशाह अकबर राजा हुआ करते थे। बादशाह अकबर के दरबार में एक से बढ़कर एक धुरंधर थे। कोई ज्ञान का प्रतीक था, कोई संगीत का, तो कोई विधि का तो कोई राजनीति का। उन्हीं में से एक विद्वान थे अबू अली।
लोग उन्हें सच्चाई की मूरत और त्याग का देवता मानते थे। अबू अली अपने ज्ञान और अपनी बुद्धिमता के लिए पुरे शहर में प्रसिद्ध थे।
एक बार सहारा रेगिस्तान का एक शेख उनसे मिलने आया। शेख को बड़ी तमन्ना थी की वह अबू अली से शिक्षा प्राप्त करें। शेख पुरस्कार स्वरूप उनके लिए काफ़ी तोहफे लाया।
अली के चरणों में पड़कर शेख ने अपने मन की इच्छा रखी, की वह उनका अनुयायी बनना चाहता है, उनसे शिक्षा प्राप्त करना चाहता है। अबू प्रथम दृष्टया तो राजी नहीं हुए परन्तु शेख की अभिलाषा को देख कर वह इनकार न कर पाए।
अबू ने शिक्षा देने के बदले शेख से 100 मोहरों की मांग की। शेख अबू को त्याग और विरक्ति भाव वाला मानता था। अबू ऐसे मोहरों की मांग करेंगे उसे ज़रा भी उम्मीद न थी। वह सोचने लगा की जिस भक्ति भाव के लिए वह यहाँ आया है उसके लिए उसे पैसे देने होंगे तो क्या फ़ायदा?
अनेकों सवालों के बीच शेख ने 100 मोहरें अबू को अदा किए और उनके सानिध्य में शिक्षा ग्रहण करने लगा। कई महीने गुजर गए, शेख अबू की दी हुई सारी तालीम ग्रहण कर चुका था। उसका जाने का समय हो चुका था। जाने से पहले शेख अबू से आशीर्वाद ग्रहण करने पहुँचा।
अबू ने उसे कुछ देर बैठने के लिए कहा और कुछ लेने अपने शयन कक्ष में गए। जब वह लौटे तो उनके हाथ में 100 मोहरों की वह पोटली थी जो शेख ने शिक्षा ग्रहण करने से पूर्व अबू को दी थी। पोटली को देते हुए अबू ने कहा ये लो तुम्हारी अमानत।
अबू हैरान हो गया की अगर वापस लेना ही था तो लिया क्यों था? शेख अपने मन के सवालों को न रोक पाया और अबू द्वारा पहले मोहरों को लेने और बाद में उसे लौटाने का राज पूछने लगा।
अबू ने उसे समझाते हुए कहा की “मानव की प्रकृति बड़ी लोभी क़िस्म की होती है, वह मुफ्त की या बिना मूल्य चुकाए किसी चीज़ को पा ले तो उसकी कद्र नहीं करता, अगर मैं तुम्हें बिना मोहरों के शिक्षा देता तो शायद तुम उतने एकाग्र होकर शिक्षा ग्रहण नहीं करते जितनी एकाग्रता मोहरें देने के बाद तुमने दिखाई”।
हर चीज़ की क़ीमत होती है और पाने वाले को उसे अदा करना ही पड़ता है। शेख समझ गया की उसने जो अबू के बारे में सुना था अबू उससे बढ़कर है। उनके चरणों में गिरकर शेख ने अबू से माफ़ी मांगी।
निष्कर्ष- दुनिया में हर चीज़ का मूल्य होता है, हवा पानी, अग्नि जल यहाँ तक की आपके व्यवहार का भी। आपको सम्मान पाने के लिए भी सम्मान करना आना चाहिए। फल खाने के लिए पेड़ लगाना पड़ता है। कहने का तात्पर्य ये है कि जब तक आप किसी चीज़ का मूल्य नहीं चुकाते आप उस वस्तु की क़ीमत नहीं समझ सकते।
7. Moral Stories in Hindi – स्नेह का मूल्य
एक छोटी लड़की आइसक्रीम पार्लर के सामने खड़ी थी। बहुत देर से वह आइसक्रीम वाले को टकटकी लगाए देख रही थी। वह शहर का सबसे सुन्दर और नामी पार्लर था, जहाँ आराम से बैठ कर आइसक्रीम खाने की व्यवस्था थी। घंटो गुजर जाने के बाद भी वह लड़की वही खड़ी रही।
आइसक्रीम वाला उसे बड़ी देर से उसे देख रहा था जब उससे नही रहा गया तो उसने लड़की से वहां खड़े होने का कारण पूछा। लड़की ने कहा की वह रोज़ ऐसे ही यहाँ आती है और आते जाते लोगों को आइसक्रीम खाते देखती है।
आइसक्रीम वाला बड़ा हैरान हुआ की आइसक्रीम इतनी महंगी भी नहीं, फिर ये ऐसा क्यों करती है? आइसक्रीम वाले ने उससे बड़े प्यार से पूछा “की क्या मैं तुम्हे आइसक्रीम दूँ, खाओगी”। लड़की एकदम चुप थी।
आइसक्रीम वाले ने फिर पूछा की “क्या मैं तुम्हें आइसक्रीम दूँ तुम खाओगी, मैं पैसे नहीं लूँगा”। लकड़ी कुछ न बोली आइसक्रीम वाले को गुस्सा आ गया। वह गुस्से में उठकर वहाँ से चला गया।
लड़की अगले दिन फिर वहाँ आई। इस बार वह सीधा आइसक्रीम वाले के पास गई और पोस्टर में लगी आइसक्रीम की तरफ़ देख कर उसका मूल्य पूछा। आइसक्रीम वाले ने कहा “15 रुपये”। लड़की ने दूसरी आइसक्रीम का मूल्य पूछा।
आइसक्रीम वाले ने कहा “12 रुपये”। लड़की ने अपनी जेब से कुछ चिल्लर जो 1 और 2 रुपये के थे को जोड़े और आइसक्रीम वाले की तरफ़ बढ़ाए। आइसक्रीम वाला गुस्से में था, एक तो कल का उसका गुस्सा ऊपर से लड़की के बार-बार आइसक्रीम के मूल्य पूछने को लेकर वह क्रोधित हो गया, परन्तु जैसे ही लड़की ने खुल्ले पैसे अपने नन्हे हाथों से दिए, उसे लड़की पर दया आ गई।
ऐसा लगा जैसे करुणा का भाव उसमें उमड़ आया हो। उसने लड़की को आइसक्रीम दी और उसे देखता रह गया। शाम को जब कारोबार ख़त्म करके आइसक्रीम वाला जाने लगा तो उसने देखा की जिस प्लेट में उस लड़की ने आइसक्रीम खाई थी उसमें 3 रुपये खुल्ले पड़े थे। वह लड़की द्वारा आइसक्रीम वाले को दी हुई “टिप” थी।
आइसक्रीम वाला कुछ देर के लिए सोच में डूब गया की, किस तरह लड़की ने पैसे बचा कर उसको ‘टिप’ दिया। लड़की द्वारा एक-एक रुपये जोड़ कर उसमें से आइसक्रीम खाना और बचा कर ‘टिप’ देना आइसक्रीम वाले के दिल को छू गया। लड़की द्वारा दिए 3 रुपये उसके लिए किसी बड़े उपहार से कम नहीं था।
निष्कर्ष- आपके पास जो कुछ भी है उसी में लोगों की सेवा करने की भावना रखे। आदमी की जेब बड़ी हो तो आदमी दुनिया खरीदने का सपना देखता है, परन्तु आदमी का दिल बड़ा हो तो वह लोगों के दिलों पर राज करता है। दोनों वाक्यों का अपना-अपना भाव है। आदमी पैसें से नहीं मन से बड़ा होना चाहिए।
8. Moral Stories in Hindi – प्रसन्नता की खोज
एक बार 40 प्रतिनिधियों का मंडल किसी वक्ता को सुनने के लिए जा रहा था। निर्धारित स्थान पर सभी को समय पर पहुँचना था, इसलिए सभी जल्दी में थे। रास्ते में उन्हें एक दुर्घटना ग्रस्त कार दिखाई दी, जिसमें एक घायल व्यक्ति दर्द से तड़प रहा था।
अब दुविधा ये थी की वह उसका इलाज करायें या सेमिनार को अटेंड करे। उन्होंने ने उस घायल आदमी को वही छोड़ दिया और सेमिनार के लिए निकल पड़े।
सेमिनार का विषय था ‘ख़ुशी की खोज’। कार्यक्रम शुरू हुआ, वक्ता ख़ुशी के बारे में अपना वक्तव्य दे रहा था। सभी बड़े ध्यान से सुन रहे थे। वक्ता बोलते-बोलते अचानक चुप हो गया। सभी की निगाहें वक्ता की तरफ मुड़ गई की आखिर वक्ता चुप क्यों हो गया?
चुप्पी तोड़ते हुए वक्ता ने कहा “सभी एक-एक गुब्बारा लेंगे और उमसे हवा भर कर अपना-अपना नाम लिखेंगे’। सभी सदस्यों ने ऐसा ही किया। वक्ता ने उन सभी गुब्बारों को एक कमरे में छोड़ दिया।
ऐसा करने के पश्चात वक्ता ने सभी को अपने-अपने नाम का गुब्बारा ढूँढने के लिए कहा। वक्ता ने कहा जो पहले ढूंढेगा वही विजेता होगा, साथ में ये भी हिदायत दी की गुब्बारा सही सलामत होना चाहिए। पुरा कमरा गुब्बारों से भरा हुआ था।
सभी लोगो में हलचल होने लगी, आपाधापी करके सब अपने-अपने नाम का गुब्बारा ढूँढने लगे। लोगों में जल्दबाजी की वजह से भगदड़ मच गई। कोई भी व्यक्ति अपने नाम का गुब्बारा नहीं ढूँढ़ पाया। जल्दी गुब्बारा न मिलने पर कुछ व्यक्ति क्रोधित हो गए और सभी ने एक दूसरे के नाम का गुब्बारा फोड़ दिया।
वक्ता ने सभी को फिर से उसी क्रिया-कलाप को दोहराने के लिए कहा पर इस बार शर्त ये थी की सभी को एक दूसरे के नाम का गुब्बारा ढूँढ कर देना था। सभी ने बड़े इत्मीनान से एक दूसरे के गुब्बारा ढूँढ कर दे दिया। कही कोई हलचल नहीं हुई, सभी ने प्रसन्नता पूर्वक अपना-अपना टास्क पुरा किया।
वक्ता ने अंत में सभी को प्रसन्नता का मतलब बताया की प्रसन्नता का मतलब प्रसन्नता को ढूँढने में नहीं प्रसन्नता को दूसरों के साथ बाँटने में है। प्रसन्नता आपके अन्दर है उसे कही ढूँढने की आवश्यकता नहीं।
प्रतिनिधि मंडल के सभी सदस्य सुबह के अपने किए पर शर्मिंदा थे। उन्हें समझ आ गया था की उस घायल व्यक्ति की मदद करना उन्हें अथाह प्रसन्नता का भागी बना सकता था परन्तु उन्होंने ऐसा नहीं किया।
निष्कर्ष- हम ज़िन्दगी भर प्रसन्नता को ढूँढने की कोशिश करते है। कभी किसी में, कभी किसी में, पर ख़ुद के अन्दर नहीं झांकते। प्रसन्नता कोई वस्तु नहीं है और न ही कोई तलाश है। ये सब में है, आपमें, मुझमें हर किसी में, बस ज़रूरत है तो एक दूसरे के साथ सेवा भाव से व्यवहार करने की। एक दूसरे के सुख-दुःख में साथ देने की क्योंकि जब हम ऐसा कर रहे होते है तो प्रसन्नता ढूँढते हुए हम तक खुद आती है।
9. Moral Stories in Hindi – एक प्रयास
जर्मनी का एक बालक जिसका नाम विलहेम था बड़े उदंड क़िस्म का बालक था। दिन भर खेलते रहना, पढ़ाई में ध्यान न लगाना और शरारत करते रहना विलहेम की आदत बन गई थी। विलहेम की माँ उसकी आदतों से बड़ी परेशान थी।
उन्हें डर था कि ना जाने आगे जाकर विलहेम का क्या होगा, अगर वह न सुधरा तो उसकी ज़िन्दगी उसे कहाँ ले जायेगी? विलहेम एक दिन माँ के साथ स्कूल जा रहा था। रास्ते में उसने देखा की कुछ बच्चे सड़क पर खेल रहे है।
सड़क पर खेलते बच्चों को देख विलहेम बड़ा खुश हुआ और माँ से कहा “ आप क्यों हर वक़्त मुझे डांटते रहते हो, ये भी तो बच्चे है! कितने मज़े से खेल रहे है। उन्हें तो कोई कुछ नहीं कहता फिर आप मेरे साथ ऐसा व्यवहार क्यों करती हो”? बालक के मुख से ऐसा सवाल सुनकर विलहेम की माँ स्तब्ध रह गई। उन्होंने उसे वहाँ कुछ नहीं कहा।
रविवार का दिन था स्कूल की छुट्टी थी, विलहेम बगीचें में खेल रहा था। माँ ने विलहेम का हाथ पकड़ा और उसे घर के बाहर उगे हुए झाड़-जंगल दिखाते हुवे बोली “क्या तुम जानते हो इन्हें किसने जन्म दिया है? विलहेम ने कहा “ माँ ये तो बारिश, आंधी, सूरज की देन है, ये तो ख़ुद ही उग जाते है, इन्हें सूरज, बारिश और हवा कही भी उगा देती है”।
फिर माँ विलहेम को गुलाब के गमलों के पास ले गई जो खुशबू से सुशोभित थे और हवा में लहलहा रहे थे। माँ ने कहा इन्हें किसने उगाया? विलहेम ने कहा ” इन्हें तो पिताजी ने समय-समय पर खाद पानी और सही मात्रा में सूरज की किरणें देकर उगाया है। विलहेम ये नहीं समझ पा रहा था कि माँ ये सब क्यों दिखा रही है।
विलहेम की माँ ने बोलना शुरु किया, “ बेटा जिसे सही और संतुलित परवरिश, शिक्षा और व्यवहार नहीं मिलता वह बिलकुल इसी तरह झाड़-जंगल बन जाता है, इसके ठीक विपरीत जिसे सही समय पर अच्छी शिक्षा और देखभाल मिलती है वह गुलाब बन जाता है, इंसान का परिवेश ही उसे अच्छा और बुरा बनाता”। विलहेम माँ की बात को बड़े ध्यान से सुन रहा था।
उसे समझते देर न लगी की माँ उसे क्या समझाना चाहती है। वही विलहेम आगे जाकर विलहेम रोएंग्न के नाम से प्रसिद्ध हुआ जिसने X- रे-किरणों की खोज की।
निष्कर्ष- जीवन के आरंभिक काल में या यु कहें की युवावस्था में इंसान मिट्टी के कच्चे घड़े के समान होता है, जिसे कुम्हार थाप-थाप कर घड़े का रूप देता है। कुम्हार का हाथों से ठोकना घड़े को सही आकर प्रदान करता है ठीक उसी प्रकार माँ-बाप बच्चों को अगर डांटते है फटकारते है ,या फिर किसी चीज़ के लिए बाध्य करते है, तो उसका मतलब ये नहीं होता की वो हमारे दुश्मन है, उनका एकमात्र उद्देश्य हमें जीवन का सही मार्ग दिखाना होता है।
10. Moral Stories in Hindi – बुद्धिमता
परिस्थितियाँ कभी जीवन में एक जैसी नहीं रहती, जीवन के रास्ते में उतार चढ़ाव तो आते ही रहते हैं। जीवन के प्रति आपकी सोच तय करती है कि कठिन परिस्थितियों का सामना आप कैसे करते हैं? क्या आपके अंदर वह काबिलियत है जो हर परिस्थिति से आपको बाहर निकाल सके?
ये कहानी कुछ इसी स्थिति को दर्शाती है। बहुत समय पहले की बात है, एक व्यापारी ने किसी धनी साहूकार से कुछ पैसें ब्याज पर उधार लिया था परन्तु व्यापार में नुक़सान हो जाने की वजह से वह साहूकार को पैसें लौटा नहीं पा रहा था।
व्यापारी की एक बहुत खूबसूरत बेटी थी। साहूकार की नज़र व्यापारी की बेटी पर थी। साहूकार बड़ा कुटिल था, उसने सोचा कि व्यापारी पैसा तो वापस कर नहीं पा रहा है तो क्यों ना इसकी परिस्थिति का फायदा उठाया जाए। उसने व्यापारी के समक्ष एक प्रस्ताव रखा कि अगर वह अपनी बेटी की शादी उससे से कर दे तो वह व्यापारी का सारा कर्जा माफ़ कर देगा।
व्यापारी बेचारा विवश था। मरता क्या ना करता, उसने अपनी बेटी को सारी बात बताई। समस्या बड़ी थी। साहूकार अधेड़ उम्र का कुरूप व्यक्ति था। अब व्यापारी की बेटी के आगे 2 ही रास्ते थे–पहला, या तो साहूकार से विवाह करने से इनकार कर दे और अपने पिता को कर्ज़ में डूबा रहने दे, दूसरा, साहूकार से ख़ुशी-ख़ुशी विवाह कर ले ताकि उसके पिता क़र्ज़ से मुक्त हो जाए।
मित्रों, अकसर हमारे जीवन में भी ऐसे मोड़ आते हैं जब हमें यक़ीन होने लगता है कि अब कोई रास्ता नहीं बचा है ,हम बुरी तरह फंस चुके हैं। अख़बारों में सुनने में आता है कि लोग आत्महत्या तक कर लेते हैं, लेकिन अपने दिमाग़ को पानी की तरह रखिये, एकदम निर्मल, शांत और चलायमान। पानी को देखा है? पानी हर जगह से अपना रास्ता निकाल ही लेता है। ठीक वैसे ही बन जाओ।
लड़की दिमाग़ से गतिमान थी। लड़की ने साहूकार के आगे एक शर्त रखी कि साहूकार एक थैला लायें और उसमें दो रंग के पत्थर डाले, एक सफ़ेद रंग का तथा दूसरा काले रंग का। लड़की थैले से कोई एक पत्थर निकालेगी।
पत्थर अगर काला निकलता है तो लड़की साहूकार से विवाह कर लेगी और उसके पिता साहूकार को कर्ज़ भी चुकायेंगे, परन्तु यदि पत्थर सफ़ेद निकलता है तो लड़की विवाह नहीं करेगी और साहूकार को उसके पिता का क़र्ज़ माफ़ भी करना पड़ेगा।
साहूकार दुष्ट था, उसे किसी तरह लड़की को जितना था। साहूकार तुरंत मान गया और एक थैला लेकर आया। साहूकार जब थैले में पत्थर डाल रहा था तो लड़की उसे देख रही थी।
लड़की ने देखा कि साहूकार ने चालाकी से दोनों पत्थर काले रंग के ही थैली में डालें है। वह साहूकार की चतुराई समझ गई। लड़की परेशान हो गयी कि अब वह करें तो क्या करें, साहूकार का भांडा फोड़ भी दे तो भी वह किसी दूसरी चाल में उसको ज़रूर फंसाएगा।
लड़की कुछ सोचकर आगे बढ़ी और उसने थैले से एक पत्थर निकाला। लड़की ने असावधानी दिखाते हुए पत्थर कुछ इस प्रकार निकाला की पत्थर उसके हाथ से छूट कर जमीन पर गिर गया।
लड़की साहूकार से बोली ‘ माफ़ कीजियेगा पत्थर मेरे हाथ से छुट कर गिर गया लेकिन चिंता की कोई बात नहीं, थैले में अभी दूसरा पत्थर भी तो है उसे देख लेते है। अगर पत्थर काला निकला तो मैंने पहली दफा सफ़ेद पत्थर उठाया होगा और अगर सफ़ेद निकला तो इसका मतलब मैंने पहली दफा काला पत्थर उठाया होगा। बाद में हम नीचे गिरी पत्थर को उठा कर रंग पता कर लेंगे। व्यापारी ने थैले में हाथ डाला तो पत्थर काला था। साहूकार लड़की की होशियारी समझ गया।
साहूकार अपने झूठ को छिपाने के मकसद से बोला ” थैले में काला पत्थर ही बचा है इसका मतलब तुमने पहली बार में सफ़ेद पत्थर उठाया था। तुम जीत गई। साहूकार बेचारा बोलता भी क्या? अगर सच बोलता तो चोरी पकड़ी जाती। इस प्रकार लड़की ने अपनी चतुराई से पिता का कर्ज़ भी माफ़ करा दिया और ख़ुद की रक्षा भी कर ली।
मित्रों, अगर हमारे देश के स्वतंत्रता सेनानी भी सोच लेते कि हम शक्तिशाली अंग्रेजों से कभी नहीं जीत पायेंगे तो शायद हमारा देश कभी आजाद ही नहीं हो पाता। जब तक आप समस्याओं के समाधान के बारे में नहीं सोचेंगे तब तक आप समस्याओं में ही उलझे रहेंगे। अपने विचारों को खुलने दें, थोड़ा हटकर सोचें, यह सोचें कि हर समस्या का हल है तो मेरी समस्या का भी कोई ना कोई हल ज़रूर होगा। जब आप ऐसा सोचने लगेंगे तो यक़ीन मानिये आपकी समस्याओं के हल भी आपको मिलना शुरू हो जाएगा।
11. Moral Stories in Hindi – आखिरी जीत
जून का महीना था बाहर कड़क धूप थी। संजीव अपने गोदाम में बैठ कर माल का हिसाब-किताब कर रहा था। हिसाब किताब करते-करते वो सोच में डूब गया। वो सोचने लगा की एक दिन उसका बहुत बड़ा गोदाम होगा, वो बहुत अमीर आदमी बन जायेगा।
नौकर चाकर ,गाड़ी बंगला सब कुछ उसके पास होगा। अचानक उसके कानों में किसी की आवाज़ आई की ‘भागो-भागों! गोदाम में आग गया है’। इससे पहले संजीव कुछ समझ पाता, गोदाम में काम कर रहे मजदूर भागते हुए बाहर निकले।
संजीव के गोदाम में आग लग गई थी। देखते ही देखते संजीव का सारा गोदाम और उसमें रखा माल जल कर ख़ाक हो गया। वो पुरी तरह तबाह हो चुका था। उसे समझ नहीं आ रहा था की क्या किया जाए।
व्यापार के लिए उसने काफी क़र्ज़ लिया था। कर्जा देने वाले उसे रोज़ पैसे के लिए परेशान करने लगे अंततः दुकान बेच कर उसने सभी का कर्जा अदा किया।
सजीव के पास अब कुछ बचा न था। पास के पार्क में बैठ कर वो सोच रहा था की इतने अच्छे कर्म होकर भी आज वो खाली हाथ है। उसने सोचा की वो जी कर क्या करेगा? उसे मर जाना चाहिए। प्राण देने के लिए जंगल की तरफ जाने का फैसला किया।
जैसे ही वो उठा किसी ने उसकी कलाई पकड़ी और जोर से खींचा। उसने देखा की एक बाबा जो सफ़ेद कपड़ा धारण किए हुए है, बड़ी लम्बी लम्बी दाढ़ी है, और चेहरे पर एक अजीब प्रकार का तेज है उसके समीप खड़े थे। बाबा ने संजीव के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा की बस इतने में हार गए।
तुम नहीं हार सकते क्योंकि तुम्हारे कर्म बहुत अच्छे है। बाबा ने जेब से कागज़ का एक टुकड़ा निकला और संजीव को देते हुए कहा “लो ये 1 लाख का चेक, और नए सिरे से अपना काम शुरु करो, जब तुम पुरी तरह से अपने पैरो पर खड़े हो जाओ तो मुझे लौटा देना”।
संजीव को बड़ी हैरानी हो रही थी की एक अनजान आदमी उस पर इतना यकीन क्यों कर रहा है?, जबकि उसे खुद पर यकीन नहीं। उसने बाबा को दिए हुए चेक को खोल कर भी नहीं देखा और जेब में रख लिया।
उसने निर्णय किया की पहले वो खुद मेहनत करेगा अगर बहुत जरूरत पड़ी तो ही इस चेक का इस्तेमाल करेगा। उसने कुछ पैसे उधार लेकर दुबारा से काम शुरु किया। देखते ही देखते संजीव का काम चल गया। वो पहले से ज्यादा अमीर बन गया। उसकी कई दुकानें खुल गई। उसकी मेहनत ने रंग दिखा दिया। वो अथाह धन संपदा का मालिक बन गया।
ठीक 1 साल बाद संजीव उस चेक को लेकर दुबारा वही पहुंचा जहाँ वो बाबा से अंतिम बार मिला था। बाबा ठीक समय पर आ गए थे। संजीव ने बाबा के चरणों में गिरकर अपने उस फैसले के लिए क्षमा मांगी और वो चेक देने लगा। बाबा ने कहा “खोल कर देखोगे नहीं इस चेक को”।
जब संजीव ने उस चेक को खोलकर देखा तो वो एकदम कोरा था ,एकदम खाली। संजीव को बड़ी हैरानी हुई की जिस चीज़ को सत्य मानकर वो अपने पैरो पर खड़ा हुआ वो तो उसके पास थी ही नहीं।
एक झूठे दिलासे जो खाली चेक के रूप में बाबा ने उसे दिया उसने संजीव को कहाँ से कहाँ पहुंचा दिया। बाबा ने संजीव की तरफ मुसकुरा कर देखा और कहा “जीवन में हम सभी अपनी क्षमताओं से वाकिफ नहीं होते, जरा सी मुसीबत आ जाने पर हम हार मान जाते है, जबकि उससे लड़ने की क्षमता हमारे अन्दर पहले से मौजूद होती है”।
जब भी जिंदगी तकलीफ दे समझ जाओ की वो आपको आपकी क्षमताओं से आपको परिचित करना चाहती है। जब हम पुरी क्षमता के साथ मेहनत करते है तो ईश्वर भी हमारा साथ देता है।
12. Moral Stories in Hindi – समस्या का अंत
बहुत समय पहले की बात है किसी गाँव में एक फ़क़ीर रहता था। फ़क़ीर इल्म का जाना माना व्यक्ति था। जब भी किसी को कोई परेशानी होती वह फ़क़ीर को याद करता।
गाँव में इक्का दुक्का लोग ही थे जो फ़क़ीर से ख़ुद के सुखी होने की बात करते थे, वरना सभी अपने दुखो का रोना फ़क़ीर से आये दिन रोते रहते थे। फ़क़ीर गाँव की इस व्यथा से परेशान हो चुका था। उसने गाँव वालों को सबक सिखाने का निर्णय लिया।
एक सुबह फ़क़ीर गाँव की नदी के किनारे जाकर बैठ गया। गाँव का जो भी आदमी वहाँ से गुजरता फ़क़ीर से पूछता की वह यहाँ क्यों बैठा है? फ़क़ीर सबसे यही कहता है कि वह नदी पार करने के लिए बैठा है। ऐसा कहते-कहते शाम हो गई पर फ़क़ीर वही बैठा रहा।
गाँव का हुजूम धीरे-धीरे इकट्ठा हो गया। सब यही सोच रहे थे कि यदि फ़क़ीर बाबा को नदी ही पार करनी है तो पुल से जाकर कर सकते है फिर, सुबह से ये टकटकी लगाए नदी को क्यों देख रहे है? किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था। अंत में गाँव के मुखिया को बुलाया गया।
गाँव के मुखिया ने बाबा से वहाँ बैठने का कारण पूछा। फ़क़ीर ने फिर से वही दोहराया की वह नदी पार करने के लिए बैठा है। गाँव वाले सोचने लगे कही ये फ़क़ीर पागल तो नहीं हो गया ?
गाँव के मुखिया ने फ़क़ीर से कहा की “अगर आपको नदी ही पार करनी है तो आप पुल से या किसी नाव से पार कर लीजिये, सुबह से शाम ढल गई है और आप अब तक यही बैठे है, कब करेंगे आप नदी पार” ? फ़क़ीर तपाक से बोला “जब नदी का सारा पानी बह जाएगा तब नदी पार करूँगा”।
फ़क़ीर की ऐसी बाते सुन कर सब हंस पड़े। बोले बाबा पागल हो गए हो क्या नदी का सारा पानी भला कभी बहेगा क्या? ये क्या बेवकूफी है? फ़क़ीर ने कहा जब तुम लोग मेरे पास आते हो, तो कहते हो की ये काम हो जाए तब मैं ज़िन्दगी सुकून से जीना शुरु करूँगा या करूँगी।
ये मुसीबत टल जाए तो मैं आगे निकलूं, जबकि पुरी ज़िन्दगी काम और मुसीबत एक दूसरे के पूरक है और पुरी उम्र ख़त्म नहीं होते। फिर भला तुम क्यों ठहरते हो? ये जानते हुए की ये कभी ख़त्म नहीं होने वाला। ठीक उसी प्रकार मैं भी सोच रहा हूँ की नदी का पानी कभी तो सूखेगा। इतना कहने की देर थी की गाँव वाले समझ चुके थे की फ़क़ीर उन्हें क्या समझाना चाहता है।
निष्कर्ष- हम आये दिन अपनी ज़िन्दगी में मुसीबतों से घिरे रहते है और सोचते है कि ये मुसीबत ख़त्म हो तो मैं जीना शुरु करूँ या आगे निकलूँ और इसी जदोजिहाद में हम अपनी दैनिक जीवन की छोटी-छोटी खुशियाँ भूल जाते है। ज़िन्दगी कैसी भी हो इंसान को हर पल को जीना चाहिए क्योंकि समस्या पुरी उम्र चलती रहेगी पर ये पल दुबारा नहीं मिलेंगे।
13. Moral Stories in Hindi – अंतिम प्रयास
एक राजा हुकुम देव नारायण के दरबार में एक विदेशी आगंतुक आया। वो राजा के लिए अनमोल पत्थर अपने देश से उपहार स्वरूप लाया था। राजा हुकुम देव ने बड़े उत्साह से विदेशी मेहमान का स्वागत किया।
राजा ने अपने प्रधानमंत्री को पत्थर देते हुए निर्देश दिया की इस पत्थर से भगवान विष्णु की मूर्ति बनाई जाए, और शहर के बीचों बीच स्थापित किया जाए।
मंत्री पत्थर को लेकर शहर के सबसे नामी मूर्तिकार के पास गया। उसने मूर्तिकार से कहा “राजा के आदेशानुसार आप इससे सबसे बेहतरीन मूर्ति का निर्माण करें, आपको 100 मोहरें इनाम स्वरूप दी जायेगी”। मूर्तिकार मान गया।
मूर्तिकार मूर्ति बनाने में लग गया। उसने छेनी-हथोड़े से पत्थर पर कई वार किए पर पत्थर न टूटा। मूर्तिकार ने एक के बाद एक कुल 50 प्रहार किये पर पत्थर टस से मस न हुआ। हार थककर मूर्तिकार ने वह पत्थर प्रधानमंत्री को वापस कर दिया।
मंत्री पत्थर को लेकर गाँव के एक साधारण मूर्तिकार के पास गया। अपने पहले ही प्रयास में गाँव के मूर्तिकार ने पत्थर को तोड़ डाला। प्रत्येक प्रयास में पत्थर टूटता गया और साधारण मूर्तिकार ने एक बहुत सुंदर मूर्ति का निर्माण किया। जब नामी मूर्तिकार को मालूम चला तो वह स्तब्ध रह गया।
उसके 50 बार प्रहार करने से पत्थर अन्दर से कमजोर पड़ गया था। जैसे ही गाँव के मूर्तिकार ने एक और प्रहार किया वह पत्थर टूट गया। अगर नामी मूर्तिकार थोड़ा सब्र रख कर एक बार और कोशिश करता तो वह 100 मोहरें उसके हिस्से में आती परन्तु वह सब्र न रख सका ,इसलिए कहते है कि किसी लक्ष्य का पीछा करो तो जब तक लक्ष्य मिल न जाए प्रयत्न करते रहो। क्या पाता कौन-सा प्रयत्न आपको सफलता के और करीब ले जाए।
14. Moral Stories in Hindi – बुरा अतीत
प्रोफेसर कक्षा में पढ़ा रहे थे। सभी बच्चे बड़े ध्यान से उन्हें सुन रहे थे और उनकी बातों का जवाब दे रहे थे। प्रोफेसर बीच-बीच में हंसी मज़ाक भी कर करते और सवाल भी पूछते। अचानक प्रोफेसर का ध्यान कक्षा के सबसे आखिरी बेंच पर गया।
पुरी कक्षा में एक ही लड़का था जो एकदम गुमसुम और उदास बैठा था। वो न प्रश्न पूछ रहा था और न जवाब दे रहा था, एकदम शांत था। कक्षा से बाहर निकलकर प्रोफेसर ने उसे अपने पास बुलाया और उसके उदास होने का कारण पूछा।
बच्चा एकदम शांत खड़ा था। प्रोफेसर ने फिर से अपनी बात दोहराई की क्या वजह है कि तुम इतने ख़ामोश और गुमसुम रहते हो। बच्चे ने एक वाक्य में जवाब दिया की वह अपने अतीत की वजह से उदास है। प्रोफेसर ने उसे कुछ नहीं कहा और शाम को अपने घर बुलाया।
स्कूल के बाद जब बच्चा प्रोफेसर के घर पहुंचा तो प्रोफेसर ने उसे बैठने के लिए कहा। वह रसोई से उसके लिए सिकंजी लाने चले गए। सिकंजी बनाते समय जान बुझकर उन्होंने सिकंजी में नमक ज़्यादा डाल दिया।
प्रोफेसर जानते थे की वह क्या कर रहे है और क्यों कर रहे है। लड़के की तरफ़ गिलास बढ़ाते हुए प्रोफेसर ने कहा “लो ये सिकंजी पियो बड़े प्यार से बनाई है मैंने तुम्हारे लिए”। बच्चे ने जब सिकंजी पिया तो उसे उसका स्वाद बड़ा अजीब लगा।
शिकायती लहजे में लडकें ने कहा “सर नमक ज़्यादा है इसमें, बड़ा अजीब स्वाद है”। प्रोफेसर बच्चे से गिलास लेने के लिए आगे बढ़े और बोले की “लाओ मैं इसे फेक देता हूँ”। बच्चे ने कहा “नहीं सर रहने दे , मैं इसमें थोड़ी शक्कर डाल कर इसका स्वाद बदल सकता हूँ”।
यही वह शब्द थे जिसका इंतज़ार प्रोफेसर कर रहे थे। उन्होंने कहा ‘ जब सिकंजी में नमक ज़्यादा होने पर तुमने उसे-उसे फेंका नहीं बल्कि ये विश्वास दिलाया की थोड़ी शक्कर से इसका स्वाद पीने लायक हो जाएगा तो फिर ज़िन्दगी में थोड़े से बुरे पल को तुम क्यों नहीं बदल सकते।
क्यों उसे अब तक ढो रहे हो ये जानते हुए की ये पल तुम्हारे आज के स्वाद को ख़राब कर रहे है। बच्चा समझ गया की प्रोफेसर उसे क्या समझाना चाहते है उसने निश्चय किया की आज के बाद वह कभी उदास या गुमसुम नहीं रहेगा और कक्षा के हर क्रियाकलाप में बढ़कर चढ़कर भाग लेगा।
निष्कर्ष-हर इंसान की ज़िन्दगी में कुछ बुरे पल होते है, कुछ लोग उन पलों को भूलकर आगे बढ़ जाते है तो कुछ लोग उन्हीं बुरी यादों को ज़िन्दगी भर ढोते रहते है। ऐसे अतीत एक कील के समान होता है जो आपके आज को तबाह कर सकता है।
15. Moral Stories in Hindi – बेईमानी का फल
बहुत समय पहले की बात है एक गाँव में भयंकर सूखा पड़ गया। गाँव के लोगों की आजीविका का एकमात्र माध्यम कृषि था। चारों तरफ़ गाँव में त्राहि माम! त्राहि माम! मच गया। गाँव के लोगों ने गाँव के सबसे प्रसिद्ध बाबा, बाबा भैरव के पास जाने का फ़ैसला किया।
गाँव के लोगों ने बाबा से कहा “बाबा अब आप ही कोई उपाए निकालिए जिससे बरसात हो”। बाबा ने कहा “ठीक है मुझे एक हफ्ते का वक़्त दो मैं कोई समाधान निकल कर बताता हूँ”। गाँव वालों के चेहरे पर ख़ुशी लहर दौड़ गई की अब शायद कोई समाधान निकल आएगा।
बाबा भैरव ने बहुत सोचा पर कोई समाधान न निकाल पाए। बाबा ने गाँव वालों को बुलाकर कहा की मैंने बहुत कोशिश की परन्तु कोई भी समाधान नहीं निकाल पाया, अब तुम लोगों की मदद ऊपर वाला ही कर सकता हैं।
गाँव के सभी लोग उदास हो गए। इधर फसलें पकने का वक़्त आ चला था और बारिश का अता पता नहीं था। गाँव के सभी लोगों ने एक दूसरे बाबा के पास जाने का फ़ैसला किया।
जब गाँव के लोग दूसरे बाबा के पास पहुँचे, बाबा किसी की समस्या सुन रहे थे। बाबा ने जब पुरे गाँव को एक साथ देखा तो समझ गए की कोई बड़ी ही समस्या होगी तभी सारा गाँव एक साथ आया है।
समस्या जानकार बाबा ने कहा “समाधान तो है परन्तु सभी को मिलकर और ईमानदारी से करना होगा”। अगर किसी ने भी लालच दिखाया तो परिणाम बुरा होगा और तुम लोग सूखे से ही मरोगे। गाँव के सभी लोग मान गए।
बाबा ने समस्या का समाधान बताते हुए कहाँ की ” अमावस्या की रात को गाँव के सभी लोग बारी-बारी से गाँव के सबसे पुराने कुएँ में एक-एक लोटा दूध डालेंगे, परन्तु याद रहे दूध डालते वक़्त कुएँ की तरफ़ नहीं देखना है, अगर किसी ने ऐसा किया तो ये युक्ति विफल हो जायेगी और तुम्हारी मनोकामना कभी पुरी नहीं होगी। गाँव के सभी लोग मान गए।
अमावस्या की रात का सभी को इंतज़ार था। गाँव के सभी लोगों ने मिल कर फ़ैसला किया की अगर इस सूखे से बचाना है तो उन्हें पुरी ईमानदारी से बाबा द्वारा बताई युक्ति का पालन करना होगा। गाँव में एक बहुत ही कंजूस आदमी था।
उसने सोचा की गाँव के सभी लोग तो दूध ही डालेंगे और उसने एक लोटा पानी डाल भी दिया तो किसे पता चलेगा। तय किए दिन पर सभी एक-एक लोटा दूध लाते गए और बिना देखे कुएँ में डालते गए। कंजूस सबसे अंत में गया और चुपके से एक लोटा पानी का डाल आया।
सुबह हुई सभी आसमान की तरफ़ टकटकी लगाये देखने लगे, दोपहर हो गई परन्तु वर्षा का कोई संकेत नहीं दिखा। इस तरह से काफी दिन गुजर गए परन्तु गाँव में बारिश नहीं हुई। गाँव वालों के सब्र का बाँध टूट गया।
वो बाबा के पास गए, जाते ही बाबा पर क्रोधित होकर बोले “बाबा आपकी कही हुई युक्ति ने कोई असर नहीं दिखाया, आपने हमें बेवकूफ बनाया है। बाबा उनकी बातों को सुनकर मुसकुराने लगे। बाबा गाँव वालों को उस कुएँ के पास लेकर गए जिस कुँए में सभी ने दूध डाला था।
गाँव वालों के आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब उन्होंने देखा की कुएँ में दूध की जगह सिर्फ पानी ही पानी था। रात के अँधेरे में सभी नें यही सोचा की एक लोटा पानी मैं डाल देता हूँ, किसे पाता लगेगा सब तो दूध ही डालेंगे इस तरह गाँव के हर आदमी ने केवल पानी डाला, दूध का एक बूँद कुएँ में नहीं था। गाँव वाले समझ गए की उनके अपने कर्मों की वजह से गाँव की ये दुर्दशा हुई है।
निष्कर्ष- हमें अपने कार्य में ख़ुद से ईमानदार होना चाहिए, किसी और को देखकर अगर हम अपने कार्य की दिशा और दशा तय करते है तो उसका नतीजा हमेशा बुरा ही होता है। अगर गाँव के सभी लोग एक दूसरे के प्रति और ख़ुद के प्रति ईमानदार होते तो कुआँ दूध से भरा होता।
16. Moral Stories in Hindi – बुद्धिमता
एक बार स्वामी विवेकनन्द ट्रेन से यात्रा कर रहे थे। स्वामी जी सात्विक वेशभूषा के लिए प्रसिद्ध थे। यात्रा के दौरान कुछ महिलाएँ जो उसी ट्रेन में यात्रा कर रही थी को स्वामी जी की वेशभूषा अजीब लगी। लकड़ियों ने सोचा क्यों न इस अजीब वेशभूषा वाले आदमी को सबक सिखाया जाए ।
स्वामी जी ने एक विचित्र प्रकार की घड़ी पहनी हुई थी। अनायास ही लकड़ियों की नज़र उस घड़ी पर पड़ रही थी। लकड़ियों ने निर्णय लिया की वह स्वामी जी से उनकी घड़ी मांगेंगी अगर स्वामी जी ने दिया तो ठीक वरना वह महिला अवमानना का हवाला दे ट्रेन के सुरक्षा अधिकारी से स्वामी जी की शिकायत करेंगी। स्वामी जी बड़े सरल और शांत स्वभाव के थे। उन्होंने महिलाओं की युक्ति को भाप लिया और उसके लिए पुरी तरह तैयार हो गए।
उसमें से एक महिला स्वामी जी के पास आई और बड़ी सरलता से स्वामी जी की घड़ी मांगी। स्वामी जी ने घड़ी उतार कर दे दी। महिलाएँ थोड़ी दुष्ट प्रकृति की थी। इतने से भी मन न भरा तो स्वामी जी से उनकी शाल मांगी।
स्वामी जी ने वह भी उतार के दे दिया। महिलाओं की मंशा ये थी की जिस पल भी स्वामी जी इनकार करेंगे वह सुरक्षा अधिकारी से शिकायत कर देंगी। जब तक सम्भव हुआ स्वामी जी उनकी इच्छा अनुसार कार्य करते गए।
अंततः स्वामी जी ने उन्हें सबक सिखाने का ठाना। अगली बार जब महिला ने स्वामी जी से किसी और चीज़ की फरमाइश की तो स्वामी जी ने अगले पल इनकार में सिर हिला दिया। महिलाओं ने इशारें-इशारें में कहा की वह उनकी शिकायत करने जा रही है।
स्वामी जी ने गूंगा और बहरा होने का नाटक किया और कहा की वह सुरक्षा अधिकारी से जो कहना चाहती है वह कागज़ के टुकड़े पर लिख कर बताएँ। महिलाओं ने ऐसा ही किया।
फिर क्या था मौका देखकर स्वामी जी ने सुरक्षा अधिकारी को वह कागज़ का टुकड़ा दे दिया। सुरक्षा अधिकारी ने महिलाओं को खूब बुरा भला कहा। अपनी चतुरता से स्वामी जी ने अपने सम्मान को तो बचाया ही किसी बड़ी मुसीबत से बच निकलें।
निष्कर्ष- मुसीबत के समय आदमी को धैर्य रखना चाहिए, दुनिया में ऐसी कोई समस्या नहीं बनी जिसका समाधान न हो। अधिकतर लोग मुसीबत के समय अपना आप खो बैठते है और समस्या के समाधान से ज़्यादा ऊर्जा उससे लड़ने में लगा देते है। आदमी थोड़ी सूझ बुझ के साथ काम लें तो वह बड़ी से बड़ी मुसीबत को मात दे सकता है।
17. Moral Stories in Hindi – गरीबी से जंग
यु तो मनोज कक्षा में बहुत होशियार नहीं था परन्तु सभी अध्यापक उसे उसके शिष्टाचार के लिए मानते थे। मनोज गाँव का एक नौजवान था जो गरीबी की आंच में धीरे-धीरे अपना बचपन जला रहा था, पुरे परिवार में इकलौता लड़का था।
माँ दूसरों के घरों में बर्तन मांज-मांज कर किसी तरह अपना और अपने बच्चों का पालन पोषण कर रही थी। पिता खेतिहर मज़दूर थे। बड़ी मुश्किल से एक वक़्त का खाना नसीब हो रहा था। मनोज को पढ़ने का बड़ा शौक था।
यद्यपि मनोज इतना होशियार नहीं था परन्तु किताबों के प्रति उसकी रुचि शुरु से ही थी। जब भी कोई विद्यार्थी कोई नई पुस्तक लाता मनोज उससे आग्रह कर वह पुस्तक ले लेता और घर जाकर ज़रूर । मनोज बहुत बड़ा आदमी बनाना चाहता था।
माँ से अकसर कहता की माँ जब मैं पढ़ लिख कर बड़ा आदमी बन जाऊंगा तो तुम्हें दूसरों के घरों में बर्तन नहीं मांजना पड़ेगा। एक बालक के मुख से इतनी गहन बात सुन कर माँ का कलेजा ममता से द्रवित हो उठता था।
मनोज अब 8वी कक्षा में पहुँच चुका था। उसे नई किताबें और कपड़ों की ज़रूरत थी। सातवीं तक की पढ़ाई किसी तरह विद्यालय के सहयोग से संपन्न हो चुकी थी, परन्तु मनोज को अब कुछ न कुछ करना था जिससे की वह आगे पढ़ पाए।
मनोज ने एक गाड़ी पर परिचालक की नौकरी कर ली। गाड़ी का मालिक मनोज को 300 रुपये पर रखने को तैयार हो गया। मनोज को सुबह विद्यालय जाना होता था इसलिए वह रात की-की पाली में परिचालक बन की नौकरी करता था।
रात भर गाड़ी पर नौकरी करता, सुबह विद्यालय जाता था। जब सुबह विद्यालय जाता तो रात भर की थकान उसके चेहरे पर साफ़ झलकती, परन्तु किसी तरह वह गुज़ारा कर रहा था। वह जानता था कि इस तरह वह ज़्यादा दिन तक नहीं कर सकता वरना बीमार पड़ जाएगा।
अक्तूबर का महीना था हल्की हल्की ठण्ड का आगमन हो चुका था। विद्यालय में छमाही परीक्षा का आयोजन होना था। मनोज उस स्थिति में नहीं था कि वह अच्छी तरह पढ़ कर परीक्षा पास कर पाए। मनोज ने विद्यालय छोड़ने का मन बना लिया।
उसने हेड मास्टर को पत्र लिखा की वह विद्यालय छोड़ना चाहता है। पत्र जितना मार्मिक था उससे ज़्यादा मनोज की जिंदगी को उधेड़ने वाला था। हेड मास्टर ने उसे बुलाया और कहा की वह परिचालक का काम छोड़ दे और उनके ऑफिस में आकर उनके काम में हाथ बटाए।
उसकी शिक्षा विद्यालय निधि से मुफ्त कर दी जायेगी और उसे कुछ पैसे भी मिलेंगे। मनोज की ख़ुशी का ठिकाना न रहा। मनोज ने रात दिन एक कर दिया पढ़ने में। जब विद्यालय का परिणाम आया तो मनोज की ख़ुशी का ठिकाना न था। वह पूरे विद्यालय में प्रथम आया था। राज्य सरकार की तरफ़ से उसे 2100 रुपये का पुरस्कार मिला। उसके आगे की शिक्षा भी मुफ्त कर दी गई।
कई साल गुजर गए मनोज गाँव छोड़कर जा चुका था। सुबह-सुबह का दृश्य था हेडमास्टर साहब ऑफिस से बाहर निकल रहें थे। ऑफिस से निकलते ही एक बच्चा जो सूट बूट में था उसने मास्टर जी के चरण छुए और रोने लगा।
मास्टर जी को बड़ी हैरानी हुई की आखिर ये है कौन? जब उन्होंने उसे उठाया तो देखा ये तो मनोज है जो एक दिन पढ़ाई छोड़ देना चाहता था। वह मनोज आज राज्य सरकार में टैक्स कलेक्टर के पद पर तैनात था।
मनोज न ही हेडमास्टर जी को भुला था और न अपने बचपन को। अगर उस दिन मनोज को हेडमास्टर जी ने न रोका होता तो मनोज ज़िन्दगी भर एक परिचालक बन कर रह जाता।
निष्कर्ष- जब भी एक लक्ष्य तय करो पुरी शिद्दत के साथ उसका पीछा करो। जब आप ऐसा कर रहे होंगे तो हज़ार मुसीबतें आपके सामने आएगी परन्तु आपको हिलना नहीं है, टिके रहना है। सफलता उसी को मिलती है जो साधारण चीजों के लिए असाधारण हिम्मत और साहस दिखता है।
18. Moral Stories in Hindi – निरंतरता सफलता की कुंजी है
ये कहानी हैं एक ऐसे शख्स की जिसने ज़िन्दगी में बहुत ठोकरें खाई परन्तु हार नहीं माना। अपने अदम्य साहस और हार न मानने की प्रवृति ने उसके द्वारा एक ऐसे फ़ूड श्रृंखला को जन्म दिया जो आज हजारों करोड़ की कंपनी बनी हुई है।
Colonel hardland Sanders उन व्यक्तियों में से थे जिन्हें आरंभिक जीवन में सफलता नहीं मिलती। एक साधारण से परिवार में जन्में sanders के ख्वाब आसमान को छूने वाले थे। जीवन के आरंभिक काल में Hardland sanders को बहुत कठोर समस्याओं का सामना करना पड़ा।
वह सातवीं कक्षा पास एक व्यक्ति थे जिसे न तो कही ढंग की नौकरी मिलती थी न व्यापार के लिए उनके पास अथाह धन था। उन्हें खाना पकाने और खिलाने का बड़ा शौक था। इसी क्षेत्र में वह हाथ पैर मार रहे थे पर उन्हें कोई खास सफलता अब तक हासिल नहीं हुई थी।
कोशिश करते-करते Hardland 40 साल के हो चुके थे। जब कोई रास्ता न सूझा तो 40 की उम्र में sanders ने ‘चिकन’ बेचने का काम शुरु किया। वास्तव में वह एक रेस्तरां खोलना चाहते थे परन्तु कभी इतने पैसे न जुटा पायें की अपना सपना पुरा कर सकें।
Hardland को विभिन्न इन्वेस्टर्स का न्योता आता, वो अलग-अलग तरह के dishes नए तरीके से पकाते पर अब तक कोई भी उनकी बनाई डिश इन्वेस्टर्स को पसंद नहीं आई थी। इसी sanders 1000 बार से ज्यादा बार रिजेक्ट हो चुके थे।
आखिर वो वक़्त आ ही गया जब उनका बनाया ‘kentucky Fried chicken”बाज़ार में आया और उसने देखते ही देखते धूम मचा दिया। sanders रातों रात प्रसिद्ध हो गए। हर किसी की जबान पर उनका ‘kentucky fried chicken’ चढ़ गया।
बाद में उन्होंने ने अपने रेस्तरां श्रृंखला की शुरुवात की जिसे आज हम सभी” KFC Chicken”के नाम से जानते है। आपने कभी अगर ग़ौर से देखा हो तो kfc के होर्डिंग में जो आदमी आपको दिखता है वह’ Colonel Hardland sanders” ही है। आज शायद ही कोई ऐसा देश हो जहां kfc की मौजूदगी न हो।
निष्कर्ष- सफलता कभी एक दिन में नहीं मिलती। परन्तु निरंतर प्रयास से मिलती ज़रूर है। हो सकता है किसी को जीवन के 18वें वर्ष में सफलता मिल जाए तो किसी को 35वे, परन्तु कोशिश करने वाले सफल ज़रूर होते है, इसलिए परिस्थितियाँ कैसी भी हो कोशिशों का दामन नहीं छोड़ना चाहिये।
19. Moral Stories in Hindi – मन की आँखें
ये कहनी है यूरोप के एक शहर सेंट पिट्सबर्ग की जहाँ दो मरीज एक अस्पताल में गंभीर बीमारियों से जूझ रहे थे। एक को रीढ़ की हड्डी की समस्या थी तो दूसरा दिल की बीमारी से जूझ रहा-रहा था। दोनों मरीजों का इलाज एक साथ चल रहा था।
दोनों का बेड एक दूसरे के अगल-बगल में था। वह मरीज जिसे रीढ़ की हड्डी में समस्या थी वह पुरी तरह से उठ नहीं सकता था, पूरे दिन बिस्तर पर पड़े-पड़े काटता था। दूसरा मरीज जो दिल की बीमारी से परेशान था उसे दिन में 1 घंटा बैठने की इजाजत थी।
दोनों एक दूसरे से खूब वार्तालाप करते थे। बात करते करतें यादों में खो की किस तरह उन्होंने अपने युवावस्था के जीवन को जिया। किस तरह उनका परिवार बड़ा हुआ। उनकी बीवियाँ उनके बाल-बच्चे हुए। दोनों देश के लिए सीमा पर लड़ते हुए घायल हुए थे।
दोनों के दोनों भूले बिसरी यादों को एक दूसरे से बाटते हुए दिन काट रहे थे। उन दोनों में जिसे एक घंटे बैठने की इजाजत थी वह अकसर खिड़की के पास बैठा करता था। सुबह उठना, पुरे दिन एक दूसरे का सुख दुःख बाँटना और शाम ढलते ही खिड़की के पास बैठ जाना ,बस इतनी ही दिनचर्या थी दिल के मरीज की।
पहला मरीज जिसकी रीढ़ की हड्डियाँ काम नहीं कर रही थी वह पूरे दिन सीधे लेटा रहता था। वह ज़रा भी हिल डुल नहीं सकता था। दूसरा उसे खिड़की के पास बैठ कर बाहर के नज़ारे बताता था।
एक शाम दूसरा आदमी खिड़की के पास बैठा था ,बाहर के नज़ारे को बताते हुए वो दूसरे से बोला “ये सामने बगीचे में बच्चे खेल रहे है, पानी के फुहारें बड़ी दूर तक वर्षा कर रहें है, ‘तुम जानते हो बगीचे में बड़े ही सुंदर-सुंदर फूल खिले है जी में आता है कि उन्हें छु कर देखूँ’ , मुझे उम्मीद है तुम समझ रहे होगे मैं क्या कह रहा हूँ”।
पहला आदमी उसकी कही बातों से कल्पना कर रहा था ,और उसने ख्वाबों में ही चीजों की कल्पना कर ली ,उसे लगा रहा था की वो चीजों को सदृश्य देख सकता है। इस कल्पना मात्र से ही वह बाहर का भ्रमण कर आया। ये कल्पना उसमें एक ऊर्जा का संचार कर रही थी।
दूसरे आदमी ने पहले आदमी को घर के कमरे से इतना कुछ बता दिया था कि उसे बाहर की दुनिया एक बंद कमरे से ही दिख रही थी। वह अपनी रीढ़ की हड्डियों में प्राण महसूस करने लगा था। पर सावधानी बरतते हुए वह हिल डुलता नहीं था।
एक सुबह जब नर्स कमरे में आई तो उसने देखा की दूसरा आदमी जो खिड़की के बगल में बैठता था वह खिड़की के पास बैठा है और उसकी आंखें खुली हुई है। उसने पास जाकर देखा था वह मर चुका था। उसका पुरा शरीर ठंडा पड़ चुका था।
उसे वहाँ से तुरंत हटा लिया गया। जब पहला आदमी सो कर उठा तो उसने दूसरे को वहाँ न पाकर नर्स से पूछा। नर्स ने बताया की वह अब इस दुनिया में नहीं रहा। दुसरे से रहा नहीं गया। उसने खिड़की के पास जाकर बाहर का नज़ारा देखना चाहा।
जब वह वहाँ पहुँचा तो देखा की बाहर खिड़की की तरफ़ कुछ है ही नहीं, बस एक दीवार है और सब कुछ अँधेरा-अँधेरा है। वह स्तब्ध रह गया। उसने नर्स से पूछा की “वह आदमी आखिर बाहर का सारा दृश्य बताता कैसे था”?।
नर्स ने बताया की वह आँख से अंधा था। वह अपनी कल्पना मात्र से ही तुम्हें सारी चीज़ें बताता था। दूसरा आदमी इतना सुनते ही सन्न रह गया। दूसरे आदमी की आँखों में आंसू छलक आये की किस तरह आंखें न होते हुए भी उसने उसके अन्दर उम्मीद और हिम्मत बनाये रखी। उसकी आँखों से आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे।
निष्कर्ष- ज़िन्दगी में हर कोई किसी न किसी दुःख से गुजर रहा होता है। बजाए की हम हमेशा अपने दुःख को लेकर बैठे रहे, हमें ऐसे लोग जो मजलूम है, अपंग है या दुःख के बोझ तले दबे है उनके अन्दर उम्मीदों का दिया जलाना चाहिए। ख़ुशी बांटने से बढ़ती है और दुःख बांटने से कम होता है।
20. Moral Stories in Hindi – मानसिक गुलामी
सैलानियों का एक समूह अफ्रीका घुमने गया। अफ्रीका अपनी जैविक विविधता और जंगलों के लिए प्रसिद्ध है। हजारों किलोमीटर तक केवल जंगल ही जंगल है। अफ्रीका अपने हाथियों के लिए भी प्रसिद्ध है।
एक बार वहाँ की सरकार ने हाथियों का एक जू शुरु किया। सैलानियों का ये समूह उसी जू को देखने जा रहा था। सरकार ने घोषणा की थी की ये जू बाकी और जू से एकदम अलग होगा। समूह के सभी लोग काफ़ी उत्साहित थे की उन्हें कुछ अलग देखने को मिलेगा।
जब वह लोग वहाँ पहुँचे तो उन्होंने देखा की जू के मालिक ने सारे हाथियों को पिंजरे में रखने के बजाय खुले में रखा है। उनके पैरो में नाम मात्र की एक रस्सी है जो एक खूंटे से बंधी है। सभी बड़े हैरान थे, इतने विशाल जानवर को आखिर इन्होंने इतनी पतली रस्सी से क्यों बाँध रखा है जबकि ये इसे एक झटके में तोड़ सकता है।
अपनी उत्सुकता को रोकते हुए सभी सदस्यों ने जू के मालिक को बुलाया। उन्होंने उससे कहा “आखिर ऐसा क्या है कि इतनी पतली रस्सी से भी बंधे होने पर भी ये कही हिल नहीं रहे और न इसे तोड़ने की कोशिश कर रहे है। सभी के चेहरे पर आश्चर्य का भाव था।
मालिक ने कहा “जब ये छोटे थे इनके पैरो में ऐसी ही रस्सियाँ बाँध दी गई” , ‘ये उस वक़्त इतने बलवान नहीं थे की उसे तोड़ पाए’। जैसे-जैसे ये बड़े होते गए इन्होंने मान लिया की ये कभी इस रस्सी को नहीं तोड़ पाएंगे।
वह बात आज तक इनके मस्तिष्क में है और इन्हें लगता है कि रस्सी इतनी मजबूत है कि ये उसे तोड़ नहीं सकते। सभी मालिक की बात सुनकर हैरान थे। आगे चलकर यही तथ्य “दी पॉवर ऑफ़ बिलीफ सिस्टम” के सिद्धांत के रूप में प्रतिपादित हुआ।
निष्कर्ष– जब भी हम ये मान लेते है कि ये काम हम नहीं कर सकते या हमसे नहीं होगा उसी वक़्त हम हार चुके होते। बचपन से हमें सिखाया जाता है कि ये तुमसे नहीं हो पायेगा, तुम इसके लायक ही नहीं हो, तुम्हारे बस की नहीं है। ये मानसिक गुलामी हमारे अन्दर भर दी जाती है और हम पुरी उम्र यही मान बैठते है कि वाकई हम उस लायक नहीं। स्वामी विवेकानन्द से लेकर महात्मा गांधी तक ने एक ही बात कही थी ‘जो आप मान लेते है आप वही बन जाते है’।
21. Moral Stories in Hindi – द पॉवर ऑफ़ थिकिंग
दुनिया में कितने प्रतिशत लोग ये यक़ीन करते है कि सपने सच होते है, शायद 10% या फिर 20%। यक़ीन एक बड़ी शक्ति है, कुछ लोगों का सवाल होगा की यक़ीन करने से क्या होता है, तो मेरा मानना है, की आप यक़ीन भी वही करते है जो आपके पास होता है, आप अपनी क्षमता के अनुसार यक़ीन करते है, और जो अपनी क्षमता से परे ख़ुद पर यक़ीन करता है, सफलता उसकी गुलाम होती है। इसी कड़ी में हमारी आज की कहानी है जो आपको मोटीवेट करेगी।
ये कहानी है यूरोप के सबसे अमीर देशों में से एक ब्रिटेन की। पाउलो ब्रिटेन के छोटे शहर में रहने वाला एक नौजवान लड़का था। युवावस्था में नौजवानों को सपने देखने की आदत होती है। पाउलो भी उन्हीं में से एक था।
पाउलो ने सपना देखा की वह शहर से दूर किसी वीरान जगह, जो उसने पहले कभी नहीं देखी थी पर उसने एक खजाने की खोज की है। वह रातों रात अमीर बन गया है।
पाउलो जब अगली सुबह उठा तो एक दम तरोताजा था परन्तु वह सपना उसकी आँखों में अभी भी तैर रहा था जो उसने पिछली रात देखा। पाउलो को लगा की वह हक़ीक़त में वहाँ गया है, जो उसने देखा वह एकदम सच था। पाउलो ने अपने मन में धारणा बना ली की वह खजाने के करीब है और उसका पता लगाएगा।
खजाने की खोज में पाउलो ने हाथ पैर मारना शुरु कर दिया। पुरानी किताबें, पुराने नक़्शे और अख़बार की कतरन के माध्यम से पाउलो ये पाता लगाने में लग गया की आखिर खजाना मिलेगा कहाँ। इस कड़ी में वह कई लोगों से मिला।
कुछ उसे पागल कहते, तो कुछ सिरफिरा। कुछ उसका मज़ाक उड़ाते तो कुछ उसकी जिज्ञासा में सहायता करने की बात कहते। इस तरह पाउलो के कई साल गुजर गए। वह अफ्रीका से एशिया गया फिर अमेरिका परन्तु पाउलो को खजाने का कोई सुराग न मिला।
वह दिन रात खजाने की खोज की खातिर बेचैन रहने लगा। उसे उम्मीद था की वो खजाने का पता लगा लेगा। पाउलो ने जिद पाल ली थी की वो खोज कर ही दम।
पाउलो 70 देशों की यात्रा कर चुका था पर अब तक उसे कुछ खास पता नही लगा था। अब वह मिस्र की यात्रा पर था। सुबह का समय भीषण गर्मी, पाउलो सूरज को घूर रहा था। उसकी हिम्मत जवाब दे गई थी, उसे कुछ सूझ नही रहा था की क्या किया जाए।
पाउलो घुटनों के बल बैठ गया और मिटटी को चूमने के लिए धरती के करीब पहुँचा। ऐसा लगा जैसे वह मिट्टी से बात करना चाहता हो। उसने मिट्टी को चूमा और आसमान की तरफ़ देखा। सूरज सर पर आग उगल रहा था।
अचानक पाउलो की निगाह एक सुनहरे बाज़ पर पड़ी जो उससे थोड़ी ही दूरी पर उंचाई पर उड़ रहा था। पाउलो को उस बाज की चल कुछ विचित्र लगी। वह एक ही जगह पर लगातार घूम रहा था।
अचानक घूमते-घूमते बाज चट्टानों के बीच गिर गया पाउलो बाज के पीछे भागते हुए गया, वहाँ जाकर देखा तो है तो बाज एक चट्टान पर मरा हुआ पड़ा था। भागते-भागते उसे होश ही नहीं था कि वह चट्टान की सबसे उपरी चोटी पर आ गया है।
पाउलो ने चट्टान की आकृति को ध्यान पूर्वक देखा उसे लगा उसने ये कही देखा है, फिर उसे याद आया की ये तो वही चट्टानें है जो उसने सपने में देखा था। चट्टानों पर विभिन्न प्रकार की आकृति बनी हुई थी पाउलो उसे देखते-देखते एक ऐसी जगह पहुंचा जहाँ कूप अँधेरा था।
वह डरा नहीं क्योंकि उसने कुछ सालो में जितनी मेहनत की थी उस मेहनत ने उसे निडर बना दिया था। पाउलो ने पोटली से मशाल निकाली और जलाई। पाउलो के होश का ठिकाना न रहा जब उसे लोहे के बहुत सारे बक्से दिखे जो हीरे, सोने, चांदी और बेशकीमती पत्थरों से भरे हुए थे। पाउलो ने ईश्वर को धन्यवाद दिया, झुककर धरती को चूमा। आज उसका यक़ीन सच का रूप धारण कर चुका था।
निष्कर्ष- हम जैसा मानते है, वैसे ही हम बन जाते है। “पॉवर ऑफ़ थिंकिंग” महज़ एक कांसेप्ट नहीं बल्कि ये वो ताकत है जो आपकी पुरी ज़िन्दगी बदल सकता है। हमारे आस-पास ऐसी शक्तियाँ है जो कुछ बुरी और कुछ अच्छी है, जब हम बुरा सोचते है तो बुरी चीज़ें हम पर हावी हो जाती है, और जब हम अच्छा सोचते है तो अच्छी चीज़ें। आपकी ऊर्जा का स्रोत आपकी सोच ही है।
22. Moral Stories in Hindi – जीना इसी का नाम है
एक सवाल हर किसी के जेहन में अक्सर होता है कि आखिर सफलता क्या है? क्या लाखों की गाड़ी में घूमना सफलता है या फिर करोड़ों के घर में रहना सफलता है।
सही मायने में सफलता तब कहते है जब आप अपने कार्य से खुश होते है और पहले से बेहतर ज़िन्दगी जी रहे होते है। हमारी आज की कहानी है ऐसे ही वीरांगना की जिन्होंने अपने कार्य से सफलता की एक नई परिभाषा लिखी।
भारती वीराथ जो बंगाल के वारांगल के एक छोटे कस्बे से थी। बचपन से ही अपनी आर्थिक ज़रूरतों से मजबूर वीराथ को जीवन और गरीबी ने बहुत चोट दिए थे। कई वक़्त ऐसा भी होता था जब वीराथ भूखे पेट सोती और माँ से कहती की उन्हें भूख नहीं है।
गरीबी और फटे-पुराने कपड़ों में वीराथ का पुरा बचपन निकल गया था। जब वह बड़ी हुई उन्होंने अपनी परिस्थितियों को ठीक करने की ठानी। अपने गृह नगर वारंगल में कोई आय का स्रोत न देखकर वीराथ ने पूरे परिवार के साथ बंगलौर जाने का फ़ैसला किया।
किसी तरह वहाँ पहुँचने के बाद वीराथ ने एक कमरा किराये पर लिया। 1 कमरा और रहने वाले 4 लोग, बड़ा मुश्किल था गुजारा करना परन्तु उनके पास कोई दूसरा रास्ता न था।
काम की खूब तलाश करने पर वीराथ को बहुत सारी ऐसी नौकरी करनी पड़ी जिससे वह संतुष्ट नहीं थी, जैसे कपड़ों की सिलाई, ट्रेवल एजेंसी में काम करना और बहुत कुछ। बंगलौर को ‘इनफार्मेशन और टेक्नोलॉजीज’ का हब माना जाता है।
बंगलौर में अधिकतर मिलायें काम काजी है, ये बात वीराथ को पता थी। उन्होंने ‘एंजेल कैब’ नाम की एक कम्पनी ज्वाइन की और ड्राइविंग करने लगी। ये कंपनी पुरी तरह से महिलाओं को समर्पित कैब सुविधा प्रदान करती थी। वीराथ की आय उस वक़्त मात्र 15000 रुपये थी। बंगलौर जैसे शहर में 15000 में गुज़ारा करना बहुत मुश्किल होता है।
ये वो दौर था जब अमेरिकी टैक्सी सेवा “उबर” भारत में आई ही थी। वीराथ ने केनरा बैंक से लोन लिया जो हर महीने 17000 रुपये प्रति किस्त के रूप में चुकाना। उससे उन्होंने एक फोर्ड फिएस्टा कार खरीदी।
उन्हें पता था कि वह क्या कर रही है और अगर लोन न चुकाया तो क्या होगा। वो एक साहसी महिला थी। जमीनी हकीकत को ध्यान रखते हुए वीराथ ने खूब मेहनत की और गाड़ी का लोन चुका दिया।
इतना ही नहीं अपनी प्रबल इच्छा शक्ति के दम पर वीराथ भारत की पहली महिला टैक्सी ड्राईवर बनी जिसको महिला टैक्सी के लिए लाइसेंस मिला। वीराथ को पहले कोई जानता तक नहीं था ,उनकी मेहनत के दम पर उन्हें विदेशों से बधाई सन्देश प्राप्त होने लगे। सब उनसे मिलना चाहते थे, उनसे बात करना चाहते थे।
कई साल गुजर गए वीराथ ने पीछे मुड़ कर नही देखा। आज वीराथ महीने का 45000 रुपये कमाती है। जब उनका मन करता है काम करती है वरना अपना एप्पल का आइफोन जिसमें ‘उबर’ का app इंस्टाल है बंद करके सो जाती है।
वीराथ हजारों महिलाओं के लिए एक उदाहरण नहीं हौसला भी है जो जीवन में कुछ करना चाहती है ,स्वावलंबी बनाना चाहती है।
23. Moral Stories in Hindi – सफलता के रंग
अंग्रेज़ी में एक कहावत है “if Edison was the king of failure, Rouling would be the queen of rejections” ।सफलता एक मिथक मात्र है, हाँ ये सत्य है कि सफलता एक दिन में नहीं आती परन्तु ये भी सत्य है कि लगातार कोशिश करने से एक दिन ज़रूर आती है। आज की कहानी एक ऐसी महिला की है जिसने मेहनत, क़िस्मत, और भरोसे तीनों का भरपूर उपयोग किया।
31 जुलाई 1965 को YATE, Bristol, इंग्लैंड में जन्मी एक महिला। किसी को नहीं मालूम था कि ये महिला आगे चलकर विश्व की सबसे ज़्यादा बिकने वाली किताबों की सीरीज “हैरी पोर्टर” की जन्मदाता बनेगी।
जे.के रोउलिंग की ज़िन्दगी में कई ऐसे पल आये जब ऐसा लगा की वह हार जायेगी या सफलता उनकी क़िस्मत में लिखी ही नहीं हैं। उन्हीं वाक्यों में से एक वाकया उनके शुरुवाती जीवन का है जो उनकी जी-तोड़ मेहनत की मिसाल पेश करता है।
बात उन दिनों की है जब रोउलिंग ने किसी एजेंट को अपनी लिखी किताब “हैरी पोर्टर” की एक प्रति भेजी ताकि वो उसे पढ़ कर उसे छपने में उनकी सहायता कर सकें। वह आशान्वित थी की एजेंट एक बार उसे ज़रूर पढ़ेगा।
एजेंट ने बिना किताब पढ़े हैरी को जो जवाब में लिखा वह दिल दहलाने वाला था। एजेंट ने लिखा ‘माफ़ कीजियेगा मेरी लिस्ट भर चुकी है, मुझे खेद है कि आप उस लिस्ट में कही नहीं आती’।
इससे भी दुखद बात ये थी की जिस फोल्डर में रोउलिंग ने अपनी कहानी भेजी थी एजेंट ने उसे भी रख लिया। रोउलिंग के लिए ये चीज़ किसी ज़हर की तरह थी। उनके पास इतने पैसे नहीं थे की वह एक नया फोल्डर खरीद कर किसी और एजेंट को अपनी कहानी भेज सके।
वह बड़ी मजबूर थी। बहुत कम लोग जानते है कि हैरी पोर्टर से पहले रोउलिंग 12 बार रिजेक्ट हो चुकी थी। ट्रैफिक सिगनल पर सोने से लेकर, मामूली जॉब करने तक, फिर यूरोप की सबसे अमीर महिला बनने तक का सफ़र उनका बहुत मुश्किलों भरा रहा।
आज रोउलिंग पुर्तगाल में अपने आलीशान बंगले रहती है, उनके पास महँगी से महंगी कारों का कलेक्शन है। उन्होंने वह सब कुछ पा लिया जिसके लिए वह एक समय दर-दर की ठोकरें खाती थी।
निष्कर्ष- जे.के रोउलिंग ने जिस मेहनत और लगन से अपने कार्य को किया, वैसा बहुत कम लोग कर पाते है। इतनी विषम परिस्थितियों में भी उन्होंने उम्मीद नहीं छोड़ी। निरंतर कोशिश करती रही। बड़ी सफलता सब्र और लगातार मेहनत मांगती है जिसे 90 फीसदी लोग पुरा नहीं कर पाते और असफल हो जाते है।
24. Moral Stories in Hindi – मुकद्दर का सिकंदर
उम्र छोटी थी, पर जज़्बात जिंदा थे
तुफां में भी उड़ गए हम वो परिंदा थे।
सैफुल्ला अख्तर बंगलौर (Banglore) में एक मामूली साड़ी डिस्ट्रीब्यूटर थे। साड़ियों को थोक मूल्य पर छोटे दुकानदारों को कम मार्जिन में देना उनका bussiness था। वह व्यापार में बस दिन काट रह रहे थे लाख कोशिशों के बाद भी उनकी आमदनी नहीं बढ़ रही थी।
सैफुल्ला को समझ नहीं आ रहा था कि क्या किया जाये? निरंतर व्यापार में घाटा बढ़ रहा था। मार्केट इतनी competitive हो चुकी थी की लागत निकालना मुश्किल हो गया था। एक ऐसा दौर आया जब उधारी बढ़ते-बढ़ते 8 लाख के करीब पहुँच गई।
सैफुल्ला का एक बेटा था जो अभी 11वी कक्षा में पढ़ रहा था। उसके भविष्य की जिम्मेदारी, कर्जों का बोझ सब कुछ सैफ्फुला के कंधों पर था। जब सैफुला कोशिश करके थक गए तो तंग आ कर सैफुल्ला ने अपना कारोबार समेट लिया और उसे घाटे में ही बेच दिया। काफी वक़्त तक वह घर पर ही रहे और सदमे में डूबे रहे।
एक दिन सैफुल्ला को मालूम चला की ‘कोलर’ का कोई कारोबारी अपनी दुकान बेच रहा है। कोलर हैदराबाद में जगह का नाम था। सैफुल्ला ने सोचा की क्यों न नए सिरे से काम शुरु किया जाए परन्तु उनके पास इतने पैसें नहीं थे की वह कारोबार दुबारा से शुरु कर पाए।
सैफुल्ला ने परिवार, दोस्तों और रिश्तेदारों से सहायता लेकर वह दुकान खरीद ली। उन्होंने अपने 16 साल के बेटे की पढ़ाई को बीच में छुटवा उसे दुकान संभालने के लिए कोलर भेज दिया।
इतनी छोटी उम्र का लड़का वह भी पढ़ाई छोड़कर दुकानदारी करने चला हो तो ज़माने वालों का ताना मारना लाजमी हैं। हुआ भी वही दोस्तों रिश्तेदारों ने सैफुल्ला को खूब खरी खोटी सुनाई, पर सैफुल्ला का इरादा न बदला।
सैफुल्ला के बेटे ने बाप की तकलीफ और दर्द को समझते हुए अपनी जिम्मेदारी को समझा और परिस्थितियों के साथ समझौता कर लिया। उसने ठान लिया की उसे जो जिम्मेदारी मिली है उसे वह बखूबी पुरा करेगा। उमर को काम का न कोई तजुरबा था और न ज्ञान।
कुछ समय के लिए उमर अमेरिका चला गया। वहाँ से काम की जानकारी लेकर वापस इंडिया आया। उसने जो कुछ वहाँ से सीखा था उसे भारत में उपयोग करने का सोचा।
उमर ने भारत आकर “koshki” नाम के ब्रांड से कपड़ों का काम शुरु किया। अपनी निरंतर ईमानदारी, सीखने की जिज्ञासा, ने koshki को south-india और फिर पूरे भारत में एक जाना पहचाना नाम बना दिया। उमर ने पहले लोकल मार्केट में अपना काम फैलाया।
अपने ग्राहकों को उचित मूल्य पर सामान उपलब्ध कराया। वह समय-समय पर उनका मूल्यांकन करता और उन्हें सही समय पर ठीक करता। यही वो बात थी जिसने उमर को सफलता की छोटी पर पहुंचा दिया।
देखते-देखते koshki 35 करोड़ की कंपनी बन गई। आज koshki की इंडिया में साड़ी, लहंगा, सूट और फैब्रिक मार्किट में बिकता है। उमर आज koshki के सी.ई.ओ है।
निष्कर्ष- इतनी छोटी उम्र में उमर ने काम को संभाला और उसे एक मुकाम पर पहुँचाया। इससे साबित होता है कि मुसीबतें बड़ी नहीं होती बल्कि इंसान छोटा होता है उसे समझने और सँभालने के लिए। अगर कोई लक्ष्य है तो मुसीबतें तो आयेंगी ही। सोना भी बिना तपे सोना नहीं बनता। उमर ने साबित किया की सफलता आपके उम्र के आड़े नहीं आती बल्कि आप पिछड़ जाते हो।
25. Moral Stories in Hindi – बहादुर श्यामा
श्यामा और गगन भाई बहन थे। दोनों में कभी बनती न थी। अकसर वह एक दूसरे से उलझ जाया करते थे। उनकी दिन भर की शरारतों से उनके माता-पिता उनसे परेशान हो चुके थे।
पिताजी को लगता था कि ये बच्चे आज अगर इस तरह है तो बड़े होने पर न जाने ये किस तरह साथ रहेंगे। श्यामा गगन से बड़ी थी। गगन पढ़ने में तेज था तो श्यामा समझदारी में।
किताबें और सामंजस्य दो अलग-अलग पहलू होते है और यही बात गगन और स्यामा में अलग थी। श्यामा की उम्र 14 वर्ष तो गगन की उम्र 12 वर्ष थी।
एक शाम की बात है कि दोनों कुछ सामान लाने के लिए बाजार गए। वह घर से सुबह ही निकल गए थे। पिताजी उस दिन अवकाश पर थे तो उन्हें उम्मीद थी की आज बच्चों के साथ वक़्त गुजारने का मौका मिलेगा, पर ये क्या बच्चे तो सुबह-सुबह ही बाज़ार के लिए निकल लिए थे।
हफ्ते के 6 दिन काम करके स्यामा और गगन के पिताजी थक जाते थे। इसलिए उन्होंने सोचा की आज आराम किया जाए।
दोपहर का वक़्त था, पिताजी बच्चों का इंतज़ार कर रहे थे। इंतज़ार करते-करते शाम हो गई पर दोनों बच्चे बाज़ार से नहीं लौटें। श्यामा और गगन सिर्फ सुबह का नाश्ता कर के निकले थे, इसी वजह से माँ भी परेशान थी की उन्होंने कुछ खाया होगा या नहीं।
श्यामा के परिवार में श्यामा, गगन और माता पिता के अलावा कोई नहीं था। माँ बच्चों के खाने-पीने से लेकर उनके सोने तक का पुरा ख़्याल रखती थी, इसलिए वह परेशान थी की बच्चे कहाँ रह गए।
अँधेरा होने को था बच्चे अब तक नहीं लौटें थे। पिताजी का गुस्सा सातवें आसमान पर था। उन्होंने ने चिंता जाहिर करते हुए श्यामा की माँ को कहा “कितनी बार कहाँ है बच्चों को अकेला मत भेजा करो, क्या ज़रूरत है उन्हें इतनी आज़ादी देने की”।
माँ भी डरी हुई थी की इससे पहले दोनों ने कभी ऐसा नहीं किया था फिर आज ऐसा क्या हो गया की वह अब तक घर नहीं लौटें। उनके मन में विभिन्न प्रकार के सवाल उठ रहे थे।
घर की घंटी बजती है “ट्रिंग ट्रिंग”। माँ ने दौड़ कर दरवाज़ा खोला। सामने श्यामा और गगन हाथों में थैला लिए हुए खड़े थे। माँ को पाता था कि अगर ये सीधा पिताजी के पास गए तो इन्हें खूब डांट खाना पड़ेगा।
माँ को उनके भूख की फिक्र थी, इसलिए माँ ने बहाना बनाते हुए कहा “बच्चों हाथ मुंह धो लो मैं तुम्हारे लिए खाना लगा देती हूँ”। पिताजी माँ के प्यार के आगे चुप रह गए। जैसे ही गगन और स्यामा खाने की टेबल पर बैठे पिताजी ने उनसे पूछा “ज़रा होश नहीं है, कहाँ थे तुम लोग”।
बच्चे डरे हुए थे, पर हर बार की तरह श्यामा ने शुरवात की “पिताजी हम लोग बाज़ार से बहुत पहले निकल गए थे, परन्तु रास्ते में एक हादसा हुआ”। हादसे की बात सुनकर पिताजी के कान खड़े हो गए।
श्यामा ने आगे बताते हुए कहा “जैसे ही हम सामान लेकर बस में चढ़े एक व्यक्ति जो देखने में बड़ा विचित्र लग रहा था हमारी सीट के ठीक पीछे आकर बैठ गया”। बस के चलते ही वह एक महिला का बैग लेकर भागने लगा। किसी का ध्यान उसकी तरफ़ नहीं गया।
परन्तु गगन ने उसे ऐसा करते हुए देख लिया था। वह चिल्लाया, मैंने बस रुकवाई और हम उस आदमी का पीछे करते हुए भागे। वह आगे-आगे भाग रहा था और हम चोर-चोर चिल्लाते हुए पीछे-पीछे।
आगे जाकर कुछ लोगों ने उसे पकड़ लिया और उसकी खूब पिटाई की। इतने में पुलिस आ गई और उसे ले कर चली गई। इस तरह महिला का बैग उसे वापस मिल गया। श्यामा ने एक ही सांस में सारी गाथा पिताजी को सुना दी।
पिताजी एकदम सन्न पड़ गए। इतने छोटे-छोटे बच्चों की इतनी बड़ी बहादुरी ने पिताजी का सर गर्व से ऊँचा कर दिया था। वह अपनी सीट से उठे और बच्चों को गले लगा लिया।
वह समझ चुके थे की बच्चे आखिर क्यों लेट हुए। अगली सुबह के अख़बार में स्यामा और गगन की तस्वीर बहादुर बच्चों के कॉलम में छपी थी। माता-पिता-सा सर फख्र से ऊँचा हो गया।
निष्कर्ष- बड़ा कार्य करने के लिए उम्र की नहीं बहादुरी की ज़रूरत होती है। आये दिन हम ऐसे उदाहरण देखते है जो हमें हैरान ही नहीं करते बल्कि प्रेरित भी करते है कि आखिर ये कर सकता है तो फिर मैं क्यों नहीं? अच्छाई करने के लिए उम्र नहीं इरादे चाहिए होते है। अगर आप अपाहिज है तो आप रेंग सकते है बजाए की आप ख़ुद को ज़िन्दगी भर कोसते रहे की भगवान ने आपको अपाहिज बनाया।
26. Moral Stories in Hindi – क्रोध का फल
प्राचीन काल की बात हैं, रोम के एक छोटे से कसबें में एक परिवार रहता था। परिवार में सिर्फ एक ही संतान थी। पिता अपने बेटे के अत्यधिक गुस्सा होने की आदत से परेशान रहते थे। कई डॉक्टर को दिखाने के पश्चात भी लड़के के गुस्से का समाधान नहीं हो पा रहा था।
पिताजी जी परेशान थे की जब तक घर पर है तब तक तो ठीक है अगर ये बाहर लोगों के बीच गया तो कैसे अपने गुस्से को काबू में करेगा और अगर ये ऐसा न कर पाया तो नौकरी या व्यापार में इसका गुस्सा बाधक बनेगा। सभी परिस्थितियों को ध्यान में रखकर पिताजी ने बेटे के गुस्से का एक समाधान निकाला।
पिताजी ने अगली सुबह लड़के को कीलों से भरा एक बैग दिया। लड़का हैरान था कि इतनी सारी कीलों का वह क्या करेगा? पिताजी ने बैग देते हुए कहा ” जब भी तुम्हें गुस्सा आये, इन कीलों को निकालना और बड़े ही ध्यान से घर के चारों तरफ़ ठोकते हुए फेंसिंग करना।
याद रहे बड़े धैर्य के साथ तुम्हें ये करना है। लड़का मान गया। लड़के को जब पहले दिन गुस्सा आया उसने 36 कीलें ठोकी। इस तरह दिन प्रतिदिन कीलों की संख्या घटती गई।
एक दिन ऐसा आया जब उसने एक दिन में सिर्फ एक कील ठोकी। उसे धीरे-धीरे एहसास होने लगा की उसने गुस्सा करना कम कर दिया है। उसने जिस धैर्य के साथ कीलें ठोकी उसने उसके गुस्से को कम कर दिया था।
अब पिताजी ने लड़के को पास बुलाया और कहाँ “अब तुम्हें उस फेंसिंग की हुई कीलों को वापस निकालना है। याद रहे की कोई भी कील टेढ़ी या मुड़ी हुई न निकले। बड़ी सावधानी से निकालना। लड़के ने ऐसा ही किया। पहले दिन उसने 30 कीलें निकाली।
उसे ध्यान रखना था कि कील मुड़े नहीं, इसलिए वह बड़ी सावधानी और धैर्य के साथ निकाल रहा था। वक़्त गुजरने के साथ प्रत्येक दिन कीलों की संख्या घटती गई। अब वह सारी कीले निकाल चुका था। लड़के को ज़रा भी गुस्सा नहीं आता था।
उसे पता ही नहीं चला की कब वह गुस्सा करना छोड़ चुका हैं। पिताजी लड़के का हाथ पकड़ कर ले गए और उसे कहा” देखो ये जो तुमने कीलें ठोकी और फिर इन्हें निकाला इसके निशान नहीं गए। हालांकि तुमने हर चीज़ बड़े तरीके से की परन्तु फिर भी ये गड्ढे छोड़ गए।
लड़का कुछ समझ नहीं पा रहा-रहा था। पिताजी ने आगे कहाँ ” जब भी तुम गुस्सा करते हो, मुंह से अपशब्द निकलते है। यद्यपि तुम माफ़ी मांग लेते हो परन्तु वह अपमान जो तुमने गुस्से में किया है, उसे मिटाया या भुलाया नहीं जा सकता।
ये ठीक उस गड्ढे के सामान है जो किलो के ठोकने और उन्हें निकालने से बनता है। लड़का पिताजी की सारी बात समझ चुका था। वह समझ चुका था कि गुस्से में किया गया अपमान सिर्फ दूसरों के लिए ही नहीं अपितु लिए भी हानिकारक है।
27. Moral Stories in Hindi – सच्ची मित्रता
फिनलैंड का शहर और सुबह का नज़ारा। पुरा बाज़ार सुबह-सुबह ही गुलज़ार हो चुका था। जॉन अपनी दुकान पर हर दिन की तरह साफ़ सफ़ाई का कार्य कर रहे थे। जॉन फ़िनलैंड में रहने वाले एक पालतू पशुओं के विक्रेता थे।
जॉन की रोजमर्रा की ज़िन्दगी सिर्फ इतनी थी की वह सुबह दुकान खोलते है और विभिन्न नस्ल के कुत्तों और बिल्लियों को सुबह से शाम तक ग्राहकों को दिखाते हुए अपना दिन व्यतीत करते। आज का दिन जॉन के लिए कुछ खास था।
उन्हें एक विशेष प्रकार के कुत्ते को बेचना था जिसे कोई नहीं खरीद रहा था। जॉन ने लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए अपनी दुकान के बाहर एक बोर्ड लगाया “puppies for sale only at $350-$450″।
जो भी वह से गुजरता उसे हैरानी होती की आखिर ये कौन-सा पप्पी है जो इतना महंगा है, इस तरह सुबह से शाम तक बहुत लोग आये परन्तु किसी ने उस पप्पी को नहीं ख़रीदा।
शाम ढलने वाली थी, अँधेरा हो चुका था तभी दुकान के सामने से एक बच्चा गुजरा जो देखने में बहुत मासूम सा लग रहा था। वह बोर्ड पर लिखे शब्द पढ़कर जॉन के पास पहुंचा। जॉन उस बच्चे को बड़ी मासूमियत से देख रहे थे जब वह बाहर लगा बोर्ड पढ़ रहा था।
बच्चे ने जॉन से पूछा “क्या आप मुझे स्पेशल पप्पी दे सकते है परन्तु मेरे पास केवल $2.5 डॉलर है”। जॉन को यक़ीन नहीं हो रहा था कि आखिर ये मासूम बच्चा इस पप्पी को क्यों खरीदना चाहता है? बच्चे की निर्भीकता देखकर जॉन को बड़ी ख़ुशी हुई।
जॉन ने अपनी बीवी जो सीढ़ियों पर खड़े होकर सारा नज़ारा देख रही थी को वह पप्पी लाने के लिए कहा। जब जॉन की बीवी लौटी तो उसके हाथों में वह छोटा-सा पप्पी था जो बड़ा मासूम दिख रहा था। लड़का पप्पी को देख खुश हो गया।
जॉन ने कहाँ “यद्यपि तुम्हारे पास पूरे पैसे नहीं है मेरे बच्चे, परन्तु मैं इसे देने को तैयार हूँ”। अब जो मैं कहने जा रहा हु वह सुनने के बाद तुम $2.5 डॉलर भी नहीं दोगे और न पप्पी लोगे। लड़का कुछ पल के लिए हैरान हुआ परन्तु वो सच जानना चाहता था।
जॉन ने बताया की ये पप्पी अपाहिज है, इसकी टांगो में स्टील की रॉड लगी है। इसलिए ये न चल सकता है और न ही दौड़ सकता है। बच्चे ने सारी बात सुनी और बोला मैं फिर भी इसे लूँगा। जॉन हैरान थे की आखिर ये इस अपाहिज को क्यों लेना चाहता था।
जॉन ने कारण पूछा। बच्चे ने अपनी पेट ऊपर उठाई और अपने पैरो की तरफ़ इशारा करते हुए कहा, इसकी तरह मैं भी अपाहिज हूँ, मैं भी दौड़ नहीं सकता बस चल सकता हूँ।
मुझे लगता है कि मेरे लिए यही बेहतर है बिलकुल मेरी तरह है। इसमें और मुझमें कोई फर्क नहीं। बच्चे के जुबां से इतना मार्मिक शब्द सुनकर जॉन की आंखें भर आई उन्होंने वह पप्पी बच्चे को बिना पैसे लिए ही दे दिया।
निष्कर्ष- ईश्वर ने हर इंसान के लिए एक साथी बनाया है, तो ये कहना ग़लत होगा की ईश्वर ने किसी के साथ नाइंसाफी की है। आप जैसे भी है, जिस हाल में है कोई ऐसा भी होगा जो आपको उसी हालात में स्वीकार करेगा। ज़िन्दगी दोस्त और रास्ता दोनों ढूँढ लेती है।
28. Moral Stories in Hindi – “डू वाट यू लव, लव वाट यू डू”
ये कहानी हैं एक ऐसे लड़के की जिसने मात्र 16 साल की उम्र में कई साहसिक फैसले लिए जिसे बड़े-बड़े लोग नहीं ले पाते। उसने वो किया जो उसे पसंद था। अपनी शर्तों पर उसने जिन्दगी जी और सफल हुआ।
उसे साइकिलिंग पसंद थी, उसने साइकिलिंग को अपना करियर बनाया। उम्र 16 साल, नाम शोभित बंगा। शोभित साइकिलिंग के लिए दिल्ली से बैंगलोर गया। वहाँ उसने विभिन्न प्रतियोगितओं भाग लिया। शुरू में उसे कोई खास सफलता न मिली परन्तु शोभित एक जुनूनी व्यक्तित्व का था।
वो लगातार कोशिश करते रहा। शोभित बैंगलोर में सरकारी क्वार्टर में रहता था। अपने पैशन को फॉलो करने के लिए उसने वहाँ के लोगों को साइकिलिंग सिखाने का काम शुरू किया। इससे उसे कुछ पैसे भी मिल जाते जिससे उसका रोज का खर्चा चल जाता और प्रैक्टिस भी हो जाती।
शोभित बंगा भारत के ऐसे सबसे युवा साइकिलिस्ट बने जिन्हें मात्र 16 साल की उम्र भारत की तरफ़ से सबसे बड़े साइकिलिस्ट प्रतियोगिता में हिस्सा लेना का मौका मिला। शोभित पार्ट टाइम नौकरी के साथ-साथ साइकिलिंग में भी करियर बना रहे थे।
शोभित काफ़ी युवा और सपने देखने वालों में से थे। उन्होंने हमेशा अपने मन की सुनी। एक वक़्त ऐसा भी आया जब शोभित को पारिवारिक समस्याओं की वजह से बैंगलोर छोड़ कर दिल्ली आना पड़ा।
यहाँ आने के बाद शोभित ने बैचलर डिग्री लेने के लिए G.D Goenka इंटरनेशनल business school में एडमिशन लिया। पढ़ाई के दौरान उन्होंने ने पाया की उनके साथ पढ़ने वाले बच्चे एक बनी बनाई परिपाटी में चल रहे है।
करियर को लेकर किसी में कोई उत्साह नहीं है। सब नौकरी की खातिर बड़ी-बड़ी डिग्रियों के पीछे भाग रहे है, परन्तु किसी को नहीं पाता की आखिर उनकी रुचि किसमें है और क्यों है? उन्हें ये बात बहुत बुरी लगी। वह सोचने लगे की कोई ऐसा प्लेटफार्म तैयार किया जाए जहाँ लोग अपनी अभिरुचि, अपने सक्सेस और अपने फेलियर के बारे में बात करें।
बात उन दिनों की है जब शोभित ऐसे ही किसी खोज में लगे थे। एक पार्टी में शोभित अकेले कार्नर में खड़े होकर अपने विचारों में मग्न थे। वही पर उनकी मुलाकात सुप्रिया से हुई। सुप्रिया के पिता एक business man थे इसी वजह से सुप्रिया C.A करना चाह रही थी।
जैसे ही वह शोभित से मिली शोभित के प्रति उनका लगाव बढ़ गया, बाद में दोनों के बीच दो चार मुलाकातें हुई। उन्होंने पाया की शोभित की सोच एकदम नई है और वाजिब है। सुप्रियाँ ने CA का ख्वाब दिल से निकाल दिया और शोभित के आईडिया पर काम करने का प्लान बनाया।
सुप्रियाँ को मालूम था कि उनके पिताजी इस बात के लिए कभी राजी नहीं होंगे। सुप्रिया मानसिक तौर पर इसके लिए तैयार थी। सब कुछ ठीक चलता रहा, शोभित और सुप्रिया ने मिलकर “JOSH TALK” नाम से एक YouTube चैनल बनाया।
जोश टॉक ऐसे लोगों को आगे लेकर आया जिन्होंने अपने हिम्मत और अपने ज़िद के दम पर अपनी मंज़िल हासिल की। अरुणिमा सिन्हा से लेकर “गूँज” के फाउंडर तक बड़े-बड़े और हिम्मती चेहरे इसी प्लेटफार्म के माध्यम से लोगों को अपनी असाधारण सफलताओं से रूबरू करा पाए।
आज जोश टॉक, TED-X के बाद सबसे बड़ा motivational प्लेटफार्म बनकर उभरा है। शोभित कंपनी के सीईओ है और सुर्प्रियाँ MD है। शोभित ने लोगों को एक ऐसा प्लेटफार्म दिया जहाँ लोग अपनी अभिरुचि ,अपने फेलियर और अपनी सफलता को हर युवा तक पहुंचा पाए जिसे देख कर लोग अपने जीवन की सही दिशा तय कर पाए। “जोश टॉक” ने ऐसे हजारों लोगों को उम्मीद की किरण दी है जो अन्दर से हार चुके थे और अपनी अन्दर की क्षमताओं से वाकिफ नहीं है।
29. Moral Stories in Hindi – सच्ची भलाई
बहुत समय पहले की बात है एक गाँव में एक साधु रहता था। साधु का नाम महंत था। गाँव में एक बात बड़ी प्रसिद्ध की साधु को ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त है। वह जो कहता है वह सत्य हो जाता है।
गाँव में ये भी बात प्रसिद्ध थी कि महंत बाबा किसी को अपने घर से भूखे नहीं जाने देते, पुरा सेवा सत्कार करके भेजते हैं। यद्यपि उनके पास धन दौलत नहीं है परन्तु वह ईमान और दिल के बहुत धनी है।
ज्येष्ठ का महीना था, गर्मी अपने चरम पर थी। महंत बाबा अपनी कुटिया के अन्दर बैठ कर राम नाम का जाप कर रहे थे, तभी उनके कानों में किसी के कराहने की आवाज़ आई। बाबा ने बाहर जाकर देखा तो एक आदमी मूर्छित अवस्था में पड़ा था।
बाबा उसे कुटिया के अन्दर लाये। उसके हाथ-पांव को पानी से धोया, तोलिये से पोंछा। आदमी भूख और प्यास से मूर्छित हो गया था। बाबा ने उसके लिए बहुत ही स्वादिष्ट व्यंजन और पानी की व्यवस्था की।
जब वह उठा तो उसने भरपेट खाना खाया और मन भर जल ग्रहण किया। वह काफ़ी दिनों से भूखा था। आदमी ने बाबा का आभार व्यक्त किया और पूछा” बाबा इतने कम समय में आपने ये सब कैसे किया”?
बाबा ने उसे एक थाली दिखाते हुए कहा “ये चमत्कारी थाली है, मैं जो भी खाना चाहता हूँ इससे मिनटों में आ जाता है”। आदमी हैरान के साथ प्रसन्न भी हो रहा था। उसने सोचा की अगर ये थाली मुझे किसी तरह मिल जाए तो मेरी जिंदगी की सारी मुश्किलें खत्म हो जायेंगी। उसने एक योजना बनाई। उसने बाबा से कहा “बाबा क्या मैं आज रात यहाँ रुक सकता हूँ” ? बाबा ने ‘हाँ’ में सिर हिलाया।
बाबा जब रात को सो गए तो वो व्यक्ति थाली लेकर फरार हो गया। असलियत में वह एक चोर था। थाली को प्राप्त करने के बाद चोर ने थाली से खूब फरमाइश की परन्तु उसकी एक भी इच्छा पुरी न हुई। चोर को लगा की बाबा ने उसे बेवकूफ बनाया है।
चोर थाली लेकर बाबा के पहुँचा और बाबा को खूब खरी खोटी सुनाई। बाबा क्रोधित नहीं हुए बल्कि उस थाली से ही चोर को इच्छित वास्तु प्राप्त करके दिखाया। बाबा ने कहा ‘ये थाली तभी किसी और के पास काम करेगी जब मैं मर जाऊंगा’।
चोर ने ठान लिया की वह बाबा को मार देगा। रात हुई चोर ने बाबा के खाने में ज़हर मिला दिया और थाली लेकर भाग गया। चोर के अथक प्रयत्न करने के बाद भी थाली से कुछ न निकला। चोर क्रोध से लाल पिला हो गया। उसने सोचा क्यों न एक बार चल कर बाबा की लाश को देखा जाए।
चोर जब वहाँ पहुँचा तो बाबा ईश्वर के नाम का जाप कर रहे थे। चोर के पैरो से ज़मीं खिसक गई की आखिर बाबा मरा क्यों नहीं? चोर ने बाबा के ध्यान से उठने के बाद पूछा “बाबा आप ज़िंदा है?” बाबा ने कहा क्यों मुझे मर जाना चाहिए था क्या ? चोर सकपका गया, चोर ने बाबा को सारी कहानी बताई।
बाबा ज़ोर से हँसे और चोर से पूछा “कुछ खाओगे तुम्हें भूख लगी होगी तुमने कल से कुछ नहीं खाया?” इतना बुरा करते हुए भी बाबा के मुख से वही प्यार और वही सत्कार देख कर चोर लज्जित हो गया।
बाबा ने कहा तुम अपनी बुराई नहीं छोड़ सकते तो मैं अपनी भलाई कैसे छोड़ दूँ। जितना तुम्हें अपनी बुराई से प्रेम है उतना मुझे अपनी अच्छाई से। हम दोनों एक जैसे है बस फर्क ये है कि तुम बार-बार पराजित हो जाओगे और मैं बार-बार तुम्हें जीत लूँगा। चोर बाबा के पैर पकड़ कर रोने लगा।
निष्कर्ष- प्रेम, त्याग, और शीतलता किसी भी मनुष्य के सबसे बड़े आभूषण है। वह मनुष्य जो सदा इनको महत्व देता है हमेशा विजय को प्राप्त करता है।
30. Moral Stories in Hindi – कलम का दोष
एक बार एक चित्रकार बनारस के छोटे से गाँव में रहता था। चित्रकार अपनी चित्रकला में पूर्ण रूप से निपुण था परन्तु जब भी कोई चित्र बनाता उसमें एक कमी छोड़ देता।
जैसे अगर मानव का चित्र बनाता तो उसकी नाक टेढ़ी कर देता, या फिर उसके हाथ या फिर उसके पैर। गाँव के सभी लोग उसकी इस आदत से परेशान थे, की इतनी अच्छी निपुण होते हुए भी ये आखिर गलती क्यों करता है?
चित्रकार के दो बेटे थे। चित्रकार ने दोनों बेटों को चित्रकारी में निपुण कर रखा था। उन्हें हर वह बारीक चीज़ सिखाई थी जो उनकी चित्रकारी को उससे बेहतर बनाती थी। पहले उसके बेटों द्वारा बनाए चित्र के 3 रुपये मिलते और उसे ख़ुद 2 रुपये।
बेटों की कमियाँ बता-बता चित्रकार ने उन्हें इतना परिपक्व कर दिया की उसके बेटों को 5 रुपये मिलने लगे। चित्रकार को अभी भी 2 रुपये ही मिल रहे थे। चित्रकार ने बेटों की कमियाँ निकालना नहीं छोड़ा।
एक दिन वह बेटे द्वारा बनाई एक चित्र में कमी निकाल ही रहा था कि उसका बड़ा बेटा क्रोधित हो गया। उसने कहा “आपको नहीं लगता हम आपसे बेहतर हो गए है, आप हर चित्र में एक न एक गलतियाँ करते है, आपको आपके चित्र के 2 रुपये मिलते है और हमें 5 रुपये , फिर आप हमें कैसे बता सकते है कि क्या सही है क्या गलत”?
चित्रकार मुसकुराया और उसने समझाया की यही गुमान उसे बचपन में हो गया था, इसे ख़त्म करने के लिए ही वो हमेशा अपने चित्रकारी में एक गलती कर देता है, जिससे लोग आकर उसकी बहुत सारी गलतियाँ निकालते है।
इससे उसे याद रहता है कि वह गलती जो उसने की उसने उसकी बहुत सारी गलतियों से उसे परिचित कराया इस तरह उसे सुधार करने में आसानी होती है। वो हर चित्र में गलती सिर्फ इसलिए करता है ताकि उसके बेटों को उनके बनाए चित्र का सही मूल्य मिल पाए।
उसने आगे कहा “एक पिता होने के नाते मेरा फ़र्ज़ है कि मैं तुम्हें सबसे बेहतर बनाऊँ, खुद से भी बेहतर”। चित्रकार की बात सुनकर दोनों बेटे लज्जित हो गए। वह समझ गए की पिता ने सिर्फ उनके खातिर ख़ुद को हमेशा उसने नीचे रखा। वह उन्हें ख़ुद से बेहतर बना पाए इसलिए हर चित्र में ज़्यादा से ज़्यादा गलतियाँ निकालते रहा।
निष्कर्ष- कई बार हमें लोगों की कोई बात चुभ जाती है या दिल पर लग जाती है, वही बात आगे जाकर हमारी सफलता की पूंजी बनती है। जब भी कोई आपकी कमी बताएँ या आपकी बुराई करें उसे ध्यान पूर्वक सुने और अगर वाजिब हो तो सुधार करें। गलतियाँ करना इंसानी फितरत है परन्तु उसे ठीक करना मानव का कर्तव्य।
31. Moral Stories in Hindi – असफलता की खोज
सही पढ़ा आपने असफलता की खोज। कभी-कभी हमें सफल होने के लिए असफलता की खोज करनी पड़ती है ,हाँ खुद की असफलता की खोज, जो ऐसा कर पाते है वही सफल हो पाते है। हमारी आज की कहानी भी ऐसे ही नायक की है ,जिसने संघर्ष और संयम का जीवंत उदाहरण पेश किया है और पुरी दुनिया में अपना नाम रोशन किया।
ये कहनी है उन दिनों की है जब एक लड़का एक्टिंग में करियर बनाने के लिए संघर्ष कर रहा था। दिन की भूख, रात को कई बार खली पेट सोना और अगले दिन के लिए फिर से ख़ुद को तैयार करना, उसके लिए हर दिन एक नई चुनौती की तरह होता था। लड़के के पास खुद का कोई सहारा न था ,वो कॉलेज के साथ साथ छोटे मोटे काम करके अपना गुजारा किसी तरह करता रहा था।
इसी संघर्ष में लड़के ने 7 साल गुजार दिए परन्तु उसके हाथ कुछ न लगा। वह जिसके पास अपने लिए काम मांगने जाता लोग उसका मज़ाक उड़ा कर भगा देते। एक वक़्त ऐसा आया की उस लड़के को अपनी बीवी के गहने तक बेचने पड़े क्योंकि उसके पास अपने काम को जारी रखने के लिए पैसे नहीं थे।
लड़के को अपने प्यारे कुत्ते को भी बेचना पड़ा क्योंकि वह उसके लिए भोजन की व्यवस्था करने में असमर्थ था। लड़के को कहीं आने-जाने के लिए पैसें और लिखने के लिए कागजों की ज़रूरत पड़ती परन्तु वह उसकी भी व्यवस्था करने में असमर्थ था।
परिवार और बच्चों का बोझ अलग से था। जब कुछ न सूझा तो लड़के ने अपने शूटिंग कैमरे को बेच दिया। लड़के की गरीबी यहीं ख़त्म नहीं हुई क़िस्मत ने उसे उस मुकाम तक पहुँचा दिया की उसे अपना घर तक बेचना पड़ा।
3 दिनों तक वह सड़क पर सोता रहा। पागलों की तरह भटकता रहा पर उसने हार न मानी। एक दिन लड़के को किसी फ़िल्म की शूट पर एक छोटी-मोटी नौकरी मिल गई। लड़का लिखने में माहिर था।
जब डायरेक्टर को मालूम चला तो डायरेक्टर ने उसे एक फ़िल्म की स्क्रिप्ट लिखने के लिए कहा। लड़के ने 3 दिन के अन्दर स्क्रिप्ट लिख कर डायरेक्टर को दे दिया। डायरेक्टर हॉलीवुड का नामी-गिरामी आदमी था।
लड़के की काम करने की चाह देख कर डायरेक्टर बड़ा प्रभावित हुआ। उसने लड़के को उसी स्क्रिप्ट में लीड रोल की भूमिका दे दी। लड़के ने उस रोल के लिए इतनी मेहनत की डायरेक्टर का लड़के पर और विश्वास बढ़ गया।
ये वह दौर था जब “रॉकी” जैसी सुपर-डुपर हिट फ़िल्म बन कर तैयार हुई। जी हाँ वह नायक था “सिल्वेस्टर स्टेलोन”। सिल्वेस्टर ने उसके बाद कभी पीछे मुड कर नहीं देखा और एक के बाद एक हिट फ़िल्में दी।
अपनी गरीबी को याद करते हुए सिल्वेस्टर भावुक हो जाते है, वो कहते है कि उन्हें ख़ुशी है कि उन्होंने इतने बुरे दिन देखे। ये उनकी किस्मत नहीं हो सकती बल्कि इसे वह ईश्वर द्वारा ली हुई परीक्षा की तरह लेते है, ईश्वर सभी को मौका देते है परन्तु ये जांचने के बाद की क्या वह उस लायक है?
32. Moral Stories in Hindi – टैलेंट के साथ परिश्रम
एक छोटे लड़के को फुटबॉल का बड़ा शौक था। उसे प्रायः फुटबॉल खेलना पढ़ाई से ज्यादा अच्छा लगता था। बच्चा एक माध्यम वर्गीय परिवार से था। परिवार में 3 बहने वो ,और उसके माता पिता थे।
घर में केवल दो कमरे होने की वजह से बच्चे को अपनी दोनों बहनों के साथ अपना रूम शेयर करना पड़ता था। उसके पास खेलने के लिए उसकी पसंदीदा फुटबॉल नहीं थी। उसने उसका भी समाधान निकाल लिया था।
वो खाली बोतलें, टिन के खाली डब्बे, कपड़े और कागज़ की गेंद बना कर दिन भर गलियों में खेलता रहता, परन्तु उसने अपनी फुटबॉल के प्रति दीवानगी को नहीं छोड़ा। माता-पिता इस काबिल न थे की उसकें लिए नई फुटबॉल खरीद पाए, पर लड़का कभी इस बात से निराश नही हुआ की उसके पास फुटबॉल तक के पैसें नही हैं।
जी हाँ ये सच हैं, दुनिया के महान फुटबॉल प्लेयर क्रिस्टियन रोनाल्डो का बचपन कुछ ऐसे ही तंगहाली में गुजरा था । जब वो 11 वर्ष के हुए तब जाकर उन्हें उनकी पहली फुटबॉल मिली वो भी घर से 500 मील दूर जाकर एक स्पोर्ट्स अकादमी में ।
रोनाल्डो का जीवन गरीबी और दुःख में तो नहीं गुजरा परन्तु रोनाल्डो ने वो सारी सुविधाएं अपनी शुरुवाती जीवन में नहीं पाई जिनकी जरूरत एक अच्छे प्लेयर को होती है। न ढंग के जूतें मिले , न ढंग का प्रशिक्षण मिला। रोनाल्डो के पिता की इनकम इतनी नहीं थी की वो घर के साथ साथ रोनाल्डो के करियर पर खर्च पाए।
रोनाल्डो अपने बुरे दिनों को याद करते हुए कहते है “मैंने कभी भी गरीबी को अपनी कमी नहीं बनने दिया’’। मैं जानता था की मुझे इसके लिए तैयार रहना होगा। हकीकत ये है की आपको लड़ना होता है कल के लिए। अगर आपने अपने आज को अपने कल पर हावी होने दिया तो यकीन कीजिये आपका आज आपका कल खा जाएगा।
आगे चलकर रोनाल्डो दुनिया के नंबर 1 फुटबॉलर बनें। वो संसार के ऐसे पहले खिलाड़ी थे जिनकी आय 1 बिलियन से ज्यादा हुई वो भी किसी एक साल में। आज रोनाल्डो की इनकम करोड़ों में है परन्तु वो अपने कल को नहीं भूले।
आज वो करोड़ों की चैरिटी करते है। अपनी फुटबॉल अकादमी चलाते है, जहाँ गरीब बच्चों को निशुल्क प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। रोनाल्डों करोड़ों युवाओं के लिए एक आदर्श है जो खेल के क्षेत्र में अपना नाम रोशन करना चाहते है परन्तु उनके पास वो सुविधा नहीं है जिसकी जरूरत एक खिलाड़ी के तौर पर होती है। हर मुसीबत का हल है ,और हल ढूंढने वाला ही सच्चा खिलाड़ी हैं।
33. Moral Stories in Hindi – फुर्सत के क्षण
माइक विल्सन अमेरिका के बहुत बड़े बिजनस मैन थे। उनके पास अथाह सम्पति थी। रैंडी नामक एक स्त्री उनकी सहायिका थी जो उनके साथ लम्बे समय से कार्य कर रही थी।
उनकी मीटिंग फिक्स करना ,उन्हें उत्पादों के आवा-गमन की जानकारी देना और विल्सन के खाने- पीने का ख्याल रखना रैंडी की ड्यूटी थी। विल्सन उसकी सेवा से बहुत खुश रहा करते थे।
एक बार विल्सन कंपनी का हिसाब किताब देख रहे थे। उन्हें हिसाब में कुछ गड़बड़ी लगी। उन्होंने रैंडी से उसका कारण पूछा जिसका जवाब रैंडी के पास न था। विल्सन चिंतित हो गए।
उन्होंने जो साम्राज्य खड़ा किया था वो यूँ ही नही खड़ा हुआ था। विल्सन ने उसके लिए अपनी पुरी जिंदगी लगा दी थी। अपनी पुरी जवानी को खपा दिया था। विल्सन को गुस्सा आया और उन्होंने रैंडी को बुरा भला कह काम से निकाल दिया। रैंडी चुप-चाप वहां से चली गई।
अगली सुबह ऑफिस आकर विल्सन ने हर रोज की तरह रैंडी को आवाज़ लगाईं, वो भूल गए थे की वो रैंडी को जॉब से निकल चुके है। विल्सन की निगाहें सारे दिन रैंडी को खोजती रही। धीरे-धीरे विल्सन ने अपना ध्यान रखना बंद कर दिया।
न वो वक़्त पर खाते और न ऑफिस का काम समय पर कर पाते । मानसिक तनाव की वजह से विल्सन बीमार पड़ गए। विल्सन माफ़ी मांगने में यकीन नहीं रखते थे। इसी अहंकार वश वो रैंडी को वापस नहीं बुला पायें।
विल्सन की हालत धीरे-धीरे बहुत ज्यादा ख़राब हो गई। जब ये बात रैंडी को मालूम चली तो वो भागती हुई विस्लन के पास आई। विल्सन उस अवस्था में नहीं थे की वो जिद कर पाते।
उन्होंने रैंडी की तरफ मुसकुरा कर देखा और पास बैठने का इशारा किया। विल्सन ने रैंडी से एक अजीब सवाल पूछा “रैंडी अगर ये कहा जाए की अगले जन्म में तुम्हें विल्सन यानी मेरी जगह लेनी है, या असिस्टेंट यानी तुम्हारी जगह तो तुम क्या बनना पसंद करोगी”?
रैंडी ने तपाक से जवाब दिया की मैं असिस्टेंट ही रहना पसंद करूँगी। विल्सन को रैंडी का जवाब कुछ अटपटा लगा, की आखिर कोई मालिक की कुर्सी छोड़ कर नौकर बने रहना ही क्यों पसंद करेगा ?
विल्सन के उलझन को समझते हुए रैंडी ने कहा “आपने पुरी जिंदगी मेहनत की ,कई रातें जाग कर काटी ,आप इस ऑफिस में चपरासी से भी पहले आते है ,और सभी के जाने के बाद जाते है। न तो अपने परिवार को वक़्त दिया और न जिंदगी को जिया।
पुरी उम्र आप पैसों के पीछे भागते रहे। बात यही तक नहीं है, आप ऑफिस से घर जाकर भी काम की बात सोचते है, अब सर आप बताइए ऐसी जिंदगी किस काम की, पुरी जिंदगी आपने धन संचय में लगा दिया।
उसके मज़े नहीं लिए। आपसे अच्छा’ तो वो चपरासी है जो वक़्त पर आता हैं वक़्त पर चला जाता है। उसे न कल की फिक्र है और और न आज का इंतजार”।
विल्सन समझ गए की रैंडी उन्हें क्या समझाना चाहती है। रैंडी ने उनकी सारी जिंदगी पर प्रश्न खड़ा कर दिया था। रैंडी की एक-एक बात में विल्सन को सच्चाई नज़र आ रही थी। जिस धन को विल्सन ने संचय किया था वो कभी उसे जी न सके और न खुद पर खर्च कर पाए। विल्सन खुद की नजरों में बहुत गरीब और असहाय साबित होते हुए नज़र आ रहे थे।
निष्कर्ष- ईश्वर ने बहुत अनमोल जिंदगी दी है, या तो उसे आप पुरी उम्र हाय- हाय ,और उफ़ और काश में काट लीजिये या हर दिन को ऐसे जी लीजिये की वो दिन कभी नहीं आएगा। काम करना बुरी बात नहीं है परन्तु काम को ही सब कुछ मान लेना जिंदगी के साथ किसी अत्याचार से कम नहीं है। पैसे कमाना हमारी जरूरत है परन्तु पैसे के चक्कर में जिंदगी भर पैसे के लिए भागते रहना हमारी बेवकूफी। जिंदगी रेत की तरह एक दिन आपके हाथ से फिसल जायेगी और आप यूँ ही देखते रह जायेंगे।
34. Moral Stories in Hindi – दुःख के बादल
अगर कोई आपसे पूछे की ईश्वर है तो आपका जवाब क्या होगा? अगर आपके साथ कुछ ऐसा हुआ हो जिसने आपकी ईश्वर में आस्था जगा दी हो तो आप पुरी उम्र ईश्वर की उपस्थिति को नकार नहीं सकते परन्तु अगर आपको इच्छित वस्तु न मिली हो तो आप के लिए ईश्वर के होने का कोई मायना नहीं है।
ये कहानी है ऐसी ही दो बहनों की जिन्होंने अपनी इच्छा अनुसार ईश्वर के होने और न होने पर अपनी आस्था को प्रकट किया परन्तु प्रेम के रिश्ते को ईश्वर से भी सर्वोपरि रखा।
श्यामाल्पुर गाँव में दो बहनें रहा करती थी। दोनों के बीच अथाह प्रेम और आपसी सामंजस्य था। दोनों आपस में प्रत्येक चीज़ मिल बाँट कर लिया करती थी चाहें वस्तु सस्ती हो या महंगी। जैसे-जैसे दोनों बड़ी हुई उनके पिता को उनके विवाह की चिंता सताने लगी।
उन्होंने सोचा की अगर दोनों की शादी कही दूर दराज हुई तो दोनों बिछड़ जायेंगी। उनके आपसी प्रेम को देख कर पिता की हिम्मत न हुई की वो कही विवाह की बात चलायें, परन्तु विवाह तो करना ही था।
पिता ने दोनों के लिए रिश्ता ढूंढा। रिश्ते अच्छे घर के थे और सबसे बड़ी बात थी की दोनों के ससुराल आस-पड़ोस के गाँव में ही थे। दोनों बहनें शादी के लिए राज़ी हो गई। उनका विवाह बड़ी धूम धाम से संपन्न हुआ।
दोनों विवाह के पश्चात बहुत खुश थी और समय मिलने पर एक दूसरे से मिलने भी आया करती थी। दोनों के पति भी एक दूसरे के मित्र बन गए थे। सब कुछ मंगल होकर कर चल रहा था, पर कहते है न की नियति को ये मंजूर नहीं की हर चीज़ एक जैसी रहे। वो हमेशा परीक्षा लेती रहती है। ठीक वैसा ही दोनों बहनों के साथ हुआ।
एक साल की बात है बड़ी बहन के यहाँ अकाल पड़ गया। सारी फसलें सूख गई। मवेशी दाने-दाने के लिए मोहताज हो गए। दूसरी और छोटी बहन के गाँव की मिट्टी अलग किस्म की थी। फसलों को ज्यादा पानी की जरूरत नहीं थी।
इसलिए वहाँ अकाल नहीं पड़ा। एक बहन ईश्वर से दुआ कर रही थी की बारिश हो जाए दूसरी दुआ कर रही थी की बारिश न हो। दोनों की जरूरत अलग थी। ईश्वर एक थे, ईश्वर किसकी सुनते?
बड़ी बहन को लग रहा था की अगर बारिश न हुई तो वो भूखे मरेंगे और छोटी को लग रहा था की अगर हो गई तो सारी फसल ख़राब हो जायेगी। दोनों बहनों में इतना प्यार था की दोनों एक दूसरे के लिए दुवायें कर रही थी।
मानसून का महीना आ गया। आसमान में काले बादल छाते तो छोटी बहन परेशान हो जाती और न छाते तो बड़ी बहन। ये आंख मिचौनी का खेल कुछ दिन यूँ ही चलता रहा।
पुरा मानसून ऐसे ही कट गया परन्तु बारिश न हुई। आज आखिरी दिन था, पूरे गाँव की निगाहें बादलों की तरफ थी। दोपहर होते होते काले बादलों ने सूरज को अपने आगोश में ले लिया। छोटी बहुत दुखी थी और बड़ी उतनी ही खुश थी।
दोनों के गाँव आस-पास थे इसलिए दोनों को ये डर था की अगर एक गाँव में बारिश हुई तो दूसरे गाँव में भी होगी। बादलों ने आखिरकार बड़ी बहन की सुन ली और मूसलाधार बारिश शुरू हो गई।
बड़ी की ख़ुशी का ठिकाना न था। वो प्रसन्नता में इतनी मग्न हो गई की उसे छोटी का ख्याल ही नहीं आया। गाँव में इतनी बारिश हुई की पिछले कई सालो का रिकार्ड टूट गया।
जब बड़ी को होश आया तो वो चिंतित हो गयी। अपनी छोटी बहन का हाल चाल जानने के लिए वो उसके गाँव गई। छोटी बहन बड़ी को देखकर खुश हो गई। उसने बड़ी बहन को गले से लगा लिया।
बड़ी हैरान थी की बारिश न चाहते हुए भी इतनी बारिश हुई फिर ये इतनी खुश क्यों है? कौन अपनी फसल ख़राब होने पर इतना खुश होता है? बड़ी ने उससे उसकी ख़ुशी की वजह पूछी। छोटी ने जो बताया उससे बड़ी का ईश्वर में विश्वास और बढ़ गया।
छोटी ने बताया ‘की यहाँ काले बादल छाए जरूर थे परन्तु बारिश जरा भी नहीं हुई’, देखते ही देखते वो काले बदल आपके गाँव की तरफ चले गए और यहाँ एक बूँद बारिश नहीं हुई’। ये सिर्फ ऊपर वाले की महिमा है जिसने हम दोनों के प्रेम की लाज रख ली।
निष्कर्ष- जब आप सच्चे मन से और दिल से कोई चीज़ ईश्वर से मांगते हैं तो वो जरूर देता है, यद्यपि आपका मकसद नेक और साफ़ सुथरा होना चाहिए। प्रेम के बदले प्रेम न मिले ऐसा हो ही नहीं सकता ,लेकिन सिर्फ प्रेम पाने के लिए प्रेम करेंगे तो प्रेम कभी नसीब नहीं होगा।
35. Moral Stories in Hindi – सफलता की भूख
एक लड़का सुबह 6 बजे उठता और अपनी बास्केट बॉल लेकर मैदान में पहुँच जाता। उसके आने के कई घंटो बाद और लड़के आते तब तक वो जम के प्रैक्टिस करता। बास्केटबॉल के प्रति उसकी दीवानगी उससे घंटों मेहनत करवाती।
शाम ढलने के पश्चात भी वो देर रात तक मैदान में टिका रहता और पसीना बहाता। एक गरीब परिवार में पैदा हुए उस लड़के का नाम था माइकल जॉर्डन। जॉर्डन बचपन से ही बास्केटबॉल के प्रति इतने समर्पित थे की कब दिन हुआ कब रात, उन्हें इसका एहसास तक न होता था।
1963 में ब्रूकलिन के स्लम एरिया में पैदा हुए जॉर्डन बहुत ही गरीबी में पले-बढ़े। ये वो वक़्त था जब जोर्डन के पिता ने सेकंड हैण्ड टी-शर्ट का कारोबार शुरू किया था।
एक दिन जॉर्डन को उन्होंने पास बुलाया और एक टी-शर्ट देते हुए बोले की तुम्हें इसे 2 डॉलर में बेच कर दिखाना है। जोर्डन बड़े जिद्दी थे ,सुबह से शाम तक बाजारों के चक्कर काटते रहे और अंत में उन्होंने उस टी-शर्ट को 2 डॉलर में बेच दिया।
एक दिन फिर पिता ने उन्हें अपने पास बुलाया और दूसरी टी- शर्ट हाथ में देते हुए बोले “अब तुम्हें ये टी-शर्ट 20 डॉलर में बेचनी है”। जोर्डन को हैरानी हुई की भला सेकंड हैण्ड टी-शर्ट के 20 डॉलर कौन लेगा परन्तु उन्होंने वो टी-शर्ट रख ली और उसे बेचने निकल पड़े।
अपने मित्र की सहायता से उन्होंने उस टी-शर्ट पर मिक्की माउस का चित्र बनवाया और एक अमीरों के एक स्कूल के बाहर खड़े हो गए। स्कूल से एक बच्चा अपने अमीर माँ-बाप के साथ बाहर निकल रहा था।
उसने जब वो टी-शर्ट देखि तो उसे वो टी-शर्ट पसंद आ गई। उसके माता-पीता ने वो टी-शर्ट 20 डॉलर में उसके लिए खरीद ली और साथ में जॉर्डन को 5 डॉलर की टिप भी दी।
अगले दिन फिर पिता ने जोर्डन को बुलाया और कहा की ‘अब इस टी-शर्ट को तुम्हें 200 डॉलर में बेचना है’। जोर्डन जानते थे की ये काम लोहे के चन्ने चबाने जैसा है ,परन्तु उन्होंने कभी हार नहीं मानी थी।
उन्होंने इरादा कर लिया की वो इसे भी 200 में बेच कर दिखायेंगे। उसी दौरान शहर में “चालीस एंजल्स” जो की एक प्रसिद्ध शो था की विश्व प्रसिद्ध होस्ट ‘फेरा फ्यूसेट’ शहर में एक कांफ्रेंस के लिए आने वाली थी।
जोर्डन ने किसी तरह उस टी-शर्ट पर फेरा के ऑटोग्राफ ले लिए और बेचने निकल पड़े। शहर में ‘फेरा’ के बहुत चाहने वाले थे ,इनमें से एक ने उस टी-शर्ट को खरीद लिया और इसके बदले जोर्डन को 1200 डॉलर दिए।
जब जोर्डन वो 1200 डॉलर लेकर अपने पिता को देने पहुंचे तो उनके पिता हैरान थे । उन्हें यकीन नहीं था की जोर्डन ये कर पायेगा। फिर उन्होंने कहा की सफलता उसको मिलती है जो नए रास्तों की तलाश करता है, बजाए इसके की वो मंजिल बदल दे। तुम में वो काबिलीयत है ,तुम बहुत बड़े आदमी बनोगे।
हुआ भी वही आगे चलकर “माइकल जोर्डन” दुनिया के सबसे अमीर ATHLETE में से एक बने । जिस तरह सचिन का नाम क्रिकेट में ,रोनाल्डो का नाम फुटबॉल में उसी तरह जोर्डन का नाम बास्केटबॉल में लिया जाता है। आज उनकी नेट-वर्थ 1.6 बिलियन डॉलर से अधिक की है।
निष्कर्ष- परिस्थितियों का रोना मत रोइए, अगर सफलता नहीं मिल रही है तो रास्ते बदलिए मंजिल नहीं। सफलता की भूख होनी चाहिए ,केवल विश्वास नहीं। कई बार हमें मंजिल मिलती नहीं है, हमें नए रास्ते बनाने पड़ते है। ये काम आपको स्वयं करना होगा कोई आपके लिए करने नहीं आयेगा।
36. Moral Stories in Hindi – निस्वार्थ परमार्थ
जग में ऐसे बहुत कम मनुष्य है जो निस्वार्थ भाव से मानव सेवा में यकीन रखते है, और सत्य भी यही है की ईश्वर उसी को मिलता है जिसे कुछ न पाने की इच्छा होती है। जिसने पाने के मकसद से ईश्वर को ढूंढना चाहा उसे सिर्फ रेत के टीले ही नसीब हुए।
गंगा किनारे एक साधु की कुटिया हुआ करती थी। साधु और स्वादु में बड़ा फर्क होता है। महर्षि की दिनचर्या रोज़ तय थी। वो प्रातः कालीन उठकर ,गंगा में स्नान करते , स्नान के दौरान ही दोनों हाथों में गंगा का जल लेकर सूर्य को अर्घ देते देते थे। उसी गंगा के तट पर गंगाराम नामक एक केकड़ा रहता था।
गंगा राम स्वभाव से बड़ा दुष्ट और दूसरों को सताने वाला था। गंगाराम केकड़ा महर्षि की दिनचर्या से भली भाँति परिचित था।
गंगा राम ने सोचा की क्यों न साधु की तपस्या को भंग किया जाए। उसने ठान लिया की वो कुछ ऐसा करेगा जिससे साधु पाप का भागीदार बन जाए। इसी मौके की तलाश में गंगा राम इंतजार करने लगा।
एक प्रातःकाल जब महर्षि स्नान कर रहे थे ,गंगाराम केकड़ा गंगा में कूद गया। गंगा की धारा तेज थी, ये बात गंगाराम नहीं जानता था। अपनी अनजाने में की गई गलती की वजह से वो पानी के साथ बहता चला गया।
महर्षि उसी पल गंगा में डुबकी लगा रहे थे, जैसे ही उन्होंने हाथ में जल लेने के लिए डुबकी लगाईं गंगा राम उनके हाथ में आ गया। दुष्ट अपनी दुष्टता कभी नहीं छोड़ता। गंगा राम ने महर्षि के हथेली पे आते ही डंक मार दिया।
दर्द की वजह से ऋषि ने उसे पानी में छोड़ दिया परन्तु उन्हें जैसे ही आभास हुआ की केकड़ा डूब जाएगा उन्होंने उसे फिर उठा लिया। केकड़े ने फिर डंक मार दिया। ऐसे ही ऋषि उसे छोड़ते, उठाते और वो डंक मार देता।
ऋषि का हाथ लहूलुहान हो चुका था। हथेलियों से खून बन रहा था। केकड़े की हिम्मत भी जवाब दे चुकी थी। अथाह दर्द होने की बावजूद भी ऋषि ने गंगाराम को मरने के लिए नहीं छोड़ा।
ऋषि के हाथ से रक्त बहता देखकर केकड़े का मन पसीज गया उसने ऋषि से कहा “हे महर्षि आप मुझे मरने के लिए छोड़ क्यों नहीं देते”, इतने दर्द में होने के बावजूद भी आप परमार्थ को प्राथमिकता क्यों दे रहे है” सबकी स्वयं की रक्षा करना पहला कर्तव्य होता है।
ऋषि ने कहा “प्रकृति ने हम दोनों को अलग अलग कार्य के लिए बनाया है ,तुम्हारा व्यवहार है डंक मारना और मेरा व्यवहार है लोगों से प्रेम करना, उनकी रक्षा करना ,जब तुम अपना कर्तव्य नहीं छोड़ सकते तो मैं अपना कैसे छोड़ दूँ”।
तुम अपने प्रकृति के आगे विवश हो और मैं अपने। इतना सुनते ही गंगाराम केकड़ा ऋषि के सामने नतमस्तक हो गया और उनके साथ रहने का आग्रह करने लगा जिसे ऋषि ने स्वीकार कर लिया।
निष्कर्ष- सच्चाई और प्रेम को किसी भी सहारे की जरूरत नहीं पड़ती। अच्छा मनुष्य खुद के साथ बुरा होने के बावजूद भी परिस्थितियों के साथ समझौता नहीं करता। अपनी प्रकृति के विपरीत किया गया व्यवहार हमेशा दुखद अंत देता है।
37. Moral Stories in Hindi – जिंदगी एक जंग
फ्रेंक्लिन शहर के बीचों-बीच एक खेल का मैदान था। मैदान के दाई तरफ एक बेंच रखा हुआ था। बेंच के एक कोने पर एक बुजुर्ग तो दूसरे कोने पर एक 16 साल का लड़का बैठा हुआ था। लड़का मैदान में होने वाली दौड़ का हिस्सा बनने आया था।
लड़का पुरे विश्वास और उत्साह के साथ दौड़ शुरू होने का इंतज़ार कर रहा था। उसे देख कर ऐसा लग रहा था की वो सिर्फ जीत के मकसद से आया हो। उसके अन्दर जीत की भूख दिख रही थी।
बुजुर्ग ने बच्चे को देखा, परन्तु बिना प्रतिक्रिया दिए शांत रहे। दौड़ शुरु हुई लड़के के सामने दो छोटे बच्चे जो उसकी उम्र से छोटे थे दौड़ के मैदान में उसके सामने थे।
उन्हें देखते ही बच्चे के मन में जीत की अभिलाषा और बढ़ गई। वो मन ही मन सोचने लगा की इन्हें तो वो यूँ ही हरा देगा। दौड़ शुरु हुई और लड़के ने पहले ही प्रयास में जीत हासिल कर ली, पुरा मैदान तालियों की आवाज़ से गूँज उठा। लड़का अति प्रसन्न था, परन्तु बुजुर्ग जो उसी टेबल पर अभी बैठें थे एकदम शांत था।
लड़का दूसरे दौड़ का इंतज़ार करने लगा। दूसरे दौड़ में उसके सामने उससे बड़ी उम्र के तीन लड़के थे। वो जीत के नशे में इतना चूर था की उसे लगा की वो इन्हें भी यूँ ही हरा देगा। ऐसा ही हुआ सीटी बजते ही लड़का हवा से बाते करने लगा।
कुछ ही समय के अंतराल में वो सबसे आगे था। इस बार फिर से वो प्रथम आया। अब तो उसका विश्वास सातवें आसमान पर था। पुरा स्टेडियम उसको सलामी दे रहा था, परन्तु वो बुजुर्ग अभी भी खामोश और और शांत बैठें थे।
दौड़ ख़त्म होते ही बुजुर्ग अपनी जगह से उठे और लड़के के आगे एक लड़की जो अपाहिज थी और एक बुढ़िया जो काफी उम्रदराज थी को लाकर खड़ा कर दिया। लड़के को सिर्फ जीत चाहिए थी।
उसने बिना परवाह किए की उसके आगे कौन है, सीटी बजते ही दौड़ना शुरू कर दिया इस बार भी वो प्रथम आया। लड़का हैरान था की इस बार न कोई ताली बजी और न किसी ने उसके लिए सीटी बजाई।
पुरा स्टेडियम शांत था। वो अपाहिज लड़की और वो बुढ़िया पहले की तरह वही खड़े थे। लड़का बुजुर्ग के पास गया और उसने पूछा “मेरी जीत पर लोगों ने तालियाँ क्यों नहीं बजाई?, ‘लोग एकदम शांत क्यों रहे? क्या उन्हें मेरी जीत से प्रसन्नता प्राप्त नहीं हुई” ?
बुजुर्ग ने कहा “एक बार फिर जाओ और उस अपाहिज लड़की और महिला का हाथ पकड़ कर दौड़ पुरी करो”। लड़के ने ऐसा ही किया उन दोनों का हाथ पकड़ा और कछुवे की चाल से उनके साथ रेस पुरी की। चारों तरफ तालियों और सीटियों की आवाज़ थी।
सभी ने खड़े होकर उसका अभिवादन किया। बुजुर्ग ने कहा जब तुम पहली बार दौड़े तो लोगों ने तुम्हें तालियाँ दी क्योंकि वो जानते थे की तुम किसके साथ रेस कर रहे हो, जब तुम दूसरी बार जीते तो भी लोगों ने तालियाँ दी क्योंकि तुमने अपने से बड़े लोगों को हराया।
परन्तु इस बार तुम भूल गए की तुम ऐसे लोगों से मुकाबला कर रहे हो जिनको जीतने पर तुम्हारी जीत होती परन्तु तुम जीत के नशे में ये भूल गए की तुम जीते किससे हो?, उनसे जो इस दौड़ का हिस्सा भी नहीं थे ,असमर्थ लोगों के साथ जीत कर तुमने जीत हासिल की न की समर्थ। लड़का समझ गया की बुजुर्ग उसे क्या समझाना चाहते है।
निष्कर्ष- जिंदगी में हार जीत मायने नहीं रखते। मायना ये रखता है की आप जीते किससे है ,अगर आपकी जीत किसी ऐसे को हरा के मिली है जो आपसे कमजोर है या आपसे नीचे है तो यकीन मानिए वो जीत, जीत नहीं बस एक छलावा है। किसी को दबा के या कुचल कर आगे बढ़ जाना आपकी ग़लतफ़हमी हो सकती है आपका बड़प्पन नहीं।
38. Moral Stories in Hindi – आखिरी कोशिश
एक गधे का मालिक गधे को लेकर कही जा रहा था। गधे पर वजन ज्यादा होने की वजह से गधा चलने में असमर्थ महसूस कर रहा था। चलते चलते गधा थक गया और लड़खड़ाकर एक गहरे सूखे कुएं में गिर गया।
मालिक बड़ा परेशान हो गया ,उसने बहुत कोशिश की, की गधे को बाहर निकाल ले परन्तु उसकी हर कोशिश असफल हो गयी। कुआं बहुत गहरा था, मालिक की हर कोशिश असफल हो गई। काफी देर तक वो वही बैठा रहा। अंत में उसने मान लिया की वो अपने गधे को नहीं बचा सकता।
मालिक ने सोचा की अब वो गधे को बाहर तो निकाल नहीं सकता। गधा तड़प तड़प कर और चिल्ला कर मरे इससे अच्छा है मैं उस पर मिट्टी डाल देता हूँ जिससे वो दब कर जल्दी मर जाए।
गधे के मालिक ने ऐसा ही किया ,वो धीरे-धीरे खोद खोद कर मिट्टी डालता गया, जैसे जैसे वो मिट्टी डालता गधा लात से मिट्टी को हटाकर उसके ऊपर चढ़ जाता। ऐसा करते करते गधे के मालिक ने देखा की धीरे धीरे गधा ऊपर आ रहा है।
मालिक का उत्साह बढ़ गया और उसने और तेजी से मिट्टी डालना शुरु किया। अंत में कुआं पुरा भर गया और गधा बाहर आ गया। गधे के मालिक ने भगवान का शुक्रिया अदा किया और गधे के साथ वहां से चला गया।
निष्कर्ष- कई बार हम मान लेते है की हमारी किस्मत में जीत या सफलता नहीं है। हम फलाना काम नहीं कर सकते या हमसे नहीं होगा ,और हम उस काम को छोड़ देते है। ऐसा ही कुछ गधे के मालिक के साथ हुआ। उसने गधे को मारने के मकसद से मिट्टी डाली परन्तु उसकी यही चीज़ गधे के काम आई और गधा बच गया। आपकी मेहनत कब सफलता में बदल जाए कोई नहीं जानता इसलिए आखिरी दम तक अपनी मंजिल को पाने के लिए कोशिश कीजिये, क्योंकि जहां उम्मीद होती है वही बदलाव होता है।
39. Moral Stories in Hindi – नेकी कर और दरियाँ में डाल
राजा विक्रमादित्य का दरबार पूरे विश्व में प्रसिद्ध था। राजा रोज़ सुबह अपने खजाने का ताला गरीब और मजबूर लोगों के लिए खोल देते थे। जिसे जितने धन की आवश्यकता होती वो उतना धन वहां से ले जाता।
एक बार एक दुखिया राजा के दरबार में धन पाने के मकसद से आया। पंक्ति में वो सबसे आगे खड़ा था परन्तु जैसे -जैसे लोग आते गए वो पीछे वाले को आगे करता गया और खुद पीछे होता गया।
सुबह से शाम हो गई पर उसे धन नहीं मिला। अगली सुबह फिर उसने ऐसा ही किया। खुद पीछे होते जाता और अपने से पीछे वाले को आगे करते जाता। इस तरह 3 दिन बीत गए परन्तु वो धन न पा सका। राजा के सिपाही ये सारा नजारा देख रहे थे।
चौथे दिन जब वो आया तो राजा के सिपाहियों ने उसे गिरफ्तार कर लिया। उसे राजा के सामने पेश किया गया। राजा ने पूछा “ तुम रोज़ आते हो और सभी को आगे करते हुए पीछे हो जाते हो ,अगर तुम्हें धन नहीं चाहिए तो तुम आते ही क्यों हो?
और लोगों को आगे क्यों करते हो ? ,तुम्हारा मकसद क्या है”? गरीब आदमी बोला “जो मकसद आपका है वही मेरा मकसद है”। राजा को बड़ी हैरानी हुई की मैं तो लोगों की मदद करना चाहता हूँ फिर मेरा मकसद इसके मकसद से कैसे बराबर हो सकता है। राजा ने प्रश्न किया तुम्हारे पास तो कुछ है भी नहीं फिर तुम्हारा मकसद मेरे मकसद जैसे कैसे हुआ।
गरीब आदमी ने कहा “ महाराज आपके पास धन है , दौलत है पर मेरे पास मेरी “बारी” है मैं लोगों को अपनी बारी देकर उनकी मदद कर रहा था। आपके पास जो है आप दे रहे है ,ठीक उसी प्रकार मैं जो दे सकता हूँ वो मेरी ‘बारी’ है। राजा उसके जवाब से प्रश्न हुआ और उसे दरबार में दरबारी का दर्जा दे दिया।
निष्कर्ष- भलाई के लिए किसी ताज या किसी खास मुकाम की जरूरत नहीं होती । आप मानव सेवा में जो अर्पित कर सकते है ,आप उसी से लोगों की सेवा कर सकते है। ईश्वर कभी भी किसी की कीमत उसके दौलत या उसके ओहदे से नही लगाते बल्कि उसकी नियत और नेमत से लगाता है, इसलिए आपके पास जो है आप उसी से लोगों की मदद कर सकते है।
40. Moral Stories in Hindi – कीमती पत्थर
एक शहर में बहुत ही ज्ञानी साधु आयें हुए थे। बहुत से दीन-दुखी, परेशान लोग उनके पास उनकी कृपा दृष्टि पाने के लिए आ रहे थे। ऐसे ही एक दिन जिन्दगी से परेशान दुखी, गरीब आदमी उनके पास आया और साधु महाराज से अपनी व्यथा कहने लगा ‘महाराज में जिन्दगी से बहुत परेशान हो गया हूं, मैं बहुत ही गरीब हूँ, मेरे ऊपर कर्ज बढ़ता ही जा रहा है, मुझे समझ नहीं आ रहा की मैं क्या करूँ ?। मुझे इन तकलीफों से बचने का कोई उपाय बताएं।
साधु महाराज मुसकुराये और उन्होंने उस आदमी को एक चमकीले, नीले रंग का सुन्दर सा पत्थर दिया, और कहा ‘कि यह बहुत ही कीमती पत्थर है, जाओ इसकी जितनी कीमत लगवा सकते हो लगवा लो’।
बेचने के इरादे से उस आदमी ने अपने करीबी मित्रों और संबंधियों से संपर्क किया पर उसे कोई खास उम्मीद नज़र नहीं आई। एक बार वो रास्ते से जा रहा था उसे एक फल बेचने वाला मिला।
उसने उस फल बेचने वाले पत्थर को दिखाया और उसकी कीमत जाननी चाही। फल बेचने वाले ने कहा ‘मुझे लगता है ये नीला शीशा है, साधु महात्मा ने तुम्हें यूँ ही दे दिया है, यद्यपि ये यह बहुत ही सुन्दर और चमकदार दिखता है, इसे तुम मुझे दे दो, इसके बदले में, मैं तुम्हें 1000 रुपए दे दूंगा।
वो आदमी निराश हो गया, वो दूसरे विक्रेता के पास गया जो की बर्तनों का व्यापारी था। उसने उस व्यापारी को भी वही पत्थर दिखाया और उसे बेचने के इरादे से उसकी कीमत जाननी चाही।
बर्तनों का व्यापारी बोला ‘यह पत्थर कोई अनोखा रत्न है में तुम्हें इसकी कीमत 10,000 रुपए दे दूंगा’। वह आदमी सोचने लगा की इसकी कीमत और भी अधिक हो सकती है और वह इसी सोच के साथ वो वहां से चला आया।
उस व्यक्ति ने आखिरकार वो पत्थर एक अनुभवी सुनार को दिखाया ,कुछ देर तो सुनार देखता ही रह गया और फिर कहा “पत्थर वाकई बहुत कीमती है ,मैं तुम्हें इसके 10000 रुपये दे सकता हूँ”।
उस आदमी को अब यह समझ आ गया था, कि यह बहुत मूल्यवान पत्थर है, उसने सोचा क्यों न मैं इस पत्थर को हीरे के व्यापारी को दिखाऊं, यह सोच कर वो शहर के सबसे बड़े हीरे के व्यापारी के पास चला गया उस हीरे के व्यापारी ने जब वो पत्थर देखा तो लगातार देखता ही रह गया, वह चौंक गया और हैरान था उसने उस पत्थर को जल्दी ही माथे से लगाया और पूछा तुम्हें यह पत्थर कहां से मिला।
यह तो अमूल्य है, अगर मैं अपनी पुरी सम्मति भी बेच दूँ तो भी इसकी कीमत नहीं चुका सकता अंत में परेशान आदमी ने वो पत्थर उसी बाबा को लौटा दिया और उन्हें अपने साथ हुई सारी घटना बताई।
बाबा ने बस आदमी को उसकी कीमत एक पत्थर के माध्यम से समझाई की वो फ़िज़ूल का परेशान है ,जबकि उससे कीमती चीज़ इस दुनिया में उसके लिए कुछ है ही नहीं।
निष्कर्ष:- हम स्वयं को आँकते हैं। हम खुद से सवाल करते हैं, क्या हम वो हैं जो दूसरे हमारे बारे में बनाते हैं आपका जीवन अमूल्य है, आपके जीवन का कोई मोल नहीं लगा सकता। आप वो सब कुछ कर सकते हैं जो आप सोच सकते है कभी भी दूसरों के नकारात्मक टिप्पणी से अपने आप को कम मत आँकिये।
41. Moral Stories in Hindi – कान के पके
घने जंगल में लोगों का एक समूह जंगल के रास्ते से गुजर रहा था। अचानक उन में से तीन लोग एक गहरे गड्ढे में गिर गये। ऊपर बचें व्यक्तियों में से जब एक ने देखा की गड्ढा बहुत गहरा है, उसने सभी को सूचित किया।
ऊपर खड़े सभी लोग एक स्वर में चिल्लाने लगे ‘तुम तीनों इस गड्ढे से बाहर नहीं आ सकते, गड्ढा बहुत गहरा है, तुम तीनों इस गड्ढे से बाहर निकलने की उम्मीद छोड़ दो’।
अब भगवान ही तुम्हारा मालिक है, वही तुम्हें इस मुसीबत से बाहर निकाल सकता है, तो तुम भगवान से प्रार्थना करो ताकि वो तुम्हारी मदद कर सके।
गड्ढा बहुत गहरा होने के की वजह से उन तीनों ने शायद ऊपर खड़े व्यक्तियों की बात नहीं सुनी और गड्ढे से निकलने के लिए लगातार कोशिश करते रहे। बाहर खड़े लोग लगातार कहते रहे ‘ तुम तीनों बेकार में ही मेहनत कर रहे हो, तुम्हें हार मान लेना चाहिए, तुम्हें हार मान लेनी चाहिये। तुम नहीं निकल सकते।
गड्ढे में गिरे तीन में से दो ने ऊपर खड़े व्यक्तियों की बात सुन ली, और कोशिश करना छोड़ कर, निराश होकर एक कोने में बैठ गए। तीसरे व्यक्ति ने प्रयास जारी रखा, वो कोशिश करता रहा।
बाहर खड़े सभी लोग लगातार कह रहे थे कि तुम्हें हार मान लेना चाहिये पर वो तीसरा व्यक्ति शायद उनकी बात नहीं सुन पा रहा था। उसे किसी की बात सुनाई नहीं दी वो लगातार वहां से निकलने की कोशिश करता रहा।
जब कोने में बैठे दो लोगों ने उसकी कोशिश को देखा तो हैरान थे की ये क्यों बेकार की कोशिश कर रहा है? धीरे-धीरे उन्हें आभास होने लगा की तीसरा व्यक्ति बाहर निकलने के एकदम करीब है।
उन दोनों ने भी कोशिश करना शुरु किया और काफी कोशिशों के बाद सभी गड्ढे से बाहर आ गए। बाहर खड़े लोगों ने कहा ‘क्या तुम लोगों ने हमारी बात नहीं सुनी? उनमें से दो ने उत्तर दिया की उन्होंने उनकी बात सुनी थी, इसलिए उन्होंने कोशिश करना छोड़ दिया था परन्तु तीसरा व्यक्ति उनकी बात नहीं सुन सकता था क्योंकि वो बहरा था, इसलिए वो लगातार कोशिश करता रहा।
उसे कोशिश करता देख उन दोनों को भी हिम्मत मिली और वो लोग उसकी बदौलत बाहर आ सके । बहरे व्यक्ति को लग रहा था की बाहर खड़े लोग उसका उत्साह बढ़ा रहे है, इसलिए वो लगातार कोशिश करता रहा। बाहर खड़े लोगों ने जब पुरा मामला जाना तो वो अपने किए पर शर्मिंदा हो गए।
निष्कर्ष:- जब भी कोई कुछ बोलता हैं तो उसका प्रभाव लोगों पर पड़ता है, इसलिए हमेशा सकारात्मक सोचे और बोले लोग चाहें कुछ भी कहें आप अपने आप पर पुरा विश्वास रखें। ऐसे लोग जो आपको हमेशा नकारात्मक प्रवचन देते रहते है उनसे दूर रहे, याद रहे की कड़ी मेहनत और निरंतर प्रयास से आप किसी भी मंजिल को प्राप्त कर सकते है।
42. Moral Stories in Hindi – परख
एक समय की बात है। एक बहुत बड़ा संयुक्त परिवार था। जिसमें करीब 4 से 5 परिवार एक साथ रहा करते थे। पुरे कुनबे को मिलाकर 30 से 35 लोग परिवार में थे। बड़ा परिवार होने के कारण अकसर वाद-विवाद होता रहता था।
घर की औरतें पूरा दिन घर के काम-काज में व्यस्त रहती और घर के पुरुष छोटे मोटे काम धंधों में व्यस्त रहते। घर के अधिकार पुरुष खेती और दुकानदारी का काम किया करते थे।
इतने बड़े परिवार में सभी व्यक्तियों की जरूरतों को पूरा करना और सभी को खुश रखना नामुमकिन सा था।। सभी लोग घर चलाने में अपना-अपना योगदान देते थे। कुछ सदस्यों का अपना निजी व्यवसाय था।
जो लोग निजी काम करते थे वो थोडें संपन्न थे उनके आर्थिक हालत अच्छे थे। उन्हीं में से एक छोटा परिवार था जिसके आर्थिक हालत अच्छे नहीं थे ,माँ-बाप बीवी बच्चों को मिला कर कुल 5 सदस्य थे। बड़ी मुश्किल से एक वक़्त की रोटी नसीब होती थी।
ऐसे में घर की जरूरतें पूरी नहीं हो पाती थी। मुश्किल से ही गुजर बसर होता था। खाने के नाम पर दो वक्त की रोटी मिलती थी और पहनने के लिए 2 जोड़ी कपड़े से ज्यादा कुछ नहीं मिलता था। जब भी कहीं जाना-आना पड़ता, तो दूसरों से कपड़े, जूते और चप्पल उधार लेना पड़ता । ऐसे आर्थिक तंगी के माहौल में पढ़ाई-लिखाई करना और उसका खर्चा निकालना भी मुश्किल था।
परिवार के सबसे बड़े बेटे जो कि अपने सभी भाइयों और बहनों में सबसे बड़ा था पढ़ाई के साथ साथ परिवार के भरण पोषण का निर्वाह करता था। इसके लिए वो बहुत छोटी उम्र से ही काम में लग गया था।
सड़क पर बैठ कर सब्जियां बेचता, खेतों में काम करता और रात में आकर लालटेन की रोशनी में अपनी आँखें जलाता था। गाँव से कालेज बहुत दूर था, वहां आने-जाने के लिए कोई साधन न।
कुछ दिन तो वो पैदल ही गया, पर अंत में जब उसने देखा की वो ज्यादा दिन तक ऐसा नहीं कर पायेगा तो उसने उसने कबाड़ी वाले से एक पुरानी साइकिल खरीदी। उसी का इस्तेमाल कर वो कालेज आने जाने लगा।
कालेज से आने के बाद वह घर के कामकाज में हाथ बटाया करता। रात होने पर जब सब लोग खा-पी कर सो जाया करते थे। तब वह मोमबत्ती जलाकर पढ़ाई किया करता।
जून का तपता महीना था, एक दिन गाँव का एक धनवान व्यक्ति उसके घर आया। घर में ठीक से छत न थी। गाँव के व्यक्ति ने जब टूटी छत और दरार पड़ी दीवारों को देखा तो उसका मज़ाक उड़ाया।
उसने कहा “लगता है मैं दरिद्रों के घर आ गया ,यहाँ तो ठीक से छत तक नहीं है फिर खाने को कहा से होगा?”। लड़के को उस व्यक्ति की बात चुभ गई उसने ठान लिया की वो कुछ करके दिखाएगा।
लड़के ने जवाब दिया चाचा जी “जिंदगी में धूप और छाव एक साथ आते-जाते रहते हैं, और मेरी जिंदगी में अभी धूप है, तो क्या हुआ एक दिन छांव भी जरूर आयेगा”, इतना कहकर वह अपने काम-काज में लग गया।
लड़के ने किसी तरह मैकेनिकल इंजीनियरिंग का डिप्लोमा पुरा किया, और नौकरी के मकसद से शहर अपने बीवी बच्चों के साथ चला आया। काफी दिन भटकता रहा भटकता पर उसे नौकरी नहीं मिली।
कुछ दिनों के बाद उसे एक इंटरव्यू का कॉल आया। वो तय समय पर इंटरव्यू देने के ऑफिस पहुँच गया। उसने देखा की एक व्यक्ति चपरासी की वर्दी पहने आया और उसने प्रश्न पूछना शुरू कर दिया।
लड़के ने जरा भी संकोच किए बिना की सामने वाला किस वेश भूषा में है सभी सवालों के जवाब दिए। जब लड़का जाने लगा तो INTERVIEWER ने उससे पूछा की ‘आपको अजीब नहीं लगा की कोई आपसे छोटी पोस्ट का आदमी सवाल पूछ रहा है’।
लड़के ने जवाब दिया “माफ़ कीजियेगा सर मैं यहाँ खुद की परख की खातिर आया था न की किसी और को परखने”। लड़के के जवाब से मालिक जिसने चपरासी की वर्दी पहननी थी प्रसन्न हो गया और लड़के को कंपनी का मैनेजर बना दिया।
आज वही लड़का भारत की सबसे बड़ी कार निर्माता कम्पनी में सहायक मैनेजर के पद पर कार्यरत है। गुडगाँव जैसे शहर में उसका खुद का घर ,गाड़ी और उसकी खुद की पहचान है। अपनी मेहनत की बदौलत वो एक छोटे से गाँव से उठकर मैनेजर जैसे ऊँचे पद तक पहुंचा।
निष्कर्ष:- वक़्त और हालत बदलते देर नहीं लगती। किसी की वर्तमान परिस्थिति को देख कर उसका उपहास कभी न उड़ाए। परिश्रम वो चाभी है जो किस्मत का हर ताला खोल देती है। यदि इंसान की नियत सफल होने की हो तो कोई बाधा उसके रास्ते में नहीं आ सकती।
43. Moral Stories in Hindi – पंखों की उड़ान
एक घने जंगल में बरगद का विशाल पेड़ था। उस पेड़ के ऊपर एक चील ने घोंसला बनाया हुआ था, वही उसने अंडे दे रखे थे उसी पेड़ के नीचे एक अलग एक जंगली मुर्गी ने भी अंडे दे रखें थे। एक दिन उस चील के अंडों में से एक अंडा नीचे गिरा और मुर्गी के अंडों के साथ जाकर मिल गया।
कुछ समय बीतने पर जब अंडा फूटा और चील का बच्चा उस अंडे से निकला तो वह यह सोचते हुए बड़ा हुआ की वो एक मुर्गी का बच्चा है और वह एक मुर्गा है। वो मुर्गी के बाकी बच्चों के साथ बड़ा हुआ।
वह उन्हीं कामों को करता था जिन्हें एक मुर्गी करती है। वो मुर्गी की तरह ही आवाज निकालता था, जमीन खोद कर दाने चुगता और वो उतना ही ऊँचा उड़ पाता जितना की एक मुर्गी उड़ती है।
एक दिन उसने आसमान में एक चील को उड़ता देखा, जो की बड़ी शान से उड़ रही थी। उसने अपनी मुर्गी माँ से पूछा की उस चिड़िया का क्या नाम है जो इतना ऊँचा बड़ी ही शान से उड़ रही है।
मुर्गी ने जवाब दिया वह एक चील है। फिर चील के बच्चे ने पूछा “माँ मैं इतना ऊँचा क्यों नहीं उड़ पाता”। मुर्गी बोली तुम इतना ऊँचा नहीं उड़ सकते क्योंकि तुम एक मुर्गे हो।
उसने मुर्गी की बात मान ली और मुर्गे की जिंदगी जीता हुआ एक दिन मर गया। उसने अपना सामर्थ्य जानने की कोशिश तक न की। जिस समूह में बड़ा हुआ वो वैसा ही बनता गया। अंत में उसका अंत भी उसी समूह जैसा हुआ।
निष्कर्ष:- जब भी हम कुछ सोचते हैं। कुछ नया करने की कोशिश करते हैं तो दूसरे लोग हमें यह कहकर रोक देते हैं कि तुम यह काम नहीं कर सकते या तुम ऐसा नहीं कर सकते, ऐसा नहीं हो सकता और हम भी दूसरे की बात मान लेते हैं। अपना इरादा यह सोचकर बदल लेते हैं कि वास्तव में हम यह नहीं कर सकते और हार मान लेते हैं। इसका मुख्य कारण है की हम अपनी क्षमताओं से परिचित नहीं होते और खुद पर यकीन नहीं करते। लोग क्या कहते हैं कहने दीजिये लोगों का काम है कहना। एक बाज ,एक चील किसी और के नहीं बल्कि खुद की पंखों की बदौलत उड़ता है।
44. Moral Stories in Hindi – रिश्तों की अहमियत
एक प्राइमरी स्कूल की टीचर ने बच्चों का टेस्ट लिया और कॉपियां जांचने के लिए कापियां को घर ले गई। बच्चों की कापियां देखते- देखते टीचर की आंखों से आंसू बहने लगे। पति वही लेट कर मोबाइल चला रहा था ।
उसने अपनी टीचर पत्नी को जब रोते देखा तो रोने का कारण पूछा। टीचर बोली सुबह मैंने बच्चों को ‘अपनी सबसे बड़ी ख्वाइश’ विषय पर कुछ पंक्ति लिखने को दिया था।
एक बच्ची ने अपनी इच्छा जाहिर की है की भगवान उसे मोबाइल बना दे, यह सुनकर पति देव हंसने लगे। टीचर बोली आगे तो सुनो बच्चे ने लिखा है, यदि मैं मोबाइल बन जाऊं तो घर में मेरी एक खास जगह होगी और सारा परिवार मेरे इर्दगिर्द रहेगा।
जब मैं बोलूंगा तो सारे लोग मुझे ध्यान से सुनेंगे। मुझे रोका-टोका नहीं जाएगा और ना ही उलटे सवाल पूछे जायेंगे। जब मैं मोबाइल बनूंगा तो पापा ऑफिस से आने के बाद दुखी होने के बावजूद मेरे साथ बैठेंगे।
मम्मी को जब तनाव होगा तो वो मुझे डाटेंगी भी नहीं बल्कि वो मेरे साथ रहना चाहेंगी। मेरे बड़े भाई-बहनों के बीच मेरे पास रहने के लिए झगड़ा होगा। यहां तक कि जब मोबाइल बंद रहेगा तब भी उसकी अच्छी देखभाल होगी। मोबाइल के रूप में मैं सभी को खुशी भी दे सकूंगा।
उस बच्चे की मासूमियत को देख कर और उसके मन की मनोदशा को जानकार हँसता हुआ पति थोड़ा गंभीर होते हुए बोला “हे भगवान बेचारा बच्चा” उसके मां-बाप तो उस पर जरा भी ध्यान नहीं देते।
टीचर पत्नी आंसू भरी आंखों से अपने पति की ओर देखते हुए बोली जानते हो यह बच्चा कौन है? यह हमारा अपना बच्चा है। हमारा छोटू है। यह छोटू कही आपका बच्चा तो नहीं ?
निष्कर्ष:- आज की भाग दौड़ भरी जिंदगी में हेम ऐसे ही एक-दूसरे के लिए कम वक्त मिलता है और अगर हम वो वक़्त भी टीवी देखने,मोबाइल पर खेलने और फेसबुक से चिपकने में गवा देंगे, तो हम कभी अपने रिश्तों की अहमियत और उससे मिलने वाले प्यार को नहीं समझ पाएंगे। यह अच्छी बात है कि आपके फेसबुक और व्हाट्सएप पर दोस्तों की लंबी लिस्ट है। फिर भी जीवन में कुछ ऐसे लोगों और दोस्तों को होना भी जरूरी है जो आपका फेस् पढ़कर पूछे कि आप कैसे हैं?
45. Moral Stories in Hindi – भूख और प्यास
एक शहर में बहुत ही अमीर सेठ रहता था। अमीर होने की वजह से लोग उसे इज्जत और सम्मान देते परन्तु वो लोगों को अपने आगे कुछ न समझता। उसके पास अपार धन संपत्ति थी जो उसने उन्हीं गरीबों से लुट लुट कर बनाई थी।
वही लोग जब उसके पास मदद के लिए आते वो वो उनकी कोई मदद न करता, बल्कि उलटा उन्हें अपने ब्याज के ऋण के बोझ तले दबाने की कोशिश करता। हमेशा इस तलाश में रहता कि कोई नया शिकारी मिल जाए।
एक बार वह सफर पर निकला। किसी रेलवे प्लेटफार्म पर जब गाड़ी रुकी तो उसने एक लड़के को पानी की बोतल बेचते हुए देखा। ट्रेन में बैठे उस सेठ ने उस लड़के को नीचा दिखाने के मकसद से आवाज लगाईं ‘ऐ लड़के इधर आ’।
लड़का दौड़कर आया उसने पानी का गिलास भरकर सेठ की ओर बढ़ाया तो सेठ ने पूछा “कितने पैसे का है”? लड़के ने कहां “पच्चीस पैसे का है”। सेठ ने उससे कहा “15 पैसे में देगा क्या”? यह सुनकर लड़का हल्की मुस्कान दबाए पानी वापस घड़े में उड़ेलता हुआ आगे बढ़ गया।
उसी डिब्बे में एक महात्मा बैठे थे। वो सारा नज़ारा देख रहे थे, उन्होंने लड़के की मुस्कराहट को पढ़ लिया। वो समझ गए थे की लड़के की मुस्कराहट के पीछे कोई न कोई राज़ जरूर है।
महात्मा नीचे उतरकर उस लड़के के पीछे-पीछे गये और बोले “लड़के तुम उस सेठ के द्वारा पानी का मूल्य पुछने पर मुसकुराए क्यों”? बल्कि तुम्हें क्रोधित होना चाहिए था की उसने 25 पैसे के बदले 15 पैसे पानी का मूल्य लगाया, मुझे तुम्हारी मुस्कुराहट का राज जानना है”।
लड़का बोला महाराज मुझे हंसी इसलिए आई कि सेठजी को प्यास तो लगी ही नहीं थी। वो तो केवल पानी के गिलास का मूल्य पूछ रहे थे। महात्मा ने पूछा लड़के तुझे ऐसा क्यों लगा कि सेठ जी को प्यास नहीं लगी थी?
लड़के ने जवाब दिया ‘महाराज जिसे वाकई प्यास लगी हो वह कभी मूल्य नहीं पूछता’। वह तो गिलास लेकर पहले पानी पीता है फिर बाद में पूछेगा कि कितने पैसे देने हैं। पहले कीमत पूछने का अर्थ हुआ कि प्यास लगी ही नहीं है।
लड़के ने आगे कहा “ महात्मा जी कीमत पानी की नहीं प्यास की होती है ,और अगर प्यासा है ही नहीं तो पानी का मूल्य चाहे 25 पैसे हो या 5 पैसे वो मूल्य आपको ज्यादा ही लगेगा”।
महात्मा जी बच्चे द्वारा दिए सीख को समझ चुके थे, एक मुस्कराहट के साथ उन्होंने एक गिलास पानी पिया और 25 पैसे देकर ट्रेन में वापस आ गए।
निष्कर्ष:- वास्तव में जिन्हें जीवन में कुछ पाने की तमन्ना होती है वे वाद-विवाद में नहीं पड़ते। पर जिनकी प्यास सच्ची नहीं होती, वो हर वाद का हिस्सा होते हैं। वे साधना के पथ पर आगे नहीं बढ़ते।
46. Moral Stories in Hindi – ख़ुशी की कीमत
रमा और करण दोनों पति पत्नी थे। दोनों मिल कमाते थे, अथक परिश्रम करते परन्तु कभी उनकी जरूरतें पुरी नहीं हो पाती। किसी न किसी चीज़ का रोना लगा ही रहता। एक दिन पत्नी ने पति से कहा “आज धोने के लिए ज्यादा कपड़े मत निकालना”।
पति ने कहा क्यों? तो पत्नी ने कहा अपनी काम वाली बाई 2 दिन नहीं आएगी। फिर पति ने सवाल किया क्यों? पत्नी ने जवाब देते हुए कहा “गणपति पूजन के अवसर पर अपनी बेटी के यहां जा रही है”।
पति ने कहा ठीक है अभी कपड़े नहीं निकालता। पत्नी ने कहा आगे कहा की हमें बाई को 500 रुपये देने चाहिए आखिर त्यौहार है वो अपने बेटी के यहाँ जा रही है तो उसके लिए कुछ तो ले ही जायेगी। पति बोला अभी रहने दो दीवाली आ रही है तब दे देंगे।
पत्नी बोलीं अरे नहीं बाबा गरीब है बेचारी बेटी के यहां जा रही है। तो उसे भी अच्छा लगेगा और इस महंगाई के दौर में उसकी पगार से त्यौहार कैसे मनाएगी बेचारी। पति ने कहा तुम भी ना जरूरत से ज्यादा भावुक हो जाती हो।
पत्नी ने कहा अरे नहीं चिंता मत करो मैं आज का पिज्जा खाने का कार्यक्रम रद्द कर देती हूं। बेमतलब में 500 उड़ जाएंगे पिज्जा के उन 8 टुकड़ों के पीछे। पति ने कहा वाह क्या बात कही है। हमारे मुंह से पिज्जा छिन जाएगा आज।
3 दिन बाद जब कामवाली बाई आती है, तो पोंछा लगाते हुए कामवाली बाई से पति ने पूछा क्या बाई कैसी रही छुट्टियां? बाई ने जवाब देते हुए कहा “बहुत बढ़िया साहब, दीदी ने 500 दिए थे ना, तो बेटी के यहां मिलने गई थी।
मजा आ गया 2 दिन में 500 खर्च कर दिए। पति ने पूछा क्या किया 500 का? तब कामवाली बाई ने बताया “नाती के लिए 200 रुपये का शर्ट,50 की गुड़ियाँ लिया। बेटी के लिए 50 रुपये कि चूड़ियाँ ,जमाई के लिए 50 रुपये का अच्छा सा बेल्ट खरीदा।
60 रुपये की चप्पल ,40 किराया,100 नाती को दिया। 500 में इतना कुछ ! वो आदमी हैरान हो गया। उसकी आंखों के सामने पिज्जा के 8 टुकड़े घूम रहे थे। पिज्जा का एक-एक टुकड़ा उसके दिमाग में हथोड़ा मारने लगा।
वह सोचने लगा कि 500 में इतना कुछ हो सकता है। कोई 500 में अपनी खुशियां जी लेता है तो कोई 500 रुपए में पेट भर लेता है और फिर भी उसे संतुष्टि नहीं मिलती। आज तक उसने हमेशा पिज़्ज़ा की एक ही साइड देखी थी।
कभी पलट कर नहीं देखा था कि पीछे से पिज्जा कैसा दिखता है। लेकिन काम वाली बाई ने उसे जीवन का अर्थ एक झटके में समझा दिया था। जीवन के लिए खर्च या खर्च के लिए जीवन का नया उदाहरण समझ में आ गया था।
निष्कर्ष:- इंसान पुरी जिंदगी जीने के लिए पैसा कमाने में अपना वक्त खत्म कर देता है। लेकिन फिर भी वह जिंदगी नहीं जी पाता है। क्योंकि उसे समझ में नहीं आता कि उसे जिंदगी जीने के लिए खर्च करना है या खर्च करने के लिए जिंदगी जीनी है?
47. Moral Stories in Hindi – होशियारी बड़ी या होशियार
एक गांव में होशियार व्यापारी रहता था। अपनी बुद्धिमता और होशियारी के लिए व्यापारी दूर दूर तक प्रसिद्ध था। एक बार वहाँ के राजा ने उसे चर्चा करने के लिए बुलाया और बातों ही बातों में पूछा बैठें “आप इतने विद्वान और बुद्धिमान है पर आपका बेटा इतना मूर्ख कैसे”?
उसे कुछ ज्ञान दीजिए। उसे सोने और चांदी के मूल्य का अंतर भी पता नहीं है। राजा उपहास करते हुए जोर-जोर से हंसने लगा, उसके साथ-साथ अधिकारी भी उपहास उड़ाने लगे। व्यापारी को बड़ा बुरा लगा, वह मायूस होकर घर चला गया।
घर पहुंचते ही उसने अपने बेटे को पास बुलाकर पुछा “बेटे चांदी और सोने में क्या मूल्यवान है”, बेटा तुरंत बोला “सोना”। व्यापारी बोला “बिल्कुल सही” तो फिर राजा तुम पर क्यों हंस रहा था? उसने तुम्हें मूर्ख क्यों कहा? मेरा उपहास क्यों उड़ाया?
जबकि तुम्हें पता है सोने और चांदी के मूल्य का फर्क। बेटे ने कहा , “राजा, रोज अपने महल के आसपास एक सभा बुलाता है, और मेरी पाठशाला का रास्ता वहीं से गुजरता है, रोज मुझे देखते ही वह बुला लेता है।
रोज राजा बहुत सारे प्रतिष्ठित लोगों से घिरा रहता है। वो एक हाथ में सोने का सिक्का और दूसरे में चांदी का सिक्का रख कर मुझे चुनने को कहता है।
मैं रोज चांदी का सिक्का चुनता हूं, और वहां बैठें सभी लोगों को इसमें मजा आता है, वे सभी हंसते हैं, उन्हें लगता है की मैं मूर्ख हूँ।” व्यापारी ये सुनते ही अचंभे में पड़ गया। जब उसे सोने-चांदी के मूल्य का फर्क पता है फिर भी ये चांदी का सिक्का ही क्यों चुनता है?
उसने पूछ लिया “अगर ऐसा है तो तू सोने का सिक्का क्यों नहीं उठाता? ऐसी बेवकूफी के कारण ही 4 लोगों में मेरी हंसी होती है।” बेटा मुसकुराया और पिता जी का हाथ पकड़कर कमरे में ले गया, अलमारी के अंदर से एक बक्सा निकाला, उसे खोला, जो कि चांदी के सिक्के से भरा हुआ था।
व्यापारी की आंखें चमक उठी। बेटा बोला “जिस दिन मैं सोने का सिक्का उठा लूंगा उस दिन खेल बंद हो जाएगा। मुझे मूर्ख या बेवकूफ सिद्ध करने में उन्हें मजा आता है, तो आने दीजिए, किंतु जिस दिन मैंने होशियारी दिखाई उस दिन मुझे कुछ नहीं मिलेगा”।
मूर्ख होना अलग बात है और मूर्ख समझना अलग। राजा रोज़ व्यापारी के बेटे का उपहास उड़ाता था और हाथों में लिए हुए सिक्के मूर्ख समझ कर दान में दे देता था। इस तरह उसके पास बहुत सारे सिक्के हो गए थे।
निष्कर्ष:- हमारी जिंदगी में ऐसे कई मौके आते हैं, जब हम दूसरों को मूर्ख बनाने के चक्कर में अपना नुकसान कर बैठते हैं। कई बार लोग बिना वजह हमें मूर्ख समझते है, ऐसे लोग अनजाने में अपना नुकसान कर रहे होते है। यह एक खेल ही तो है, किसी को जीत नजर आती है, तो कोई बिना देखें ही जीत जाता है। कई लोग भ्रम पाल के खुश रहते हैं, कि वह दूसरों को मूर्ख बना रहे हैं लेकिन वास्तव में वो मूर्ख बन रहे होते है।
48. Moral Stories in Hindi – जीना इसी का नाम है
एक आदमी रविवार की छुट्टी के दिन अपने बेटे के जूते ठीक करवाने के लिए मोची की दुकान की तरफ निकला। जैसे ही उसने घर से थोड़ी दूरी तय की झमा झम बारिश शुरू हो गई। किसी तरह वो भीगते हुए मोची की दुकान तक पहुंचा।
थोड़े मोल भाव के बाद मोची जूता ठीक करने के लिए राज़ी हो गया। मोची ने जैसे ही स्टूल पर जूता ठीक करने के लिए रखा उसकी नज़र रास्ते पर हाथ से तांगा खींच रहे एक व्यक्ति पर पड़ी।
उसने देखा एक फटेहाल मजदूर सामान से भरी हाथ गाड़ी खींचते चला जा रहा था। बारिश होने की वजह से सड़क पर फिसलन थी ,फिसलन की वजह से मजदूर थोड़ी दूर चलकर गिर गया और उसके चप्पल की बद्दी टूट गई।
मोची जूते बनाने का काम छोड़ कर उस मजदूर के पास जाकर बोला “लाओ मैं तुम्हारी चप्पल मैं ठीक कर दूं”। मजदूर बोला “किंतु मेरे पास में देने के लिए पैसे नहीं है”।
मोची बोला “कोई बात नहीं, अभी तो मैं तुम्हारी टूटी चप्पल ठीक करके तुम्हारी मदद कर सकता हूं, पर अगर तुम फिर से फिसल कर गिर गए और तुम्हारे पैर की हड्डी टूट गई तो शायद मैं तुम्हारी कोई मदद ना कर पाऊंगा”। उसने मजदूर की चप्पल हंसी ख़ुशी ठीक कर दी।
मजदूर की चप्पल ठीक करने के बाद ही मोची ने उस आदमी के बेटे के जूते का मरम्मत किया। उस आदमी का बेटा अगले दिन वही जूता पहनकर स्कूल गया। उसे किसी खेल में हिस्सा लेना था।
उस खेल के मैदान में 8 लड़कियां दौड़ लगाने के लिए खड़ी थी। रेडी स्टेडी ,गो और पिस्तौल की आवाज के साथ ही आठों लड़कियां दौड़ पड़ी। लड़कियां 4,5 मिटर आगे ही गई होगी कि इतने में एक लड़की फिसल के गिर गई और उसे चोट लग गई।
दर्द के मारे वह लड़की रोने लगी, जब अन्य 7 लड़कियों को उसके रोने की आवाज सुनाई दी तो सातों लड़कियां रुक गई। सातों ने एक पल के लिए एक दूसरे को देखा और मुड़ कर वापस घायल लड़की की तरफ दौड़ी।
उस आदमी का लड़का मैदान में बैठे बैठें ये सारा नजारा देख रहा था। मैदान में सन्नाटा छा गया, आयोजक परेशान और अधिकारी हैरान थे, एक अप्रत्याशित घटना घटती है, वो सातों लड़कियां अपनी घायल प्रतिभागी को उठा लेती हैं, और जीत की रेखा की तरफ दौड़ पड़ती है।
एक साथ आठों लड़कियां जीत की रेखा तक पहुंच जाती है। यह क्या लोगों की आंखों में आंसू पर क्यों? किलसिए? दोस्तों यह रेस नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेंटल हेल्थ द्वारा आयोजित की गई थी, और वो 8ठो लड़कियां मानसिक रूप से बीमार थी।
लेकिन जो इंसानियत, जो मानवता, जो प्यार, जो सहयोग, जो समानता का भाव इन 8ठो लड़कियों ने दिखाया था वह शायद हम जैसे मानसिक रूप से विकसित और पूर्ण रूप से ठीक लोग नहीं दिखा पाते। हमारे पास एटीट्यूड है उनके पास नहीं था।
प्यार इंसान से करो उसकी औकात से नहीं, रूठो उनकी बातों से उनसे नहीं, भूलो उनकी गलतियों को उनको नहीं। उस आदमी का बेटा बैठे-बैठे शर्म से पानी पानी हुए जा रहा था।
कहाँ उसके पिताजी जिसके पास सब कुछ होने के बावजूद गरीब मोची से कुछ रुपए बचाने के लिए मोल-भाव किया करते थे और कहाँ वो गरीब मोची जिसके पास कुछ नहीं होते हुए भी उसने मजदूर की अपने सामर्थ्य के हिसाब से मदद की थी।
निष्कर्ष:- दुनिया का हर इंसान आज पैसा ,रुपया, दौलत की अंधी दौड़ का हिस्सा बन चुका है ,इंसान का हृदय इतना कठोर हो चुका है की वो सब कुछ पढ़ लेता है परन्तु इंसान की ‘वेदना’ नहीं पढ़ पा रहा। दुनिया में अगर सबसे महंगी कोई वस्तु है तो वो है इंसान की इंसानियत जो आज कौड़ी के भाव हो चुकी है। यदि इंसान ही इंसान के काम नहीं आएगा तो भला भगवान से कौन उम्मीद करे।
49. Moral Stories in Hindi – तिरस्कार
हर बात को सीखने के लिए जरूरी नहीं की हर बार , संत, ज्ञानी, महात्मा, पंडित, और किसी सिद्ध गुरु की सहायता से सीखा जाये। कई बार साधारण मनुष्य भी हमें बहुत कुछ सीखा देता है।
एक बार एक आदमी कोलकाता जा रहा था। कोलकाता में किसी सेमिनार में शामिल होने के बाद उसे वहाँ से मुंबई जाना था। उसे अपने दोस्त के बेटे की सगाई में भी शामिल होना था।
वह मुंबई एयरपोर्ट पर जैसे ही उतरा, मुंबई का ही एक अन्य मित्र जिसकी सिल्व्हसा में यार्न की फैक्ट्रि थी, उसे लेने के लिए आया ,साथ में शायद दो-तीन दिन पहले खरीदी हुई लंबी-चौड़ी नई मर्सिडीज़ कार लेकर आया।
दोनों गाड़ी में बैठ कर एयरपोर्ट से जैसे ही निकले ओवरटेक करने के चक्कर में एक ऑटो ड्राइवर का ऑटो कार से टकरा गया। कार में हल्की सी खरोंच आ गई। नई चमचमाती मर्सिडीज़ कार एक ऑटो वाले द्वारा टक्कर मार दी गई।
इस बात से गाड़ी का मालिक क्रोधित हो गया। हालांकि नुकसान कोई ज्यादा नहीं था परन्तु ऑटों से करोड़ों की कार में टक्कर इज्जत का सवाल बन गया। कार का मालिक गाड़ी से उतरा और आटो ड्राइवर को धौंस दिखाते हुए बोला “ क्यों बे अंधे दिखता नहीं क्या ?, अपनी खटारा से तूने मेरी करोड़ों की कार में टक्कर मारी”।
ऑटो वाला कुछ पल के लिए दर गया परन्तु वहां से भागा नहीं। गाड़ी के मालिक ने ऑटों वाले को जी भर के गालियाँ दी। यह सिलसिला 5-7 मिनट तक यूँ ही चलता रहा। ऑटो वाला चुप चाप सब कुछ सुन रहा था। दूसरा आदमी जो कार में बैठा था ये नज़ारा देख रहा था।
उसके मन में पहले से ही पूर्वाग्रह था की ऑटों ,साईकल या दुसरे छोटे लोग इज्जत की परवाह नहीं करते, कही ये ऑटो वाला अब बदले में मार पीट या गालियों पर न उतर जाये। इन्हीं सब बातों को सोच कर वो बीच बचाव के मकसद से गाड़ी से उतरा।
कार का मालिक बोल कर चुप हो चुका था। उसने ऑटो वाले के साथ-साथ उसके पुरे खानदान को बुरा भला कहा। ऑटो वाला ख़ामोशी से उसके चुप होने का इंतज़ार कर रहा था।
जब कार का मालिक चुप हो गया तो ऑटो वाले ने सिर्फ एक वाक्य कहा जिसने दूसरे आदमी को झकझोर कर रख दिया । ऑटो वाले ने बड़ी शालीनता और सादगी से जवाब दिया“ माफ़ कीजिये मैं क्षमा चाहता हु ,परन्तु खुद की न सही इस गाड़ी की तो इज्जत कीजिये”, “आपका जो भी नुक्सान हुआ है मैं भरने को तैयार हूँ ”,परन्तु आप अगर करोड़ों की गाड़ी में बैठ कर दोयम दर्जे के शब्दों का इस्तेमाल करेंगे तो ये इस गाड़ी के साथ साथ आपका भी अपमान होगा”।
ऑटो वाले ने जिस बड़प्पन और सादगी भरे लहजे में कार के मालिक से ये बातें कही वहां एकत्रित सभी लोग जो टक्कर की वजह से सड़क जाम हो जाने के कारण खड़े थे अभिभूत हो गए। सभी ने तालियों के साथ ऑटों वाले के शब्दों को सहारा दिया । कार का मालिक चाह कर भी कुछ न बोल पाया।
गालियों के बदले प्यार, तिरस्कार के बदले संस्कार उस एक पल में सभी चीजों के दर्शन हो गए। मुंबई जाने वाला आदमी स्तब्ध था। उसके मन में जो शिकायत थी वो एकदम मलिन थी और बेबुनियाद थी।
करोड़ों रुपये के आभूषण पहन कर कौड़ी के भाव वाला चरित्र धारण करोगे तो यकीन मानिए अपमान होना लाजमी है। विज्ञान कहता है जली हुई जीभ ठीक हो जाती है, लेकिन ज्ञान कहता है जीभ से लगी चोट कभी भी ठीक नहीं होती।
कार वाला अमीर था ,उसे ये समझ नहीं आया की गलती मनुष्य से होती है। उसके अन्दर ये अहंकार था की वो करोड़ों की गाड़ी में है और उसे किसी चीज़ की आवश्यकता नहीं परन्तु वो भूल गया की पैसे से वो गाड़ी खरीद सकता है ,करोड़ों का चरित्र और करोड़ों की मीठी वाणी नहीं।
निष्कर्ष:- इंसान को बोलना सीखने में 2 साल लगते हैं। लेकिन क्या बोलना है यह सीखने में पूरी जिंदगी निकल जाती है। लेकिन फिर भी बोलने की तहजीब नहीं आती है। तहजीब जिंदगी के अनुभव से बना करती हैं, और अनुभव ठोकर खाने वाले के पास होता है।
50. Moral Stories in Hindi – झूठा गुरूर
एक बार शहर का नामी गुंडा शेविंग और हेयर कटिंग कराने सैलून में गया। गुंडे ने नाई कहा “अगर तुमने मेरी सेविंग ठीक से बिना काटे-छाँटे की तो मुंह मांगा दाम दूंगा, लेकिन अगर कहीं भी उस्तरे से कट लग गया तो गर्दन उड़ा दूंगा”।
नाई ने डर के मारे कटिंग करने से मना कर दिया। गुंडा शहर के दूसरे नाइयों के पास गया और वहां भी उसने वहीं बात कही लेकिन सभी नाइयों ने डर के मारे मना कर दिया।
अंत में वो गुंडा गांव के एक नाई के पास पहुंचा। नाई काफी कम उम्र का लड़का था। गुंडे ने फिर उससे भी वही शब्द दोहराया “सुन छोटू मेरी अच्छे से शेविंग करना बिना काटे-छाटे अगर तूने ऐसा कर दिया तो मुंह मांगा दाम दूंगा”।
लड़का निर्भीक होकर बोला “ठीक है, बैठो मैं बनाता हूं।“ उस लड़के ने काफी बढियाँ तरीके से गुंडे की सेविंग और हेयर कटिंग कर दी। गुंडे ने खुश होकर लड़के को 10000 रुपए इनाम स्वरूप दिए और पूछा “ मैंने बहुत नाइयों को अपनी बात कही सभी ने इनकार कर दिया ,तुझे अपनी जान जाने का डर नहीं था क्या”?,
मैं जहाँ भी गया सभी ने मन कर दिया परन्तु तूने हामी भर दी ऐसा क्यों? लड़के ने कहा “डर? वो क्या चीज होती है? पहल तो मेरे हाथ में ही थी। गुंडे ने कहा ‘पहल तुम्हारे हाथ में थी ,मैं मतलब समझा नहीं’?
लड़के ने हंसते हुए कहा “भाई साहब उस्तरा तो मेरे हाथ में था, अगर आपको जरा भी खरोच लगती तो मैं आपकी गर्दन झट से अलग कर देता”। गुंडा यह जवाब सुनकर पसीने से लथपथ हो गया।
जिंदगी के हर मोड़ पर खतरों से खेलना पड़ता है। नहीं खेलोगे तो कुछ नहीं कर पाओगे। डर के आगे जीत है। बेच सको तो बेच के दिखाओ अपने अहंकार को एक रुपया भी मिल जाए तो कहना। कब्र की मिट्टी हाथ में लिए सोचना कभी, जो लोग मरते होंगे उनका गुरूर कहां जाता होगा। बादशाह तो वक़्त होता है खामखां इंसान गुरूर करता है। जो चलेगा वही तो गिरेगा,और जो गिरेगा, वही तो उठेगा।